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अभिनव आचार्य पद पर आचार्य श्री के उत्तराधिकारी होंगे ज्येष्ठ निर्यापक श्रमण मुनि श्री समयसागर जी महाराज
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सिवनी। जैन श्रमण जगत में रविवार का सूर्य एक महान संत के अवसान का दुखद संदेश लेकर उदित हुआ।
शनिवार और रविवार के दरमियान रात्रि 2.35 पर श्रमण जगत के उन्नायक एवं दिगंबरत्व के प्रतिमान संत शिरोमणी आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज छत्तीसगढ़ राज्य स्थित चंद्रोदय तीर्थ डोंगरगड़ में अत्यंत शांत परिणामों के साथ महामंत्र णमोकार का जाप करते करते सल्लेखना समाधि पूर्वक महाप्रयाण को प्राप्त हुए।
यह निशब्द दुखद समाचार द्रुत गति से सारे भारत वर्ष के साथ देश विदेश में फैल गया। आस पास के सागर,ललितपुर,कटनी,सतना,रीवा,सिवनी नागपुर,छिंदवाड़ा,मंडला आदि अनेक स्थलों से लाखो भक्तो का जमावड़ा कुछ ही घंटो में अपने आराध्य की एक झलक पाने की कामना से डोंगर गड़ पहुंच गया।
दूर दराज के क्षेत्रों से आचार्य श्री के विशिष्ठ भक्त चार्टड प्लेन द्वारा अंतिम दर्शनों को उपस्थित हुए।सारा छत्तीसगढ़,महाराष्ट्र मध्यप्रदेश
सहित पूरा भारत वर्ष शोक की लहर में डूब गया।
पूज्य निर्यापक मुनि योगसागर,समतासागर,प्रसाद सागर,अभयसागर, पूज्यसागर,संभवसागर, निसीमसागर, नीरजसागर महाराज आदि शिष्यों ने अंतिम समय पर गुरू देव की अभूतपूर्व सेवा की।
सिवनी से पूज्य आचार्य श्री का विशेष लगाव एवं आशीर्वाद रहा। वर्ष 1980 से वर्ष 2014 तक इन 34 वर्षो में पूज्य श्री का 9 बार सिवनी की धरा पर अपने विशाल संघ के साथ पदार्पण हुआ।
वर्ष 1991 में उनके 35 दिनों के प्रवास में मानस्तंब का विराट पंचकल्याणक गजराथोत्सव आपके ससंघ सानिध्य में आयोजित हुआ था। आपके आशीर्वाद से उनके विद्वान सुशिष्य गण सिवनी की धरा पर ग्रीष्म शीत एवं वर्षा योग का प्रवास अपने सानिध्य के साथ प्रदान कर चुके है।
वर्तमान में आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने 6 फरवरी को आचार्य पद त्याग दिया था ।
- पूर्ण जागृतावस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए 3 दिन के उपवास गृहण किया संघ का प्रत्याख्यान कर दिया, उन्होंने प्रत्याख्यान व प्रायश्चित देना बंद कर दिया था और अखंड मौन धारण कर लिया था।
6 फरवरी मंगलवार को दोपहर शौच से लौटने के बाद संघ के मुनिराजों को अलग भेजकर निर्यापक श्रमण मुनिश्री योग सागर जी से चर्चा करते हुए संघ संबंधी कार्यों से निवृत्ति ले ली और उसी दिन आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने आचार्य पद के योग्य प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री समयसागर जी महाराज को योग्य समझा और तभी उन्हें आचार्य पद दिया जावे ऐसी घोषणा कर दी थी जिसकी विधिवत जानकारी 18 फरवरी को दी जाएगी।
