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भगवान प्रेम से वशीभूत होकर सगुण साकार होते हैं : ब्रह्मचारी श्री निर्विकल्प स्वरूप

सिवनी। भगवान प्रेम से वशीभूत होकर सगुण साकार होते हैं उक्ताशय के उद्गार गीता मनीषी पूज्य ब्रह्मचारी श्री निर्विकल्प स्वरूप जी के मुखारविंद से सरेखा केवलारी मैं आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के तृतीय दिवस की कथा में अनेक प्रसंग प्रवाहित हुए।

सिवनी जिले की जीवनदायिनी मां वेनगंगा की परिक्रमा करने वाले एकमात्र संत तथा जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के परम कृपा पात्र शिष्य ब्रह्मचारी श्री निर्विकल्प स्वरूप जी महाराज ने कहा कि भगवान भक्तों के अधीन रहते हैं वे अपने भक्तों का कल्याण करने के लिए मनुष्य रूप धारण कर भारत भूमि में अवतार लेते हैं।

वैसे तो भगवान निर्गुण निराकार हैं लेकिन अपने भक्तों के प्रेम में सगुण साकार हो जाते हैं और इस प्रेम मैं वशीभूत हो प्रकट हो जाते हैं जैसे अग्नि सब जगह है किंतु जब घर्षण होता है तब ही अग्नि प्रकट होती है इस प्रकार जब भक्तों के द्वारा भगवान के प्रति प्रेम रूपी घर्षण होता है तो परमात्मा प्रकट हो जाते हैं।

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