सिवनी। कृषि विज्ञान केंद्र, सिवनी के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. एनके सिंह एवं खाद्य विज्ञान विषेषज्ञ जीके राणा की संयुक्त सलाह -सब्जियों तथा फल में विभिन्न विटामिन, खनिज, कार्बोहाइड्रेट, वसा व प्रोटीन पाये जाने के कारण ये हमारे दैनिक भोजन में महत्वपूर्ण स्थान रखते है। इसके अतिरिक्त इनमें फ्लौओनायड्स फीनोलिक अम्ल, ग्लूकोसाइनोलेट, कैरोटीनायड्स प्रचुरता से पाये जाते है। इन तत्वों में एण्टीआक्सीडेंट गुण होने के कारण शरीर की इम्युनिटी को बढाकर विविध प्रकार की बीमारियों से लडने की क्षमता को बढाया जा सकता है। जो कि कोरोना काल में अति आवश्यक है।
कोरोना कोविड-19 महामारी के चलते हमें गत वर्ष एवं इस वर्ष भी लाकडाउन की समस्या से जूझना पड रहा है और इसके अलावा कोई भी हल नहीं है, लेकिन दैनिक उपभोग के लिए बाजार जाना भी जरूरी है जो कि खतरे से खाली नहीं है भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग के निर्देशानुसार हमें मास्क लगाना, सोशल डिस्टेंसिंग एवं बार-बार सेनेटाईजेसन जैसी विशेष बातों का ध्यान रखना होगा।
इन सब से बचते हुए अगर हमें सब्जियां व फल स्वयं के छत (टेरेस गार्डन) पर ही मिल जाये तो इससे अच्छा क्या होगा।शहरी क्षेत्रों में रहने वालों के लिए यह जमीन की अल्पता के चलते संभव नहीं हो पाता है। जिससे निजाद पाने हेतु छत पर आंगन गमलों, कूलर की खाली टंकीयों, प्लास्टिक बैग, पॉलीथिन सीट एवं प्लास्टिक के खाली डिब्बों में सब्जियां उगाने से कोरोना जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है। शुद्ध सब्जियां भी मिल सकेगी और शेष सब्जियों को विक्रय कर धनोपार्जन भी किया जा सकता है। संतुलित भोजन के लिए एक वयस्क व्यक्ति को प्रतिदिन 85 ग्राम. फल एवं 300 ग्रा. सब्जियों का सेवन करना चाहिए (125 ग्रा. हरी पत्तेदार ़ 100 ग्राम जड वाली ़ 75 ग्रा.) अन्य प्रकार की सब्जियों का सेवन करना चाहिए। बगीचा (टेरेस गार्डन) में रोग एवं कीट प्रबंधन -सब्जियों में अन्धा धुन्ध कीटनाषकों का प्रयोग होने से जैविक सन्तुलन प्रभावित हुआ है। जैविक उपचार प्रभाव में धीमे, सस्ते एवं सुरक्षित एवं पर्यावरण रक्षक माने जाते हैं गृहवाटिका स्तर पर परम्परागत उपलब्ध जैव पदार्थों एवं प्राकृतिक साधनों द्वारा रोग एवं कीट प्रबंधन अच्छा रहता है।
1. नीम बीज – नीम के बीजों में एजाडिरेक्टिन, नोम्बीडीन एवं मेलाइट्राल आदि तत्व पाये जाते हैं। ये कीटनाषी, फफूंदनाषी तथा विषाणुनाषी है। 2 कि.ग्रा. नीम के बीजों को पीसकर 7 दिन के लिये 5 लीटर पानी में रखें तत्पष्चात् 100 लीटर पानी में घोल को मिलाकर 1000 वर्ग मीटर क्षेत्र में छिड़काव कर सकते हैं।
2. नीम तेल – नीम के तेल को कीटनाशक के रूप में प्रयोग करने से कीटों का जीवन चक्र रुक जाता है जिसके कारण कीटों की वृद्धि नहीं हो पाती है इससे जैसिड एफिड आदि कीट नियंत्रित हो जाते हैं।
3. नीम की पत्तियां – नीम की पत्तियां को पानी में उबालकर तैयार घोल को पौधों पर छिड़कने से एफिड (माहू), हेयरी कैटर पिलर, पभक्षक कीट सूंडिया नियंत्रित होती है।
4. मिट्टी का तेल एवं तारपीन के तेल का प्रयोग – पेड-पौधों में सुरंग बनाने वाले कीटों की रोकथाम तने में सुराख करने वाले कीटों को मारने के लिए सुराखों में सिरिंज से ये तेल डालकर गीली मिट्टी से सुराखों को बन्द कर देते है।
5. ट्राईकोडर्मा का प्रयोग – यह एक जैविक फफॅंद नाशक है ट्राइकोडर्मा का प्रयोग रोपण या बीज बुवाई के पूर्व खेत में 5-6 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के मान से करते है। ट्राईकोडर्मा के प्रयोग से फफॅंद जनित बीमारियों की रोकथाम होती है।
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