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सिवनी। जिला पेंशनर्स एसोसिएशन के तत्वावधान में गुरुवार को जिले भर से आए पेंशनर्स ने कचहरी चौक में धरना प्रदर्शन दिया।
पेंशनर्स ने अपनी मांग व समस्या के विषय में बताया कि सरकार की शोषण चक्की थमने का नाम नहीं ले रही। प्रदेश सरकार ने छटवें वेतनमान के 32 माह के एरियर्स का भुगतान न्यायालय के आदेश के बावजूद अब तक नहीं किया, टालमटोल कर रही है। सातवें वेतनमान के 27 माह के एरियर्स के भुगतान की सरकार की कोई मंशा नहीं दिख रही है। सदैव मंहगाई राहत नियत समय पर न देकर बाद में स्वीकार करते हुए पेंशनर्स के मुख का कौर छीना है अभी भी कर्मचारी 34 प्रतिशत तो पेंशनर्स 28 प्रतिशत राहत पा रहे हैं।
भारत सरकार के स्पष्टीकरण के बाद भी राज्यों की परस्पर सहमति का अस्त्र चलाकर महंगाई राहत की राशि पेंशनर्स के मुख से छीनते हुए उन्हें शोषण की चक्की में पीस रही है।
(2) पेंशनर्स कल्याण के लिए निर्मित प्रावधान / निर्देश बेबुनियाद: पेंशनर्स स्वास्थ्य रक्षा के लिए निःशुल्क औषधि/चिकित्सा का प्रावधान तो किया
है/निर्देश भी जारी किये गये हैं किन्तु आवंटन कभी भी पर्याप्त उपलब्ध नहीं कराकर अपने ही प्रावधान / निर्देश को मात्र दिखावा सिद्ध कर दिया है। यही नहीं पेंशनर्स लिए आयुष्मान भारत निरामयम या अन्य कोई ऐसी योजना भी प्रदेश सरकार अब तक प्रारम्भ नहीं कर पाई है।
(3) माननीय न्यायालयों के आदेश/निर्देश भी व्यर्थ सिद्ध कर रही : माननीय सर्वोच्च / उच्च न्यायालयों ने सिद्ध करते हुए कहा है कि पेंशन कर्मचारियों की सेवाओं का अर्जित प्रतिफल है यह कोई अनुकंपा / दया नहीं और आर्थिक स्थिति का रोना रोकर न तो सरकार पेंशन देनदारियों को रोक सकती है और न ही टाल सकती है।
(4) आंदोलन विवशता अनिवार्यता और न्यायसंगत भी :- वृद्ध-अशक्त और रोगी पेंशनर्स को सदैव शोषण की चक्की में पीसती रहकर उन्हें असहनीय मानसिक त्रासदी में प्रदेश सरकार ने इझोंक रखा है। पेंशनर्स को सम्मान पूर्वक जीने के अधिकार का भी हनन कर उन्हें गिडगिडाने / मांगने की स्थिति में ला खड़ा किया है, ऐसे हालात में आंदोलन न केवल विवशता है बल्कि अनिवार्यता भी तथा न्यायसंगत भी क्योंकि इस अन्याय का प्रतिकार न करता अपराध ही होगा।
(5) पेंशन बहाली सरकार की दया नहीं, छीना हक वापस करें:- विन्दु क्रमांक 3 से स्पष्ट
है कि पेंशन सेवाओं का अर्जित प्रतिफल है, तब इसे हटाकर अन्य योजना से कर्मचारियों के जीने की राह दूभर कर उसे तिल-तिल कर मरने के लिए छोड़ देना अमानवीयता नहीं तो और क्या हो सकता है ? सेवा का व्रत लेकर राजनीति में प्रवेश और अनेकानेक सुख-सुविधाओं से सुसज्जित हो आकर्षक वेतन भत्ते तथा 5 सालाना कार्य के एवज में जीवन भर पेंशन, दूसरी ओर वृद्ध असक्त होने तक सम्पूर्ण उर्जा खपाकर सेवा निवृत्ति पाने पर इस सेवा के बदले पेंशन खोकर अभावयुक्त जीवन का उपहार सरकार दें, यह कैसी त्रासदी है ? कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली की मांग मनवाने के लिए आंदोलन की आवश्यकता क्यों ? जन प्रतिनिधियों / सरकार की संवेदनशीलता कहाँ खो गई ? सरकार आंदोलन के लिए कर्मचारियों को विवश न करते हुए तत्काल उनके वाजिव हक (पुरानी पेंशन) की बहाली का आदेश जारी करे।
(6) सरकार चला रहे दल के विरुद्ध मतदान :- जो सरकार वृद्ध अशक्त रोगी पेंशनर्स को दुर्दशा की आग में झोंक दे आगामी विधान सभा / आमचुनाव में उसके विरूद्ध मतदान न केवल पेंशनर्स बल्कि उसका परिवार / नातेदार / इष्टमित्र और परचित भी करेंगे, पेंशनर्स का ऐसा निर्णय भी प्रतिकार के लिए सर्वथा उचित है जो पेंशनर्स समाज द्वारा विवश हो ले लिया गया है।
(7) पेंशनर्स के आगामी आंदोलनात्मककदम : (1) 13 अक्टूबर 2022 गुरूवार :- जिला मुख्यालयों में धरना प्रदर्शन, रैली और आमसभा का आयोजन किया जाकर शासन को ज्ञापन सौंपा जावेगा।
(2) 7 नवंबर 2022 सोमवार संभागीय मुख्यालयों में धरना प्रदर्शन और रैली आयोजित कर कमिश्नर्स के माध्यम से शासन को ज्ञापन सौंपेंगे जिसमें सभी जिलों के पेंशनर्स भाग लेंगे। पश्चात्वर्ती आंदोलन के निर्णय आवश्यकतानुसार बाद में लिए जावेंगे।
पेंशनर्स भाइयों / बहनों से अपील है :- वे अपने अधिकारों/सम्मान की रक्षा में संगठित होकर
तन-मन-धन से आंदोलन को सफल बनायें और यह भी ठान लें कि आवश्यक हुआ तो भविष्य में वे अपने पूरे परिवार को भी आंदोलन का हिस्सा बनाने से पीछे नहीं हटेंगे।
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