सिवनी। गत दिवस सिद्ध पीठ मठ मंदिर सिवनी में धर्म युक्त एक फेलेक्स का कुछ हिस्सा को फाड़े जाने पर काफी विवाद हुआ।
अब इस घटना क्रम में क्या उचित है, और क्या अनुचित? यह गहन चिंतन का विषय है। एक प्रबुद्ध वर्ग भी चिंतित व चिन्तन में है।
पंडित श्री सनत उपाध्याय ने इस मामले में बताया कि सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्माचार्य शंकराचार्य के पद पर प्रतिष्ठित होने की यह विधि कहां तक उचित है? सन 1973 में हमारे विद्यार्थी जीवन की बात मुझे आज भी याद है काशी में पूज्यपाद् जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज के व्यक्तित्व योग्यता शास्रज्ञान एवं विद्वता से प्रभावित होकर स्वामी श्री करपात्री जी एवं काशी विद्वत्परिषद् के विद्वानों ने ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य का पद स्वीकार करने के लिए आग्रह किया था और पूज्य महाराज श्री ने यह कह कर कि मै इस पद के योग्य नहीं हूं किसी और को इस गद्दी पर बैठाइये। सबके बार बार आग्रह किए जाने और जोर दिए जाने पर महाराज श्री ने बड़ी नम्रतापूर्वक इस पद को स्वीकार किया और अपने पूरे जीवन काल तक पद के अनुरूप अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह किया और हम सिवनी क्षेत्रवासियों को गौरवान्वित किया। ऐसे महत्वपूर्ण पद पर स्वयं को दो दो पीठों का स्वयम्भू शंकराचार्य घोषित करने में जरा भी सोच विचार संकोच या आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता नहीं समझी। इससे हमारे सनातन धर्म की गरिमा को ठेस पहूंची है। विधर्मियों को हमारे सनातन धर्म की मजाक उड़ाने का एक और अवसर मिला है।
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