सिवनी। नगर के बबरिया मार्ग स्थित गहलोत भवन के सामने वट वृक्ष के नीचे कल दिन गुरुवार को वट सावित्री पूजा की गई पूजन करने आई महिलाएं श्रीमति स्वाति शालू रजक एवं श्रीमती शिखा सोनिया रजक , श्रीमति साक्षी चौधरी , श्रीमती ममता चौधरी, श्रीमती लक्ष्मी अमूले , श्रीमती उमा श्रीवास्तव , श्रीमती लक्ष्मी पटेल , श्रीमती राजेश्वरी , श्रीमती नीतू बघेल ने जानकारी देते हुए बताया कि इस दिन महिलाएं वट वृक्ष का विधि विधान पूर्वक पूजन अर्चना की महिलाएं वट सावित्री पूजा 6 जून प्रातः 657 बजे से लेकर शाम 5:38 बजे तक कर सके की अभिजीत मुहूर्त दिन में 11:36 बजे से दोपहर 12:54 बजे तक था इस अवधि में पूजा अर्चना करना विशेष फलदाई रहा।
राकेश मालवीय ने जानकारी देते हुए बताया कि सत्यवान सावित्री की कथा इस प्रकार है राजश्री पशुपति की एकमात्र संतान थी सावित्री ने वनवासी राजा घुमत्सेन के पुत्र सत्यवान से विवाह किया था लेकिन जब नारद जी ने उन्हें बताया कि सत्यवान की आयु आदि है तो भी सावित्री ने अपना फैसला नहीं बदला और सत्यवान से सब कुछ जानबूझकर शादी कर ली सावित्री सभी राजमहल के सुख और राजभवन का त्याग कर सत्यवान के साथ उनके परिवार की सेवा करते हुए वन में रहने लगी जिस दिन सत्यवान के प्राण त्यागने का दिन था उसे दिन वह लड़कियां काटने जंगल गए हुए थे अचानक बेहोश होकर गिर पड़े उसे समय यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए तीन दिन से उपवास में रह रही सावित्री को पता था कि क्या होने वाला है इसलिए बिना विकल हुए उन्होंने यमराज से सत्यवान के प्राण न लेने की प्रार्थना की लेकिन यमराज नहीं माने तब सावित्री उनके पीछे-पीछे ही जाने लगी कई बार मना करने पर भी वह नहीं मानी तो सावित्री के साहस और त्याग से यमराज प्रसन्न हुए और कोई तीन वरदान मांगने को कहा सावित्री ने सत्यवान के दृष्टिहीन माता-पिता के नेत्रों की ज्योति मांगी उनका लिऐ राज मांगा और अपने लिए 100 पुत्रों का वरदान मांगा। तथास्तु कहने के बाद यमराज समझ गए कि सावित्री के पति को साथ ले जाना अब संभव नहीं उन्होंने सावित्री को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़कर चले गए।
वहां से अंतर्ध्यान हो गए उस समय सावित्री अपने पति को लेकर वट वृक्ष के नीचे ही बैठी थी इसलिए इस दिन महिलाएं अपने परिवार और जीवनसाथी की दीर्घायु की कामना करते हुए वट वृक्ष को भोग अर्पण करती हैं उस पर धागा लपेटकर पूजा करती है।
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