धर्म मध्य प्रदेश सिवनी

पूत का अर्थ पवित्र और ब्रह्ममय : प्रज्ञानानंद महाराज

सिवनी। पूत का अर्थ पवित्र और ब्रह्ममय है। जबकि जो पवित्रता भंग करें, उसे पूतना कहा जाता है। प्राण हरण करते समय पूतना भगवान कृष्ण से छोड़ देने की गुहार लगाती है। किंतु भगवान कहते हैं कि जिसको वह एक बार पकड़ लेते हैं, फिर कभी नहीं छोड़ते। फिर भी भगवान कृष्ण ने पूतना का दुग्ध ने पान करने के कारण उसे मां की गति देकर परम धाम पहुंचाया। उक्ताशय की बात गणेशगंज देवरी में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में मंगलवार को प्रज्ञानानंद महाराज ने श्रद्धालुजनों से कहीं।

प्रेम परमात्मा का ही स्वरूप है। जिस तरह से ब्रह्म निराकार है, उसी तरह प्रेम भी निराकार है। प्रेम का कोई स्वरूप नहीं है, लेकिन एक अपवाद है जहां प्रेम रूप धारण करता है। पदार्थ का वह माता का दुग्ध प्रेम के रूप में परिणित हो जाता है।

प्रेम परमात्मा का ही स्वरूप है। जिस तरह से ब्रह्म निराकार है उसी तरह प्रेम भी निराकार है। प्रेम का कोई स्वरूप नहीं है, लेकिन एक अपवाद है जहां प्रेम रूप धारण करता है। पदार्थ का वह माता का दुग्ध प्रेम के रूप में परिणित हो जाता है।

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