सिवनी। स्वामी जी ने आव्हान किया कि, लक्ष्मी पिता बन कर हमें अपने धर्म के अनुरूप विष्णु रूप यज्ञ नारायण को लक्ष्मी का दान करना चाहिए। तथा पुत्र बनकर श्री माता की सेवा में धन को लगाना चाहिए। यही श्रेष्ठ दान है।
प्रवचन के अंत में देववाणी संस्कृत के उत्थान के लिए आप श्री ने कहा कि सिवनी नगर में देववाणी संस्कृत के पठन-पाठन हेतु श्रेष्ठ संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना हो, जहां ब्राह्मण बालकों को यज्ञ कर्म तथा शास्त्र सम्मत विधि विधान से पूजन पद्धति की शिक्षा प्राप्त हो सके!
आपश्री ने कहा कि रिकॉर्डडेड मंत्रों से नहीं बल्कि ब्राह्मण मुख से उच्चारित वेद मंत्र उच्चारण से ही किए गए यज्ञ और पूजन वैवाहिक कार्य तथा मनुष्य जीवन के 16 संस्कार सफल होते हैं।
गुरुदेव की कृपा से आयोजित श्री शक्ति महायज्ञ में सभी श्रद्धालु जन, श्री अर्चना और आहुति डालकर अपना एवं विश्व के कल्याण में सहभागी बने। स्वामी श्री ने पाश्चात्य संस्कृति के आचार विचार, खान-पान से सचेत करते हुए कहा कि मनुष्य द्वारा मांस भक्षण उसे पशुओं से भी गिरा हुआ बनाते हैं क्योंकि जैसे सिंह अपनी मर्यादा के अनुसार कभी घास नहीं खाता, और गाय कभी मांस नहीं खाती। किंतु मानव अपने आहार में एक एकनिष्ठ ना रहकर शाकाहारी और मांसाहारी दोनों का भक्षण करता है।
स्वामी श्री के प्रवचन के पूर्व विद्वान आचार्य पंडित सनत कुमार उपाध्याय जी ने भूमिका की प्रस्तावना में कहा कि सिवनी की धर्म भूमि ,दो-दो पूज्य दंडी स्वामी ,ब्रह्मलीन जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज* तथा आचार्य महामंडलेश्वर दंडी स्वामी श्री प्रज्ञानानंद सरस्वती की प्राकट्य स्थली है। यहां से संस्कृत का पठन-पाठन और उत्थान सद्गुरु की कृपा से संभव हो सकता है। गुरु की महिमा बताते हुए आपने कहा कि वेद वेदांत धर्म शास्त्रों के ज्ञाता को ही गुरु बनाना चाहिए इसी में सब का कल्याण है।
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