पूर्व में ओपन कैप में सड़ चुका है करोडों का सरकारी अनाज, वेयर हाउस संगठन ने किराया कम होने से जताई नारजगी
सिवनी। हर साल बड़ी मात्रा में ओपन कैप में भंडारित करोडों का सरकारी अनाज सड़ कर बर्बाद हो रहा है।इसके बाद भी इस बार ओपन कैप में ही निजी ऐजेंसी के माध्यम से सरकारी अनाज भंडारित करने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए वेयर हाउसों में सरकारी अनाज भंडारण के एवज में वेयर हाउस संचालकों को दिए जाने वाला किराया लगभग आधा कर दिया गया है। इससे सिवनी वेयर हाउस संगठन ने नाराजगी जताई है।
संगठन के अध्यक्ष अनुराग मालू का कहना है कि वेयरहाउस कारपोरेशन द्वारा लिए गए आमानवीय निर्णय पर सरकार को तुरन्त रोक लगाई जानी चाहिए। इस निर्णय पर रोक लगाए जाने से वेयरहाउसों में वर्षो से कार्यरत अनेक मजदूरों, कर्मचारियों को बेरोजगार होने से बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा है कि वेयर हाउस संचालको पर पीएमएस एजंसी को न थोपा जाए।किसानों से समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान और गेहूं का भंडारण मप्र वेयर हाउस कारपोरेशन द्वारा निजी कवर्ड गोदामो व ओपन कैप में किया जाता है।
भंडारण के बाद कवर्ड गोदामो में रखे अनाज के रखरखाव की समस्त जवाबदारी गोदाम मालिकों की रहती है।इसके तहत वेयरहाउस संचलको द्वारा भंडारित अनाज का कीटोपचार, पहुंच मार्ग का रखरखाव , सीसीटीवी कैमरों की सुविधा, परिसर में धर्मकांटे की व्यवस्था व मजदूरों, चलकों के लिए शुद्ध पेयजल व्यवस्था के साथ ही परिसर की पूर्ण सुरक्षा की जवाबदारी आदि कार्य किया जाता है।
संगठन के पदाधिकारियों ने बताया है कि गोदाम संचलकों को मप्र वेयर हाउस कारपोरेशन द्वारा पूर्व से ही 84 रुपये प्रति मेट्रिक टन किराया प्रतिमाह दिया जाता रहा था।अब इसे 40 रूपये कर दिया गया है।ऐसे में वर्षो से इन वेयर हाउस में कार्यरत अनेक मजदूरों व कर्मचारियो को भी मजबूरन नोकरी से निकालना पड़ेगा।इससे इन मजदूरों कर्मचारियों के साथ साथ उनके परिवारों के सामने भी रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा।
संगठन के पदाधिकारियों ने बताया है कि वेयर हाउस में अनाज भंडारण के बाद रखरखाव के दौरान अगर यदि कोई प्राकृतिक सुखत (घटी)आती है तो उसकी भी वसूली गोदाम किराए से काटकर की जाती है। अर्थात वेयर हाउस कारपोरेशन को कवर्ड गोदामो में माल रखने में किसी भी प्रकार की हानि नही होतीं है। इसके विपरीत मप्र वेयर हाउस कारपोरेशन द्वारा ओपन कैप में भी अनाज का भंडारण किया जाता है जिसकी समस्त जवाबदारी मप्र वेयर हाउस कारपोरेशन की होती है।वहीं ओपन कैपों में रखे गए अनाज का किराया केंद्र सरकार द्वारा मप्र वेयरहाउस कापोरेशन को 24 रुपये प्रति मेट्रिक टन दिया जाता है। इसके बाद वेयर हाउस कारपोरेशन अस्थायी तौर पर इन ओपन कैपों में कंक्रीट के चबूतरे, आवागमन के लिए सड़के व भंडारित अनाज को ढ़कने के लिए प्लास्टिक के तिरपाल आदि व्यवस्था करता है और इसके बाद भी कई बार यह तिरपाल फट जाते है और फिर नए तिरपाल लगाए जाते है।इस पर करोड़ों रुपयों का व्यय वेयर हाउस कार्पोरेशन द्वारा किया जाता है।इसमें लागत कवर्ड गोदमों को दिए जा रहे 84 रुपये प्रति मेट्रिक टन किराए से भी अधिक हो जाती है।
ओपन कैप में सब उपायों के बाद भी पिछले कुछ वर्षों के दौरान भंडज्ञकरत की गई करोडों रुपये की धान सड़ गई।इसका संज्ञान स्वयं मप्र हाइकोर्ट ने लिया गया था।इसके बावजूद नई नीति में वेयर हाउसों को मिलने वाले किराए में लगभग 50 प्रतिशत की कटौती कर किराया 40 रुपये प्रति मेट्रिक टन किया जा रहा है।संगठन ने आरोप लगाते हुए बताया है कि मप्र वेयर हाउस कारपोरेशन जानबूझ कर पीएमएस एजेंसी (स्कंध रखरखाव करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी) के दबाव में किया गया है।पूर्व में वेयर कारपोरेशन ने सिवनी जिले के गरठिया गावं में ओपन कैप में रखे गए सरकारी स्कंध के रखरखाव का कार्य एक निजी पीएमएस एजेंसी से करवाया था।इसमें लगभग 8 से 9 करोड़ रुपयों की धान बर्बाद हुई थी।इसे इस पीएमएस एजंसी द्वारा जमा नही किया गया।इसके बाद भी मप्र वेयरहाउस कारपोरेशन द्वारा पीएमएस एजेंसी को सात करोड़ से अधिक किराए की राशि का भुगतान कर दिया गया गया।अब इन्ही पीएमएस एजंसियों को फिर आमंत्रित किया जा रहा है।
संगठन के पदाधिकारियों ने बताया है कि इस मामले में मुख्यमंत्री, खाद्य मंत्री, मप्र वेयर हाउस कारपोरेशन को कई बार प्रत्यक्ष व पत्र के माध्यम से वेयर हाउस संचलकों पर किए जा रहे अन्याय के बारे में अवगत कराया जा चुका है।इसके बाद भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। संगठन के पदाधिकारियों ने प्रदेश सरकार से इस ओर ध्यान देकर उचित कार्रवाई की मांग की है ताकि अनेक मजदूर बेरोजगार होने से बच सकें व ओपन कैप में करोड़ों का अनाज सड़ कर बर्बाद होने से बच सके।
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