धर्म सिवनी

क्रिसमस पर सजे सिवनी के चर्च, हुए विविध आयोजन, 160 साल प्राचीन चर्च रोशनी से सराबोर

संतोष दुबे/सिवनी ( taajasamachar. com ) क्रिसमस या बड़ा दिन को लेकर कचहरी चौक स्थित सीएनआई व पुलिस कंट्रोल रूम के समीप स्थित पत्थर गिरजा चर्च में ईसाई समाज में जबरदस्त उत्साह है। चर्च को आकर्षक रंगीन लाइटों से सजाया गया है। चर्च व परिसर में की गई साज-सज्जा देखते ही बन रही है। 25 दिसम्बर यानि बड़ा दिन ईसा मसीह के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। इसको लेकर चर्च और घरों में तैयारी की गई। गुरुवार को जहां गीत संगीत का कार्यक्रम हुआ वही रात्रि 12:00 बजते ही आतिशबाजी की गई। पटाखा फोड़ कर उत्सव मनाया गया

सिवनी चर्च पत्थर गिरजा के पास्टर एसके जेम्स ने बताया कि सुबह 9:00 बजे यहां आराधना होगी। इसके बाद खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा। इसके बाद लंच होगा। सिवनी चर्च पत्थर गिरजा के सतीश नेथन सचिव, बसंत जीवन मसीह कोषाध्यक्ष, वरिष्ठ सदस्य यहूसु होलू, जॉन नेथन, श्रीमती किरण जेम्स, प्रवीण संत कुमार, श्रीमती ए थॉमस, श्रीमती एस एलिक, श्रीमती मीना दयाल, जवान सदस्य में निकलेश आदि ने बताया कि चर्च में आकर्षक साज-सज्जा की गई है तथा शुक्रवार को क्रिसमस को लेकर सभी तैयारी पूर्ण की गई हैं। जहां सभी उत्साह पूर्वक ईशा मसीह के जन्म को आनंद उत्साह के साथ मनाया जाएगा।

नगर में क्रिसमस का त्योहार 12 दिन पूर्व से ही क्रिसमस उत्सव के रुप में मनाया जाता है। 25 दिसंबर ईशा मसीह के जन्म का कोई ज्ञात वास्तविक जन्म तिथि नही है, लेकिन इस तिथि को एक रोमन पर्व के आधार पर चुना गया है। ईसाई समाज की मान्यता के अनुसार इस पर्व पर संपूर्ण विश्व में अवकाश रहता है। इसलिए ईसाई परिवारों में दोगुनी खुशी देखने को मिलती है। क्रिसमस पर एक दूसरे को उपहार देना, चर्च में प्रार्थना समारोह का आयोजन होगा।

सर्किट हाउस के सामने स्थित पत्थर वाला चर्च लगभग 160 साल से अपनी खूबसूरती से लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। पत्थर वाला चर्च आज भी उसी मजबूती से खड़ा है, जिस मजबूती से इसका निर्माण किया गया था। इतने साल पहले भी सिवनी की कितनी अहमियत थी, इस बात की गवाही यहां ब्रिटिश हुकूमत में बनवाए गए पत्थर वाले चर्च को देखकर, इतिहास जानकर समझा जा सकता है। तभी तो शहर में ऐसी वास्तुकला, बनावट और भव्यता की निशानी आज भी खूबसूरती के साथ कायम हैं। जिसकी हर कोई तारीफ किए बिना नहीं रहता। क्रिसमस के एक दिन पूर्व रविवार को चर्च को भव्यता से सजाया गया। यहां बड़ी संख्या में ईसाई धर्मावलंबी व अन्य धर्म के लोग पहुंचकर प्रार्थना करेंगे।

अंग्रेज अफसर हों या मिलिट्री सभी जबलपुर-नागपुर या देश के इस छोर से उस छोर की यात्रा यहीं से होकर किया करते थे। पास्टर एस के जेम्स ने बताया कि ब्रिटिश शासन में भी सिवनी खास था, इसलिए उन्होंने सिवनी को छावनी बनाया था। इसके लिए जगह चुनी गई थी, सिवनी में मेन रोड किनारे वर्तमान सर्किट हाउस के सामने की जमीन। सफर करते ब्रिटिश अफसर, जवान यहां छावनी में लगे तंबू में ठहरते थे। इसी दौरान ब्रिटिश हुकूमत ने यहां सीएनआई सिवनी पत्थर वाले चर्च का निर्माण करीब 1860 में कराया था। यहां सभी प्रेयर किया करते थे।

लगभग 160 साल पहले आज जितने कुशल उपकरण और मशीनें नहीं थीं, इसके बावजूद भी जो लाजवाब कारीगरी इस चर्च में दिखाई देती है वो हैरत में डालती है। आज के दौर में संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद इस तरह की इमारतें बनना सहज संभव नहीं है।

पुरातत्व विभाग के संरक्षण में जा चुके इस चर्च को सुरक्षित रखने शासन ने तो कोई प्रयास नहीं किए, लेकिन क्रिश्चियन समाज कमेटी ने इसे सहेज रखा है। इसी कमेटी के सचिव शर्मिला बी कुमार ने बताया कि यह चर्च पूरी तरह पत्थरों से बना है, जो बाहर से लाए गए थे, पत्थरों को इतनी खूबसूरती और सफाई से इस्तेमाल किया गया कि देखते ही बनता है। चर्च में एक ओर मीनार है, जिस पर प्रेयर के समय एक घंटा बजता था। चर्च के भीतर भीतर ईशू मसीह का क्रास लगा है, वहीं छत, दरवाजे और बैंच इतने सालों के बाद भी कमजोर नहीं हुए हैं। इनमें भी खास कारीगरी देखने को मिलती है।

ब्रिटिशकाल की ऐसी कारीगरी पूरे मप्र में सिवनी के अलावा कहीं और देखने को नहीं मिलती। इसे देखने देशी-विदेशी पर्यटक भी आते रहे हैं।

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