गुरुवरश्री जी का डोला चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ में दोपहर 1 बजे निकाला गया। जहां अपार जन समुदाय के मध्य चंदन,नारियल एवं कपूर की चिता पर पद्मासन अवस्था में पवित्र अग्नि से आचार्य श्री की देह चन्द्रगिरि तीर्थ पर ही पंचतत्व में विलीन हुई। सल्लेखना के अंतिम समय श्रावकश्रेष्ठी अशोक जी पाटनी आर के मार्बल किशनगढ राजा भाई सूरत प्रभात जी मुम्बई अतुल शाह पुणे विनोद बडजात्या रायपुर किशोर जी डोंगरगढ़ भी उपस्थित रहे। सिवनी से भी शतादीक श्रावक श्राविकाओं का समूह अर्ध रात्रि को ही अंतिम दर्शन हेतु डोंगरगढ़ रवाना हुआ था।
थोड़ा सा जानिए आचार्य श्री को
कोई बैंक खाता नही कोई ट्रस्ट नही, कोई जेब नही , कोई मोह माया नही, अरबो रुपये जिनके ऊपर निछावर होते है उन गुरुदेव के कभी धन को स्पर्श नही किया।
✅ आजीवन चीनी का त्याग
✅ आजीवन नमक का त्याग
✅ आजीवन चटाई का त्याग
✅ आजीवन हरी सब्जी का त्याग, फल का त्याग, अंग्रेजी औषधि का त्याग,सीमित ग्रास भोजन, सीमित अंजुली जल, 24 घण्टे में एक बार 365 दिन
✅ आजीवन दही का त्याग
✅ सूखे मेवा (dry fruits)का त्याग
✅ आजीवन तेल का त्याग,
✅ सभी प्रकार के भौतिक साधनो का त्याग
✅ थूकने का त्याग
✅ एक करवट में शयन बिना चादर, गद्दे, तकिए के सिर्फ तखत पर किसी भी मौसम में।
✅ पुरे भारत में सबसे ज्यादा दीक्षा देने वाले
✅ एक ऐसे संत जो सभी धर्मो में पूजनीय
✅ पुरे भारत में एक ऐसे आचार्य जिनका लगभग पूरा परिवार ही संयम के साथ मोक्षमार्ग पर चल रहा है
✅ शहर से दूर खुले मैदानों में नदी के किनारो पर या पहाड़ो पर अपनी साधना करना
✅ अनियत विहारी यानि बिना बताये विहार करना
✅ प्रचार प्रसार से दूर- मुनि दीक्षाएं, पीछी परिवर्तन इसका उदाहरण,
✅आचार्य देशभूषण जी महराज जब ब्रह्मचारी व्रत से लिए स्वीकृति नहीं मिली तो गुरुवर ने व्रत के लिए 3 दिवस निर्जला उपवास किआ और स्वीकृति लेकर माने
✅ ब्रह्मचारी अवस्था में भी परिवार जनो से चर्चा करने अपने गुरु से स्वीकृति लेते थे
और परिजनों को पहले अपने गुरु के पास स्वीकृति लेने भेजते थे ।
✅ आचार्य भगवंत जो न केवल मानव समाज के उत्थान के लिए इतने दूर की सोचते है वरन मूक प्राणियों के लिए भी उनके करुण ह्रदय में उतना ही स्थान है ।
✅ शरीर का तेज ऐसा जिसके आगे सूरज का तेज भी फिका और कान्ति में चाँद भी फीका है
✅ ऐसे हम सबके भगवन चलते फिरते साक्षात् तीर्थंकर सम संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्या सागर जी के चरणों में शत शत नमन नमन नमन
✅ हम धन्य है जो ऐसे महान गुरुवर का सनिध्य हमे प्राप्त हो रहा है
प्रधानमंत्री हो या राष्ट्रपति सभी के पद से अप्रभावित साधना में रत गुरुदेव
हजारो गाय की रक्षा , गौशाला समाज ने बनाई।
हजारो बालिकाओ को संस्कारित आधुनिक स्कूल
इतना कठिन जीवन के बाद भी मुख मुद्रा स्वर्ग के देव सी….
नमोस्तु गुरूदेव जी
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