सिवनी/केवलारी। फाल्गुन मास शिवरात्रि पर्व पर ग्राम खैररांजी में धर्म सभा का आयोजन अनंत विभूषित द्वारका शारदा द्विपीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की कृपाभिलाषी शिष्य वैनगंगा नदी परिक्रमावासी परम पूज्य ब्रह्चारी निर्विकल्प स्वरूप महाराज ने धर्मसभा पीठ पर आसीन होकर क्षेत्र से आए धर्म प्रेमियों को बताया कि ईश्वर का भजन ही धर्म रथ का सारथी है, श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु के बड़े होने का वैदिक आधारित प्रसंग का भी वर्णन किया, महाराज जी ने बताया कि राम रावण युद्ध में जब भगवान श्रीराम से रावण युद्ध भूमि में रथ पर आरूढ़ होकर के युद्ध कर रहा था तब रावण के भाई विभीषण जो राम भक्त थे भगवान श्रीराम से कहते हैं कहने का आशय है शंका जाहिर करते हैं कैलाश पर्वत को उठाने वाला महाबली राक्षस राज रावण दिव्य रथ पर आरूढ़ होकर के श्री राम से युद्ध कर रहा है और भगवान श्री राम पैदल ही युद्ध कर रहे हैं तब भगवान ने विभीषण को कहा कि आपकी शंका उचित है लेकिन जो धर्म रथ पर सवार होकर के कोई भी कार्य करता है चाहे युद्ध ही क्यों ना हो उसकी विजय निश्चित होती है। ईश्वर का भजन अर्थात भगवान शंकर का भजन ही धर्म रथ का सारथी होता है।
मेरे इष्ट भगवान रामेश्वरम है, अर्थात राम के जो ईश्वर है उनकी की पूजा कर करके में धर्मरथ में सवार होकर युद्ध कर रहा हूं। महाराजश्री ने धर्मरथ का वर्णन किया जिसमें कहा चार अश्व बल,विवेक,दम और परहित यानि दुसरो की भलाई करना, दो पहिया शौर्य और धैर्य और धर्म रथ का सारथी ईश भजन है। महाभारत युद्ध में श्री कृष्ण का अर्जुन को कुरुक्षेत्र में दिए गए उपदेश गीता बन गया ऐसे ही त्रेतायुग मे राम रावण युद्ध के समय विभीषण की शंका समाधान करने के लिए श्री राम जी के द्वारा विभीषण को दिया गया उपदेश विभीषण गीता बन गयी।
महाशिवरात्रि पर्व के मौके पर महाराजश्री ने भगवान ब्रह्मा और श्री विष्णु की प्रतिस्पर्धा सोच को बताते हुए कहा कि भगवान शिव के द्वारा आलौकिक शिवलिंग की उत्पत्ति कर परीक्षा ली श्री विष्णु को पालनकर्ता बताया, शिव पूजन और महत्म के विषय में महाराज जी ने विस्तार से वर्णन किया।
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