धर्मान्तरण के खिलाफ देश में हो कठोर कानून

सिवनी। पूर्व रिटायर्ड जज नारीमन जी जो स्वयं ईसाई है। ईसाई संगठनों के साथ सितम्बर माह में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई जिसमें इनके द्वारा यह मॉग की गई है कि भारत के जिन राज्यों में धर्मान्तरण रोकने के लिये धर्म स्वातन्त्र अधिनियम के तहत कानून बनाये गये है उन्हे निरस्त किया जावें।

विडम्बना यह है सुप्रीम कोर्ट द्वारा तत्काल सुनवाई करते हुये नोटिस जारी किये गये जो राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग को दिये गये किन्तु राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नोटिस नही दिये गये जबकि ईसाई मिशनरियों द्वारा एवं इस्लामिक जेहादी संगठनों द्वारा सर्वाधिक धर्मान्तरण अनुसूचित जनजाति समाज एवं अनुसूचित जाति समाज का किया गया है, जिसका साक्षात परिणाम है कि अनुसूचित जनजाति समाज में नागा जनजाति / बोडो जनजाति विलुप्त होने की कगार में है। धर्मान्तरण केवल धर्मान्तरण नही वरन राष्ट्रान्तरण है जिसका परिणाम है कि पिछले 1500 वर्ष में भारत वर्ष के 25 टुकडो के रूप में विभाजन हुआ । वर्तमान समय में भारत के 09 राज्यों में एवं 200 जिलों में धर्मान्तरण के कारण हिन्दू समाज अल्पसंख्यक होने की कगार में है एवं धर्मान्तरण के कारण वर्तमान भारतवर्ष में निवासरत मूलसमाज का अस्तित्व खतरे में है।

हम मॉग करते है कि  धर्मान्तरण के खिलाफ देश में कठोर कानून बनाते हुए धर्मान्तरण कार्यों के खिलाफ आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया जावे। जो शिक्षण संस्थायें एवं स्वास्थ्य संस्थाये शिक्षा एवं स्वास्थ्य के नाम पर धर्मान्तरण का कार्य करते है उन्हे तत्काल प्रभाव से बंद कर उनके उपर 50 लाख का जुर्माना लगाया जाये। विदेशी संस्थाओं द्वारा एनजीओं के माध्यम से ईसाई मिशनरियों को धर्मान्तरण हेतु जो आर्थिक सहयोग दिया जा रहा है उसे तत्काल प्रभाव से रोका जावे।

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