धर्म सिवनी

आत्मा की शुद्धि ब्रह्म ज्ञान से और धन की शुद्धि दान से होती है : निर्विकल्प स्वरूप

सिवनी। द्वैत भाव समाप्त होने पर ही परमात्मा से मिलन होता है !ब्राह्मण ,गौमाता, वेद और  यज्ञ सनातन धर्म के मूल हैं, जहां नारायण होते हैं वहां लक्ष्मी का वास होता है। उक्त आशय के उद्गार द्वि पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य महाराजश्री के परम शिष्य पूज्य ब्रहमचारी श्री निर्विकल्प स्वरूप जी ने महाराज बाग भैरोगंज में चल रहे सप्त दिवसीय  ज्ञान यज्ञ के पांचवें दिन कथा प्रसंग में व्यासपीठ से कहा।

 ब्रह्मचारी जी ने कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए गोकुल में श्री कृष्ण जन्म उत्सव मे नंद बाबा ने अनेक प्रकार के दान दिया! सनातन धर्म में दान की महिमा बताते हुए ब्रह्मचारी जी ने कहा की आत्मा की शुद्धि  ज्ञान से धन की शुद्धि दान से शरीर की शुद्धि स्नान से मन की शुद्धि संतोष से होती है! दान, पात्र व्यक्ति को , सदाचारी ब्राम्हण को एवं श्रेष्ठ व्यक्ति को देना चाहिए। दान हमेशा मूल्यवान प्रिय स्तुओं का किया जाता है इसीलिए कन्यारत्न का दान सर्वश्रेष्ठ दान माना गया है, लौकिक दृष्टांत सुनाते हुए ब्रह्मचारी जी ने कहा की जहां नारायण होते हैं वही लक्ष्मी का वास होता है। आज के कथा प्रसंग में ब्रह्मचारी जी ने गोकुल में आनंद और कृष्ण की दिव्य बाल बाल लीलाओं का सुंदर जीवंत चित्रण करते हुए कथा रसिक श्रोताओं को आत्मानंद रस का पान कराया। दुराचारी कंस द्वारा नवजात शिशुओं की हत्या, ब्राह्मणों गौ माता वेद और यज्ञ को नष्ट करने के क्रूर कृत्य का विस्तार से उल्लेख करते हुए, ब्रह्मचारी जी ने कहा कि यज्ञ दान और तप सनातन धर्म के मूल है। जिस देश में गोवंश सुखी नहीं रहता, वहां शांति  नहीं रह सकती। कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए   आप  श्री ने , पूतना उद्धार का वृतांत सुनाते हुए कहा कि अविद्या रूपी पूतना का दुग्ध पान कर ,उसे अपनी धात्री माता की गति प्रदान कर उद्धार किया। अपने कर्मों के कारण कर्मों के कारण कसूर योनि प्राप्त  सकटासुुर, त्रणावर्त, धनकासुर आदि का उद्धार करने के पश्चात कालिया दमन का वृतांत सुनाया।

ब्रह्मचारी जी ने कृष्ण की माखन चोरी, उखल बंधन, कृष्ण का मिट्टी खाना ,तथा उनकी अन्य दिव्य बाल लीलाओं का सुंदर चित्रण करते हुए कहा कि प्रेम के बंधन में परमात्मा भी बंध जाते हैं। आगे कथा प्रसंग में गोकुल से वृंदावन की ब्रजभूमि मे बकासुसुरअघासुर उद्धार कथा बताया।  ब्रजभूमि में वालों के साथ में गाय चराते क्रीड़ा करते कृष्ण को देखकर ब्रह्माजी के मन में जब कृष्ण के परमात्मा होने पर शंका हुई तब श्री कृष्ण ने अपनी रचनात्मक शक्ति का दर्शन करा कर ब्रह्मा जी के अज्ञान का निवारण किया। कालिया दमन प्रसंग का आध्यात्मिक विवेचन करते हुए ब्रह्मचारी जी ने कहा कि मन ही कालिया नाग है जिसकी 101 फन रूपी, इंद्रियां है और श्री कृष्ण अभ्यास वैराग्य और विचार स्वरूप है। आगे के प्रसंग में कृष्ण कन्हैया का बांसुरी वादन तथा ब्रजभूमि में कृष्ण को पति रूप में चाहने के कामना से व्रत करती गोपियों का यमुना में स्नान तथा कृष्ण द्वारा चीर हरण का आध्यात्मिक निरूपण करते हुए ब्रह्मचारी जी ने कहा कि जो अपने चित्त को परमात्मा में लगा देता है उसे कामवासना नहीं व्यापती और परमात्मा से मिलन हो जाता है।

आगे कथा प्रसंग में वृंदावन में अहंकारी देवराज इंद्र के घमंड का नाश करने गोवर्धन पूजन करके कर्म प्रधानता का महत्व प्रतिपादित किया। कथा प्रसंग विराम के पश्चात बालक बालिकाओं द्वारा मटकी फोड़ एवं माखन चोरी की झांकी का प्रदर्शन किया गया।

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