सिवनी। अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद (ABAP) के तत्वावधान में “राष्ट्रीय न्यायिक आयोग” बनाए जाने की के लिए पूरे देश में अपने राज्यों के महामहिम राज्यपाल को कलेक्टर के माध्यम से ज्ञापन प्रस्तुत किए जाने का आवाहन था इसी कड़ी में अधिवक्ता परिषद जिला इकाई सिवनी के अधिवक्तागणों के द्वारा जिला उपाध्यक्ष जयदीप सिंह बैस के नेतृत्व में ज्ञापन प्रस्तुत किया गया।
उच्च न्यायपालिका में हाल ही में हुई घटनाओं ने एक बार फिर देश को झकझोर दिया है। अधिवक्ता परिषद ने विभिन्न क्षेत्रों के महत्वपूर्ण व्यक्तियों से बातचीत की है और इस संबंध में उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में वकालत करने वाले अधिवक्ताओं से फीडबैक प्राप्त किया है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करते समय, हमें एक स्थायी तंत्र का निर्माण करना चाहिए जो किसी व्यक्ति विशेष की अंतरात्मा के प्रति नहीं बल्कि जो समाज के प्रति जवाबदेह हो एवं जो पारदर्शी और सत्यापन योग्य हो ।
अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद (ABAP) ने ज्ञापन के माध्यम शासन के समक्ष निम्न मांगे रखी हैं:– 1) न्यायिक आचरण की नियुक्ति और निगरानी की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी तरीके से करने के लिए एक नया कानून तत्काल लाया जाए, साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि इस प्रक्रिया में न्यायपालिका की प्रमुख भूमिका हो।
2) जब तक यह कानून प्रभावी नहीं हो जाता, तब तक कॉलेजियम के माध्यम से उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया जारी रह सकती है, तथा इसमें पूर्व-विचार जांच, आदि सहित अधिक पारदर्शिता लाई जा सकती है।
3) वर्तमान न्यायाधीशों की जवाबदेही (अदालतों के संचालन सहित) को सुनिश्चित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियों के साथ एक स्थायी समिति का गठन किया जाना चाहिए | माननीय न्यायाधीशों के सम्मेलन में जवाबदेही के लिए किए गए बेंगलुरु घोषणापत्र को इस स्थायी तंत्र के माध्यम से पारदर्शी, सत्यापन योग्य तरीके से व्यवहार में लाया जाना चाहिए ।
4) यदि मांग के अनुसार समिति अभी नहीं बनाई जा सकती है, तो जून 2025 से पहले भी उच्च न्यायपालिका के खिलाफ शिकायतों के निराकरण हेतु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सभी बाधाओं को हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है। 5) उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को तबादले के लिए नोटिस दिया जा सकता है यदि उनके परिवार के सदस्य, करीबी रिश्तेदार संबंधित उच्च न्यायालय या उस राज्य के अधीनस्थ न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में वकालत करते हैं। 6) यदि यह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश से संबंधित है, तो उस विशेष पारिवारिक सदस्य को उस न्यायाधीश के सेवानिवृत्त होने तक सर्वोच्च न्यायालय में वकालत नहीं करनी चाहिए। 7) यदि आवश्यक हो, तो प्रासंगिक क़ानूनों में संशोधन करके, सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों और मध्यस्थता के लिए सेवानिवृत्ति के बाद तीन साल की अवधि का पालन किया जाना चाहिए। 8) सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में भविष्य की नियुक्तियाँ समान सेवानिवृत्ति आयु के अधीन होना चाहिए। 9) उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों और उनके परिवार के सदस्यों की संपत्ति हर साल संबंधित न्यायालयों की वेबसाइटों पर अपलोड की जाना चाहियें। 10) प्रत्येक उच्च न्यायालय में अन्य उच्च न्यायालयों के एक तिहाई न्यायाधीश होने चाहिए। यह उल्लेखनीय है कि इसे न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया के कार्यकाल के दौरान पेश किया गया था और कुछ हद तक लागू किया गया था। उपरोक्त मांगों के संबंध मे आवश्यक कार्यवाही करने की मांग की गई।
ज्ञापन सौंपने के पश्चात अधिवक्ता परिषद सिवनी ने पहलगाम में हुई घटना की निंदा की तथा भारत सरकार द्वारा उठाए गए कठोर कदमों का स्वागत किया घटना मैं मारे गए भारतीय हिंदुओं को शोक श्रद्धांजलि अर्पित की गई।उक्त जानकारी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से अधिवक्ता परिषद सिवनी के जिला महामंत्री एवं पूर्व शासकीय वरिष्ठ अधिवक्ता श्री पहलाद यादव द्वारा जारी की गई।
जिला महामंत्री, अधिवक्ता परिषद–सिवनी एवं पूर्व शासकीय वरिष्ठ अधिवक्ता प्रहलाद यादव ने बताया कि उक्त कार्यक्रम में वरिष्ठ अधिवक्ता नोटरी विनोद सोनी, प्रदीप बैस, राधेश्याम बघेल, शासकीय अधिवक्ता नेतराम चौरसिया, अवधेश तिवारी, वीरेंद्र कुमार सिंह, मुकेश चीकू सक्सेना, सुरभि बघेल, श्रीमती प्रांजल, रामभुज बघेल, मनोज कनौजिया,तरुण विश्वकर्मा, मनोज प्रजापति, अदीप आर्य, नवीन आहूजा, पदाधिकारी संतोष मिश्रा, अनिल यादव,सचिन सोनी,अशोक कुशवाहा, जगदीश प्रसाद नामदेव, देवेंद्र डहरवाल, सौरभ दुबे, संजुल सोनी, हरिनारायण कुशवाहा, गोपाल बरमैया, राम सनोडिया,राजेश सनोडिया न्याय सेवा केंद्र प्रभारी दीपक तिवारी आदि अधिवक्तागण ने प्रमुखता से अपनी उपस्थिति दी।

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