धर्म मध्य प्रदेश सिवनी

विपरीत परिस्थितियां मनुष्य के सोए हुए मनोबल को जगाती हैं : प्रज्ञानानंद सरस्वती

सिवनी। सूर्य द्वारा मेघों का आवरण-तिरोहण एवं संघर्ष और विषमताएं जीवन का अवरोध नहीं, अपितु मानवीय सामर्थ्य को उजागर करने वाले साधन हैं, प्रत्येक परिस्थिति में प्राणी को धैर्य रखना चाहिए, विपरीत परिस्थितियां मनुष्य के सोए हुए मनोबल को जगाती हैं और उसकी दृढ़ता में बढ़ोतरी करती हैं। जो विपत्तियों से घबराता है, वह निर्बल है, विपत्तियाँ तो हमें सावधान करती हैं, सजग बनाती हैं। उक्ताशय के प्रवचन"नंदीकेश्वर धाम", परशुराम भवन, दर्शिका लॉन, बरघाट रोड, सिवनी में चल रही अष्टोत्तरशत् श्रीमद भागवत कथा के पंचम दिवस की कथा में बाललीला व गोवर्धन कथा के साथ जगद्‌गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री प्रज्ञानानंद सरस्वती जी महाराज ने पांडाल में उपस्थित श्रद्धालुओ से कही

महाराज जी ने कहा कि उन्नति और विकास का मार्ग कठिनाइयों के कंकरीले पथ से ही होकर जाता है। जो व्यक्ति जीवन में कठिनाइयों से घबराता है उसे उन्नति की आकाँक्षा नहीं करनी चाहिए। उन्नति का अर्थ ही ऊंचाई है, जिस पर चढ़ने के लिये अधिक परिश्रम करना पड़ता है। अगर जीवन में आत्मबल, धैर्य, साहस, पुरुषार्थ, विवेक और ईश्वर आश्रय हो तो हरेक परिस्थिति में विजय प्राप्त कर निरंतर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ा जा सकता है।

वास्तव में सफल वही है जो विषम परिस्थितियों और अड़चनों में भी प्रसन्न रहे,स्वस्थ रहे, जीवन का संतुलन न खोए और अपने आदर्शों को न छोड़े। एकाग्रता, प्रसन्नता व पवित्रतापूर्वक पुरूषार्थ करते हुए वर्तमान में जीना और हर परिस्थिति में सम भाव रखना ही योग है। अतीत का शोक, वर्तमान की आसक्ति और भविष्य के भय को त्याग कर पूर्णरूपेण कर्मशील व सात्विक जीवन ही हमारी सर्वोपरि प्राथमिकता होनी चाहिए। यही हमारे स्वास्थ्य का प्रमुख आधार बनेगी,हमारे उत्थान की नींव के लिए हमारे भूतकाल, वर्तमान और भविष्य के बीच आपसी संबंध और निष्ठा आवश्यक है। कठिनाईयों के समय अपने लक्ष्यों का पीछा करना न छोड़ें।

कठिनाईयों को अवसरों में बदले। यदि आप दृढ़ संकल्प और पूर्णता के साथ काम करते हैं, तो सफलता आपका पीछा करेगी। अवसर आपके चारों ओर हैं, इन्हें पहचानिए और इनका लाभ उठाइए। बड़ा सोचिये, दूसरों से पहले सोचिये और जल्दी सोचिये क्योंकि विचारों पर किसी एक का अधिकार नहीं है। राग और द्वेष से मुक्त बनकर समता भाव धारण करना चाहिए। जहां शंका होती है, वहां श्रद्धा नहीं होती। जहां श्रद्धा होती है वहां शंका नहीं रह सकती। ईश्वर है या नही, हमने कभी देखा नही। इस प्रकार की शंकाएं व्यक्ति की श्रद्धा को भ्रष्ट करती है। परमेश्वर परमात्मा को हृदय में धारण करना, हर पल उनका स्मरण करना, प्रतिदिन उनके दर्शन-पूजन करना, यह हमारी आर्य संस्कृति है। उन्नति और विकास का मार्ग कठिनाइयों के कंकरीले पथ से ही जाता है। जो व्यक्ति जीवन में कठिनाइयों से घबराता है उसे उन्नति की आकाँक्षा नहीं करनी चाहिए। उन्नति का अर्थ ही ऊंचाई है, जिस पर चढ़ने के लिये अधिक परिश्रम करना पड़ता है। दिन और रात के समान सुख-दु:ख का कालचक्र सदा घूमता ही रहता है। जैसे दिन के बाद रात्रि का आना अवश्यम्भावी है, वैसे ही सुख के बाद दुःख का भी आना अनिवार्य है। दुःख भी एक तरह की परीक्षा होती है। जैसे स्वर्ण अग्नि में तपकर अधिक सतेज बनता है, वैसे ही धैर्यवान मनुष्य विपत्तियों का साहस के साथ सामना करते हुए जीवन संग्राम में विजय प्राप्त करता है

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