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सिवनी। जीने का ढंग बदलना ही महत्वपूर्ण है क्योंकि कौआ भी यदि सत्संग के प्रभाव में आकर अपनी जीवन शैली बदल देता है तो वह महत्वपूर्ण हो जाता है, भागवत कथा का परिचय कराते हुए व्यासपीठ पर विराजमान पं नीलेश शास्त्री ने वृद्धाश्रम में जारी भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में कथा के दूसरे दिन उपस्थित रसिक श्रोताओं को भागवत कथा का मूल स्वरूप समझाते हुए कहा कि भागवत कथा वेदरूपी वृक्ष है, वृक्षों से निकला फल ही भागवत कथा है जिसका रसपान करना व्यक्ति के जीवन को बदल सकता है।
फलदार वृक्ष व्यक्ति इसीलिए लगाता है कि उसे फल प्राप्त हों, श्रीमद भागवत कथा एक ऐसा फल है जो वृक्ष से सीधा ना गिरकर शाखाओं से होकर जमीन तक पहुंचता है जिसका रसपान करने से सभी को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

भगवान ने मूल रूप से दो गंगाओं की उत्पत्ति की थी जिसमें पहली गंगा भगवान के चरणों से निकलते हुए प्रवाहमान है वहीं भागवत कथा भगवान के मुखारबिंद से निकली हुई कथा थी जिसे भगवान विष्णु ने ब्रम्हा जी को सुनाया जिसके बाद ब्रम्हा जी ने पुत्र नारद को इसका श्रवण कराया वहीं व्यास जी ने इसे लिखकर ऋषियों को समर्पित किया जहां से यह कथा समाज तक पहुंची है।
प्रवाहमान गंगा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अपना घर छोडऩा पड़ता है लेकिन भागवत कथा एक ऐसी गंगा है जो आपके निवास स्थान के आसपास ही आसानी से श्रवण की जा सकती है ऐसे में व्यक्ति अगर रसिक होकर लगातार इस कथा का रसपान करे तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होना संभव होता है।

भक्ति के संबंध में जानकारी देते हुए नीलेश शास्त्री ने कहा कि दो तरह के भाव से भक्ति की जाती है जहां व्यक्ति पर्वों के अनुसार पूजा अर्चना करता है जिसके बाद वह पुन: अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त हो जाता है जबकि अनिमितता भक्ति एक ऐसा माध्यम है जिसके लिए किसी पर्व की आवश्यकता नहीं पड़ती। निरंतर रसपान करने से गोविंद का नाम लेना ही उद्धार का माध्यम है।
वृद्धाश्रम में जारी भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में उपस्थित भक्तों को संबोधित करते हुए पं नीलेश शास्त्री ने बताया कि भगवान कहते हैं कलयुग में व्यक्ति दूध लेने के लिए घर से नहीं निकलता लेकिन मदिरा पान करने के लिए वह दुकान तक पहुंच जाता है, कहा जा सकता है कि व्यक्ति स्वयं में बदलाव करने के लिए जब तक भागवत कथा का रसपान नहीं करेगा तब तक वह जीवन के असल स्वरूप के रस का पान करने में सफल नहीं होगा।
हरिनाम का जाप जिंदगी की नाव को वैतरणी से पार लगा सकता है, व्यक्ति जन्म लेते ही मोह की मदिरा का पान कर चुका होता है ऐसे में उम्र बढऩे के साथ मोह का त्याग करना अति आवश्यक होता है क्योंकि इसी जाल में फसकर व्यक्ति गोविंद नाम को भूलकर दैनिक दिनचर्या में इतना व्यस्त हो जाता है कि वह भगवान नाम का जाप भी भूल जाता है। ऐसे में लगातार रसिक भक्तिभाव से भागवत कथा का रसपान करें तो उनके जीवन का उद्धार होना निश्चित है।

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