सिवनी (नैमिषारण्य से )। जाने अनजाने कोई भी गलत काम हो जाए, झूठ बोल देना। जो शास्त्र शास्त्रानुकूल नहीं है तो निश्चय कर भगवान का नाम जाप करें और निश्चय करें कि अब दोबारा गलत कार्य ना हो। उक्त आशय की बात रविवार को दूसरे दिन रंग पंचमी के दिन कथावाचक हितेंद्र पांडे ने नैमिषारण्य उत्तरप्रदेश में जारी श्रीमद् भागवत कथा में सिवनी, छिंदवाड़ा, जबलपुर, रायपुर समेत अन्य जिलों से कथा श्रवण करने पहुंचे श्रद्धालुजनों से कहीं।
उन्होंने आगे बताया कि राजा परीक्षित को जो श्राप लगा वह वाणी से लगा। वाणी से जब प्रहार होता है तो उसकी रक्षा ब्राह्मण करते है। इसलिए सुखदेव जी विराजमान होकर कथा सुनाते हैं। राजा परीक्षित को अमृत तत्व देने के उद्देश्य से सुखदेव जी ने जो मंत्र दिया वह वम है और श्राप से बचने के लिए यह मंत्र दिया। रामचरित्रमानस में पहला और अंतिम शब्द व है। सुखदेव जी ने भी व शब्द से कथा प्रारंभ किया।
किसी के संस्कार जानने के लिए उनके शब्दों से जाना जा सकता है। मनुष्य तन में आने के बाद और जिसकी मृत्यु निकट आ जाए तो क्या करना चाहिए? सुखदेव जी ने राजा परीक्षित के प्रश्नों पर कहा कि जीवों को भगवान का ध्यान करना चाहिए। 84 लाख योनियों में एक योनि मनुष्य की मिलती है। मनुष्य तन मिलने पर एक ही लक्ष्य रहना चाहिए परमात्मा की प्राप्ति।
धर्म को धारण करने के लिए सबसे सरल उपाय श्रीमद् भागवत कथा है। श्रीमद् भागवत कथा एक बीमा के समान है, जैसे बीमा वाले समझाते हैं कि आप थोड़ी-थोड़ी राशि 20 साल तक जमा करते जाइए एकमुश्त राशि 20 साल बाद मिल जाएगी। अगर कोई अचानक घटना बीच में घट जाए तो किस्त बंद हो जाएगी। मरने के बाद मुफ्त में इतनी राशि मिल जाएगी, तो जैसे बीमा वाले समझाते हैं मरने के बाद भी और मरने के पहले भी, ऐसी ही श्रीमद् भागवत कथा है। इसी प्रकार जिसने भागवत रूपी पाल्सी को ले लिया उसे लौकिक अर्थोपार्जन नहीं बल्कि पारलौकिक अर्थ प्राप्त हो जाता है।









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