इंदौर सुमति धाम में पट्टाचार्य महोत्सव में सम्मिलित हुई सिवनी गौरव पूज्य आर्यिका विदित श्री माताजी
सिवनी। वर्ष 2003 में पूज्य आचार्य श्री विरागसागर महाराज की सुशिष्या आर्यिका श्री विशिष्ट श्री माताजी के चातुर्मास के दौरान पूज्य माताजी की साधना एवं वात्सल्यता का अभूतपूर्व प्रभाव नगर में जन्मी स्वर्गीय श्री जय कुमार दिवाकर श्रीमती साधना दिवाकर की ज्येष्ठ सुपुत्री रिंकी के जीवन पर ऐसा पड़ा कि इस कन्या का सारा जीवन ही परिवर्तित हो गया
और अब तक गृहस्थ जीवन में रहने वाली कन्या वैराग्य मार्ग की ओर बढ़ चली और इसी क्रम को बढ़ाते हुए रिंकी ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण कर लिया।
कालांतर मे यही कन्या पूज्य आर्यिका विदित श्री माता जी के नाम से सिवनी नगर की अनुपम पहचान बनी । लगभग 5 वर्ष पूज्य आर्यिका संघ में रहकर ब्रह्मचर्य व्रत की साधना के पश्चात वर्ष 2010 में झीलों की नगरी उदयपुर राजस्थान में पूज्य आचार्य श्री विरागसागर जी महाराज के करकमलों से 11प्रतिमा के व्रत आत्मसात कर ब्रह्मचारिणी रिंकी ने क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण की इसके 2 वर्ष उपरांत ही वर्ष 2012 में गुलाबी नगरी जयपुर में पूज्य आचार्य श्री ने उन्हें आर्यिका दीक्षा देकर नारी सन्यास के सर्वोच्च पद पर दीक्षित कर कृतार्थ किया।
बाल्यकाल से ही रिंकी विलक्षण एवं कुशाग्र बुद्धि की धनी थी विद्यालयीन शिक्षा के दौरान वे सदैव ही अब्बल रही।उनकी यही विलक्षणता आध्यात्म के क्षेत्र में भी दिखाई देती है।
पूज्य माताजी का शास्त्र स्वाध्याय, विविध धार्मिक विषयों का अध्ययन इस अल्प वय में उनकी विलक्षणता को प्रगट करता
पूज्य माताजी को संस्कृत प्राकृत अंग्रेजी जैसी गूढ़ भाषाओं का अद्भुत ज्ञान है।
38 वर्ष की वय में भी उन्होंने जैन धर्म के अनेक गूढ़तम जटिल ग्रंथो का अध्ययन कर ज्ञान के क्षेत्र में यशस्विता प्राप्त की है अपने ज्ञान ओजस्वी वाणी एवं तपश्चर्या के प्रभाव से वे जैन श्रमणी जगत में एक आदर्श मान गौरव के रूप मे विख्यात है। पूज्य माता जी अपनी निष्कलंक साधना, कठोर तपस्या एवं उद्भट मनीषिता से मात्र अपने दीक्षा प्रदाता गुरू एवं प्रेरणा स्त्रोत आर्यिका विशिष्ट श्री माताजी का नाम ही नहीं अपितु समग्र सिवनी नगर के नाम को गौरवान्वित किया है उनके दीक्षा संयम दिवस पर सिवनी स्थित श्री दिगंबर जैन छोटे मंदिर जी में जहां पूज्य आर्यिका विदित श्री माताजी ग्रहस्थ जीवन में बालिका रिंकी के रूप में अतिशय कारी मूलनायक भगवान चंद्रप्रभु स्वामी की अत्यंत भक्ति भाव पूर्वक पूजन आराधन किया करती थी उसी जिनालय में माताजी के उत्तम स्वास्थ्य, उत्तम रत्नत्रय रूपी निष्कलंक दीर्घायु धर्म मयी यशस्वी जीवन की मंगलता की कामना के साथ प्रभु का महाभिषेक एवं अनेक ऋद्धि सिद्धि प्रदायक बीजाक्षरी मंत्रों से संयुक्त अखंड शांतिधारा की गई। इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण कर श्रद्धालुओं ने उनका गुणानुवाद कर उनके प्रति कृतज्ञता प्रगट की।
विगत वर्ष हुआ था सिवनी आगमन – विगत वर्ष 2024 के अप्रैल माह में दीक्षा के 14 वर्ष उपरांत अपनी वैराग्य प्रेरणा दायी पूज्य आर्यिका श्री विशिष्ट श्री माताजी के साथ जन्मभूमि सिवनी में भव्य आगमन हुआ था और यहां श्री संघ लगभग 8 दिन का प्रवास भी रहा। सिवनी में ही आर्यिका संघ ने अपने दीक्षा शिक्षा गुरू आचार्य विराग सागर जी महाराज के विराट संघ की भव्य आगवानी कर स्वागत किया था।सिवनी से आचार्य श्री के साथ ही समग्र संघ महाराष्ट्र राज्य की और प्रस्थित हुआ था जहां विगत वर्ष पूज्य आचार्य महाराज का सल्लेखना पूर्वक महाप्रयाण हुआ। वर्तमान में आर्यिका विदित श्री माताजी आर्यिका विशिष्ट श्री माताजी के संघस्थ धर्म प्रभावना कर रही है। उनकी प्रवचन शैली आगंतुक श्रोताओं को भाव विभोर कर देने वाली होती है। वर्तमान में पूज्य माताजी इंदौर सुमति धाम गोधा स्टेट में गणाचार्य विरागसागर जी महाराज के पट्ट विरासत पर विराजित होने वाले यशस्वी आचार्य विशुद्धसागर महाराज के पट्टाचार्य महोत्सव के आयोजन में सम्मलित हुई है। जहां लगभग 400 से भी अधिक मुनि आर्यिका संघ के साधक विराजित हैं।
विगत दिवस उनके ग्रहस्थ अवस्था के अग्रज व अनुजा सौरभ दिवाकर एवं रिंकल ने
अपने परिवारों के साथ जाकर पूज्य माताजी के दीक्षा संयम दिवस पर उनके संयम की अनुमोदना कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
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