सिवनी। प्राचीन काल में सनातन परंपरा और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में सबसे बड़ी भूमिका आदि शंकराचार्य की मानी जाती है। 2500 वर्ष से चली आ रही पवित्र शंकराचार्य परम्परा में सिवनी का अपना अलग महत्व है।जहां भगवान आदि शंकराचार्य जी के द्वारा स्थापित शिव मंदिर भी हैं, जिसे हम मठ मंदिर के नाम से जानते हैं और मठमंदिर सिवनी के भक्तों की आस्था का केन्द्र है। द्विपीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के द्वारा संस्थापित हिंगलाज सेना की राष्ट्रीय अध्यक्ष लक्ष्मी मणि शास्त्री के द्वारा राष्ट्रीय हिंगलाज सेना के सिवनी जिला मीडिया प्रभारी अश्वनी मिश्रा के माध्यम से बताया गया है कि स्वयंभू और पाखंडी शंकराचार्यों से सावधान रहने के साथ-साथ अपने धर्म कर्म का पालन करने की आवश्यकता है।
उन्होंने बताया कि वर्तमान समय की बात करें तो इस पुनीत परम्परा के सर्वोच्च आचार्य जगद्गुरु शंकराचार्य ज्योतिष एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर परम पूज्य महाराज श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज की जन्म भूमि भी है।
इस परम्परा के इतिहास में एक साथ दो पीठों को सुशोभित यदि किसी ने किया है तो वो हैं महाराज श्री ही है।आज महाराज श्री के स्तर का कोई भी महापुरुष पूरे विश्व में ढूढ़ने से नहीं मिलेगा। धर्म नगरी सिवनी में उनका जन्म लेना ही अपने आप में गौरव का विषय है। होना तो यह चाहिए कि सिवनी के निकटस्थ जिलों में यदि कोई पाखंडी और स्वयंभू शंकराचार्य घूमे तो सिवनी के लोगों को वहाँ जाकर लोगों को आगाह करना चाहिए।किन्तु जब हम यह देखते हैं कि सिवनी में कहीं कहीं कुछ लोगों के द्वारा भगवान आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित चार मान्य पीठों के अतिरिक्त किसी पांचवी पीठ के आचार्य के रूप में किसी व्यक्ति को स्थान दिया जा रहा है तो ऐसे अवसर पर मैं यह कहना आवश्यक समझती हूं कि सिवनी की जनता को पाखंडियों से सावधान होकर शुद्ध सनातन धर्म के अनुसार अपने धर्म कर्म का पालन करना चाहिए।
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