मंत्र के माध्यम से ध्यान करने से अमृत दायनी प्राण शक्ति मिलती है

सिवनी। श्री पारसनाथ दिगंबर जैन बड़ा मन्दिर सिवनी मध्य प्रदेश में विराजमान महासमाधि धारक परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से दीक्षित एवं परम पूज्य आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य
मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज, मुनि श्री भाव सागर जी महाराज के सानिध्य में 5 अक्टूबर 2025 को मांगलिक क्रियाएं संपन्न हुई।

कमेटी ने जानकारी दी कि 7 अक्टूबर 2025 को शरद पूर्णिमा के अवसर पर गुरु ज्ञान महोत्सव मनाया जाएगा जिसके अंतर्गत प्रात प्रातः 8 बड़े प्रवचन हाल में आचार्य श्री की विशिष्ट पूजन, मांगलिक क्रियाएं संपन्न होगी, पौधे रोपण किए जाएंगे, गरीबों को वस्त्र औषधि फल आवश्यक सामग्री वितरित की जाएगी, गौशाला में गौग्रास का दान किया जाएगा, रात्रि 8बजे शुक्रवारी चौक में एक शाम गुरुवार के नाम भजन संध्या महा आरती का आयोजन किया गया है।

ब्रह्मचारी मनोज जबलपुर के निर्देशन में 23अक्टूबर 2025 को दयोदय जीव रक्षा संस्थान, (गौशाला) सिवनी मध्यप्रदेश में प्रातः काल की बेला में परम पूज्य समाधिस्थ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चरण चिन्ह नवीन वेदी पर स्थापित होंगे, इसके अंतर्गत वेदी शुद्धि, अष्ट कुमारियों द्वारा मांगलिक क्रियाएं, संपन्न होगी,आचार्य छत्तीसी विधान होगा
23 अक्टूबर 2025गुरुवार श्री पारसनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में दोपहर 2 बजे ,घटयात्रा ,वेदी शुद्धि की मांगलिक क्रियाएं होगी।

24 अक्टूबर 2025 शुक्रवार को वेदी प्रतिष्ठा के अंतर्गत प्रातः 6: 30बजे घटयात्रा, याग मंडल विधान, , मुनि श्री के प्रवचन, वेदी पर प्रतिमाएं विराजमान होगी।

इस अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री भावसागर जी महाराज ने कहा कि ध्वनि जब भावना से मिलकर शब्द रूप बनती है तो उसमें एक मैगनेटिक करेंट ( चुंबकीय लहर ) उत्पन्न होती है । मंत्र के माध्यम से ध्यान करने से अमृत दायनी प्राण शक्ति मिलती है। अच्छी मुद्राओं से स्मरण शक्ति का विकास होता है, स्फूर्ति का अनुभव होता है, मानसिक शांति मिलती है, आत्मिक योग्यताओं का विकास होता है । प्रमाद दूर होता है, एकाग्रता बढ़ती है, स्वतंत्र व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

मंदिर, प्रतिमा, पूजन,भक्ति एवं मंत्र जाप आदि धार्मिक क्रिया ही चारों ओर के वातावरण आभामंडल (इलेक्ट्रोडायनेमिक फील्ड) और अपने विचारों को बदलने का सशक्त माध्यम है इन क्रियाओं से सीधे पाप कर्म नष्ट नहीं होते बल्कि आसपास का माहौल बदलता है उससे विचार बदलते हैं विचारों की परिवर्तन से कर्म नष्ट होते हैं।

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