बलिदान दिवस पर राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान को किया याद
सिवनी। राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय छिंदवाड़ा की कुलपति डाॅ लीला भलावी के निर्देश और पीजी काॅलेज के प्राचार्य डॉ रविशंकर नाग के मार्गदर्शन में राजा शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह का शहादत दिवस मनाकर उनके बलिदान को याद किया। कार्यक्रम में जिले के कालेजों के प्राध्यापक भी शामिल हुए।
कार्यक्रम की शुरुआत अमर शहीद राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के चित्र पर पुष्प अर्पण और दीप प्रज्ज्वलन से हुई।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में प्राचार्य डाॅ रविशंकर नाग ने आदिवासियों के योगदान का उल्लेख किया। संथाल विद्रोह, रंपा विद्रोह, सिद्धू-कान्हू और बिरसा मुंडा के विद्रोह की चर्चा करते हुए बताया कि भारत माता की आज़ादी के लिए पूरे देश के आदिवासियों ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। मध्यप्रदेश के आदिवासी महानायकों में टंट्या भील, भीमा नायक आदि का जिक्र किया। गोंडवाना राज्य के राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के संघर्ष का वर्णन करते हुए बताया कि इन जनजातीय नायकों ने पूरे महाकोसल तथा मध्यप्रदेश सहित भारत का नाम ऊँचा किया है। अमर बलिदानियों का योगदान अविस्मरणीय है।
वरिष्ठ प्रोफेसर डाॅ अरविंद चौरसिया ने कहा कि राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह हमारे लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रोफेसर सत्येन्द्र कुमार शेन्डे ने राजा शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह की क्रांतिकारी कविता का पाठ किया। बताया कि इस कविता के आधार पर अंग्रेजी सरकार ने 18 सितम्बर 1857 को दोनों राष्ट्रभक्तों को तोप के मुँह पर बाँधकर उड़ा दिया। प्रोफेसर शेन्डे ने कहा कि आदिवासियों के अनगिनत शहीदों को इतिहास में अभी भी स्थान नहीं मिल सका है। टुरिया के जंगल सत्याग्रह का जिक्र करते हुए कहा कि स्थानीय इतिहास के प्रति संवेदनशील बनना होगा।
कार्यक्रम में कुरई काॅलेज के प्रोफेसर पवन सोनिक ने स्थानीय इतिहास पर विचार रखे। डाॅ प्रतिभा गुप्ता और डाॅ सविता मसीह ने भी संबोधित किया।
कार्यक्रम के आयोजन में संयोजक डाॅ सीमा मर्सकोले तथा प्रोफेसर सुरेंद्र अलावा की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
कार्यक्रम में डाॅ सीमा भास्कर, लाइब्रेरियन सीएल अहिरवार, डाॅ रेशमा बेगम, डाॅ रवीन्द्र दिवाकर, डाॅ पूनम, छपारा काॅलेज के प्राचार्य डाॅ एसआर बेलवंशी, केवलारी काॅलेज के डाॅ मानेश्वर, बरघाट काॅलेज की डाॅ तिवारी समेत महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापक, अतिथि विद्वान, जनभागीदारी शिक्षक, कर्मचारियों सहित बड़ी संख्या में छात्र छात्राएँ मौजूद रहे। डाॅ सीमा मर्सकोले ने सभी के प्रति आभार जताया।


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