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20 Dec 2025, Sat

विपत्ति में ही होते हैं भगवान के दर्शन, मिलता है सानिध्य : स्वरूपानंद सरस्वती महाराज

सिवनी। स्वयं भगवान की रक्षा भी भगवान के नाम से होती है। सुदर्शन चक्र इतना शक्ति शाली होता है कि वह ब्रह्मास्त्र भी भेद सकता है। इसीलिए सुदर्शन का मंदिर बनाओ। राजा का दीवान यानि मंत्री जैसा होता है, वैसा ही शासन चलता है। न्यायालय में विलंब करना भी अन्याय हो जाता है। राजा का गुप्तचर विभाग पक्का होना चाहिए। कलयुग का वास जुआं, शराब, वेश्यावृत्ति और सोना में है, इससे दूर ही रहना चाहिए। उक्त धर्मोपदेश श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह के दूसरे दिन दो पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने दिघोरी में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में श्रोताओं को कथा का श्रवण कराते हुए दिए।
श्रीमद् भागवत कथा का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि कर्म से ही हमें सब कुछ मिलता है, देवताओं को प्रसन्न करने से नहीं। आपने इसका उदाहरण देते हुए कहा कि ब्रजवासियों से आपने इन्द्र की पूजा की बजाय गौवर्धन की पूजा करवायी थी क्योंकि गिरिराज से हमें चारा, पानी और अन्य चीजें प्राप्त होती हैं। आपने कहा कि इसके बाद जब बछड़ों का अपहरण हो जाता है तो वे स्वयं गाय और बछड़ा बन जाते हैं, इसका तात्पर्य यह है कि वे एक होकर भी अनेक हैं। यानि वे ब्रह्म हैं।

महाराजश्री ने कहा कि स्वयं श्रीकृष्ण ने जगत को मिट्टी की महत्वता प्रदर्शित करवायी थी और इसीलिए उन्होंने मिट्टी खायी थी। आज भी ब्रज की रज में उनका वास है, यदि वहा की रज उड़कर शरीर में पड़ जाए तो माना जाता है कि श्रीकृष्ण के उन्हें दर्शन हो गए। आपने श्रीकृष्ण के मिट्टी खाने की कथा सुनाते हुए कहा कि जब माता ने उन्हें डराने के लिए छड़ी उठायी तो वे भी डरने लगे। कितने आश्चर्य की बात है कि जिनके डर से डर को भी डर लगता है आज वे स्वयं यशोदा माता की छड़ी से डर रहे हैं। आपने कहा कि भगवान की रक्षा भी स्वयं भगवान के नाम से ही होती है।
दो पीठाधीश्वर ने कहा कि विपत्ति आए तो हमें घबराना नहीं चाहिए, विपत्ति में ही भगवान के दर्शन होते हैं और उनका सानिध्य मिलता है। स्वयं कुंती ने भी युद्ध समाप्ति के बाद कहा कि भगवान विपत्ति थी तो आप थे और अब संपत्ति आ गई है तो आप जा रहे हैं। आपने सुदर्शन चक्र की महिमा बताते हुए कहा कि ब्राह्मस्त्र को भी समाप्त करने की शक्ति सुदर्शन चक्र में होती है इसीलिए हमें सुदर्शन चक्र का मंदिर बनाना चाहिए।
महाराजश्री ने कहा कि परमात्मा स्वयं अपने आप को जगत के लिए उत्पन्न करते हैं और फिर उसी में विलीन हो जाते हैं। जैसे मिट्टी से बना घड़ा टूटने के बाद स्वयं मिट्टी में ही समा जाता है। जो चीज परमात्मा से उत्पन्न हुई है वह उसमें ही विलीन हो जाती है। यदि हमें किसी भी प्रकार का भ्रम है तो उसको जानने के लिए हमें वेद का ज्ञान लेना होगा। कई बार हमें जैसे रस्सी में सांप का भ्रम हो जाता है उसी तरह संसार में आने के बाद हमें सब अपना लगने लगता है। आपने कहा कि स्वयं भगवान भी अपने भक्तों का ध्यान करते हैं। भगवान ने भीष्म पितामह का ध्यान किया और भीष्म को प्रणाम भी किया। आपने कहा कि जो जिस भाव से ध्यान करके प्राणों को त्यागता है, उसे वही प्राप्त होता है। इसीलिए प्राण त्यागते समय हमें ईश्वर का ध्यान करना चाहिए।
महाराजश्री ने कहा कि राजा का दीवान जैसा होगा, उसका शासन और राजा का काम-काज भी वैसा ही चलेगा। आपने एक सिंह का उदाहरण देते हुए कहा कि सिंह की गुफा में जब एक ब्राह्मण पहुंच गया और वह उसे खाने लगा तो हंस दीवान ने सिंह को सलाह दी कि आज एकादशी का दिन है ब्राह्मण के भक्षण से तुम्हे पाप लगेगा। दीवान हंस के समझाने पर राजा सिंह ने उसे एक स्वर्ण मुद्रा दी और यह ब्राह्मण प्रत्येक एकादशी में गुफा पहुंचकर स्वर्ण मुद्रा प्राप्त करने लगा। एक दिन जब यह ब्राह्मण हमेशा की भांति वहां पहँुचा तो सिंह ने उसे खाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, तब ब्राह्मण ने कहा कि आप तो मुझे प्रत्येक एकादशी में स्वर्ण मुद्रा देते हैं आज एकादशी है आपको क्या हो गया? सिंह ने कहा कि दीवान बदल गया है अब दीवान का कार्य हंस की जगह कौआ देख रहा है और मेरे दीवान ने अपनी आवाज में कहा कि खाओ-खाओ।
महाराजश्री ने कलयुग के बारे में बताते हुए कहा कि कलयुग में लोगों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। आपने इसके लिए एक किसान की कथा सुनाई। आपने कहा कि जुआं, शराब, वेश्यावृत्ति और सोना कलयुग को इन चारों चीजों का वरदान मिला हुआ है और जब यही कलयुग परीक्षित के सर में लगे सोने के मुकुट में बैठा तो उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई और उन्होंने एक साधु के गले में मरा हुआ सांप डाल दिया जो उसकी मृत्यु का कारण बना। राजा परीक्षत ने श्राप से मुक्त होने के लिए ही वैराग्य धारण किया और श्रीमद भागवत कथा का श्रवण किया, क्योंकि सातवे दिन ही उसकी मृत्यु तय थी।

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