सिवनी। मानव सेवा ही माधव सेवा है आज के इस दौर में जहां लोग अपनों की सेवा से परहेज करते हैं और कोरोना काल में कुछ लोगों ने अपने सगे-संबंधी, नाते-रिश्तेदारों के बीमार होते ही उनसे नाता तोड़ दिया। उन्हें अपने ही हाल में ईश्वर, अल्लाह के भरोसे छोड़ दिया। यह स्थितियां अनेक जगहों पर बनी। वही सिवनी जिले की समाजसेवी युवती रोज नाज़नीन शेख ने बेसहारा वृद्धजनों, विक्षिप्त दिव्यांगजनों की सेवा के लिए आगे आई। उन्होंने इनकी सेवा कर एक मिसाल कायम की। सच्ची सेवा क्या होती है यह उन बेसहारो, विक्षिप्तो की निस्वार्थ भाव से की गई सेवा से झलकती है। इसका यह परिणाम भी हुआ कि सिवनी जिले से एकमात्र उक्त समाजसेवी युवती को ग्लोबल कोविड-19 वेरियर लीडरशिप एंड एक्सीलेंस अवार्ड का सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया गया।
राज्य स्तरीय वसुंधरा ब्लेसिंग फाउंडेशन के द्वारा दिया गया यह सम्मान कोरोना गाइडलाइन के तहत आयोजित जूम मीटिंग के तहत दिया गया।
उक्त सम्मान कार्यक्रम में सिवनी से एक समाजसेवी, जबलपुर से तीन व अन्य राज्यों में राजस्थान, महाराष्ट्र के मुंबई समेत अन्य राज्यों से समाजसेवी शामिल थे। वहीं दुबई, सऊदी अरब, अमेरिका, इटली, ब्रिटेन, अफगानिस्तान, तुर्की जैसे देशों में समाज के लोगों की अपने-अपने स्तरों से काम किए जाने वाले ऐसे सोशल वर्कर्स को सम्मानित किया गया।
सिवनी जिले की समाजसेवी सुश्री रोज नाज़नीन शेख को निस्वार्थ भाव से की उत्कृष्ट सेवा के लिए बतौर सम्मानित किया गया। समाजसेवी रोज नाज़नीन ने बताया कि जिले में विक्षिप्त और बेसहारा वृद्धजनों के भोजन की व्यवस्था और उनको नहलाने, साफ-सफाई आदि का ध्यान रखते हुए पीड़ित मानव की सेवा के लिए वे स्वयं अकेली इस कार्य के लिए निकल जाती थी। कोरोना कॉल में जब लॉकडॉन लगा था और बस स्टैंड समेत नगर के मार्गो, चौराहों में बंद पड़ी छोटी-बड़ी होटलों, घरों से विक्षिप्त और बेसहारा वृद्धजनों को जो नाश्ता, भोजन मिल जाता था वह भी उन्हें नहीं मिलता था। ऐसी स्थिति में उनको भोजन मिल सके इसके लिए वह प्रतिदिन सुबह-शाम शहर में जहां-जहां विक्षिप्त बैठे रहते थे उनके पास जाकर उन्होंने भोजन की व्यवस्था कराई।
उन्होंने बताया कि इस प्रकार की मानव सेवा करके उन्हें अच्छा लगता है। मानसिक रूप से विक्षिप्त और बेसहारा वृद्धजनों का भी कोई ना कोई अपना तो होता है लेकिन अनेक विषम परिस्थितियों के चलते लोग उन्हें अपने घर से निकाल देते हैं या फिर वे भटक जाते हैं, जिन्हें खुद का भी होश नहीं होता है और ना ही भोजन के लिए कहीं से किसी भी प्रकार की कोई व्यवस्था वे कर पाते हैं। ऐसे पीड़ितजनों की सेवा करना अब उन्होंने अपना मुख्य धर्म बना लिया है। यह सेवा ही उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान है और उन्होंने कहा कि वे निरंतर इस सेवा में लगी रहेंगी।
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