सिवनी। रीड की हड्डी धर्म है, जो आज टूट गई है। बच्चे संस्कार विहीन हो रहे हैं। वर्तमान में भारतीय शिक्षा प्रणाली बड़ी कमजोर है। आज बच्चों को डिग्री मिल रही है लेकिन ज्ञान, संस्कार नहीं मिल रहा है। हम सभी को सर्वांगीण रूप से धर्म को स्वीकार करना चाहिए। उक्ताशय की बात मुनिश्री आदित्य सागर महाराज ने जैन धर्मशाला में आयोजित पत्रकार वार्ता में सोमवार को कहीं।
उन्होंने आगे कहा कि धर्म में कमी नहीं है, जो धर्म को धारण करते हुए जो कुछ गड़बड़ करते हैं, बदनाम करते हैं ऐसे व्यक्ति में कमी होती है। लोग सबसे पहले अपने ही धर्म की हंसी, निंदा करते हैं। मैसेज को फॉरवर्ड कर यह लिखते हैं कि यह पोस्ट मैंने सबसे पहले पोस्ट की। आप व्यक्ति को बदनाम करेंगे तो धर्म की बदनामी होगी। गलती व्यक्ति से हुई है तो सुधारेगा भी वही। किसी के बारे में आपने सही भी लिखा है तो धर्म का दोष नहीं व्यक्ति का दोष होता है। धर्म बटा नहीं है, धर्म को लोगों ने बांटा है। धर्म में भेद नहीं है। धर्म में भेद हम जैसे मनुष्य ने ही किया है और हम जैसे मनुष्य ही इसे ठीक कर सकते हैं। धर्म की परिभाषा को ठीक तरह से समझना होगा। गाड़ी का चालक सही है तो गाड़ी सही चलती है। माता-पिता चालक के रूप में हैं। बच्चे वही करते हैं जो माता पिता करते हैं या अपने आसपास जो घटित होता है उसे देखकर ही बच्चे सीखते हैं। पहले धार्मिक त्योहारों के लिए स्कूल से लंबे अवकाश मिलते थे जिससे बच्चे धर्म की ओर झुकते थे। माता-पिता उन्हें धर्म के विषय में अवगत कराते थे। इससे बच्चे धार्मिक बनते थे और वे धर्म-कर्म के विषय में जानते थे। वर्तमान में पाश्चात्य शिक्षा धर्म से दूर कर रही है। रीड की हड्डी धर्म है जो आज टूट रही है। बच्चे संस्कार विहीन हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में भारतीय शिक्षा प्रणाली को ठीक किया जाना नितांत आवश्यक है, क्योंकि बच्चे ही समाज है। बच्चों में प्रारंभिक शिक्षा जितनी ज्यादा धर्म से जुड़ी होगी उतना वह परिवार और समाज मजबूत होगा।
महाराज श्री ने कहा कि किसी का व्यवसाय कुछ भी हो लेकिन धर्म अहिंसा को छोड़कर ना हो। 1610 वर्ष में जो शासक थे उन्होंने आदेश दिया था कि भादो माह में कोई भी बलि ना दी जाए ना कहीं कत्ल हो। उस समय जब एक मुगल शासक ऐसा आदेश दे सकते थे तो वर्तमान के शासक भी इस प्रकार का आदेश दे सकते हैं। जितना अधिक अहिंसा का प्रचार होगा उतनी अंतरात्मा में शांति होगी। आप किसी भी धर्म का पालन क्यों ना करते हो? जो शांति अहिंसा से मिलती है वह किसी से नहीं मिलती है।
पत्रकारों को भी अहिंसा के बारे में अवश्य ही कुछ ना कुछ लिखते रहना चाहिए। भारतीयों का मूल धर्म ही अहिंसा है।
मीडियाकर्मी समाज का आईना है जो समाज के सामने घटित होने वाली घटनाओं को संग्रहित कर चिंतन के लिए रखता है। इसीलिए इसे राष्ट्र का चौथा स्तंभ भी कहा गया है। इस अवसर पर दैनिक भास्कर से प्रदीप धोगड़ी, नईदुनिया से संजय अग्रवाल, श्याम सोनी, राजएक्सप्रेस से गोपाल चौरसिया, ताजासमाचार संतोष दुबे, अभिनव जैन, सुदुर संदेश लोकेश उपाध्याय, हरिभूमि से शरद दुबे, जबलपुर एक्सप्रेस जिब्राईल मंसूरी, युगश्रेष्ठ से शरद छागंवानी, पत्रिका से सुनील बंदेवार, यूटूब सतीश मिश्रा, संजय जैन, विपनेश जैन, अभय जैन, शालू जैन,पवन दिवाकर, अतुल जैन, संजय नायक, पारस जैन सहित अनेक लोग उपस्थित हुए।
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