सिवनी। किसानों द्वारा किए जा रहे कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन अब कोई आसान आंदोलन नहीं रह गया. इस आंदोलन को लेकर किसान निश्चिंत हो गया है कि न डरेंगे न हटेंग, सरकार को किसान विरोधी कानूनों को वापस लेना ही पड़ेगा अन्यथा वें सालों-साल प्रदर्शन करने के लिए तैयार हैं। इसको लेकर किसानों ने साफ कर दिया है कि वे पूरे एक साल की व्यवस्था के साथ आंदोलन करने के लिए तैयार हैं। ऐसा हो भी क्यों न…इसका कारण यह है कि इस आंदोलन को दुनियाभर से समर्थन मिल रहा है. 36 ब्रिटिश सांसदों के साथ अन्य देश समर्थन देकर किसानों के हौसले को और बुलंद कर दिया है। लेकिन इस मसले पर विदेशों का सर्मथन मिलना कहीं न कहीं सरकार की विफलता का कारण मान सकते हैं। जिसके चलते किसान और आंदोलन को लेकर आश्वस्त हैं। जिस तरह से दिनोंदिन किसानों का आंदोलन और मजबूत हो रहा है और सरकार की परेशानियां बढ़ती जा रही है। हालाकि जिस तरह से बीते 5वें दौर की मीटिंग बेनतीजा रही, उससे से तो यही लग रहा है कि सरकार के लिए किसानों को मनाने की राह आसान नहीं है। लगातार मीटिंग का दौर चलते हुए किसानों और सरकार के साथ आगे की बैठक का बहिष्कार करना यह दर्शाता है कि यदि अब उनकी मांगे पूरी नहीं हुई तो हम लड़ाई लड़ते रहेंगे। हालाकि सरकार अपना प्रस्ताव तैयार करने के लिए किसानों से चार दिन का समय मांगा था, अब अगली बैठक 9 दिसंबर को होनी है। इसे हम आखिरी बैठक मान सकते हैं क्योंकि किसानों ने बैठक को लेकर साफ अल्टीमेटम दे दिया है. आखिरकार देखना अब यह होगा कि बनेगी या बिगड़ेगी बात। पहली खास बात तो यह है कि देश के श्रेष्ठ सम्मान से सम्मानित प्रतिष्ठित चेहरे भी पद्मश्री लौटा रहे हैं। दूसरी यह कि अब यह आंदोलन किसानों का नहीं बल्कि देश के युवाओं से लेकर आम जनता का प्रत्येक वर्ग का हो गया है। किसानों के आंदोलन को सशक्त बनाने के लिए युवा, डॉक्टर्स की पूरी फौज उनकी देख- रेख और खानपान को लेकर डटे हुए हैं. इस आंदोलन से साफ दिख रहा है कि किसान पीछे नहीं हटने वाले हैं. किसान से लेकर आम लोग भी अपने जिला, तहसील स्तर आंदोलन कर रहे हैं. जो अब विश्वव्यापी बन चुका है। हालाकि अब देखना होगा सरकार किसानों के इस मसले पर क्या फैसला लेती है, लेकिन अब किसानों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वाहन कर दिया है। जिसका प्रभाव पर देश की सुरक्षा और आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा। इतना ही नहीं इसको लेकर तेलंगाना सरकार ने किसानों के भारत बंद का समर्थन किया है। उधर एनसीपी के नेता शरद पवार ने भी सरकार चेताया है कि किसानों की मांगों पर परिपक्वता दिखानी चाहिए। यह साफ तौर पर मोदी सरकार को समझ लेना चाहिए कि इस आंदोलन का दूरगामी परिणाम बीजेपी के लिए बुरा साबित हो सकता है। सरकार को इस पर आत्ममंथन करना चाहिए और किसानों के इस मसले पर जल्द से जल्द फैसला लेना चाहिए। यदि सरकार ये सोच रही हो कि किसानों को बल पूर्वक भगा दिया जाएगा तो यह सरकार की भूल होगी। इस किसानों का आंदोलन, जनादोलन का रूप ले चुका है। जहां एक तरफ सरकार होगी और दूसरी तरफ पूरे देश की जनता होगी। राजकुमार (स्वतंत्र विचारक एवं लेखक)