सिवनी। संसार में कोई भी व्यक्ति सुखी नहीं है कोई तन से दुखी है, तो कोई मन से। प्रभु का सेवक, भगवान का दास ही सुखी होता है। इसीलिए भगवान की कथा जहां भी श्रवण करने का अवसर मिले भगवान की कथा अवश्य सुनना चाहिए जीव का कल्याण करती है श्री राम कथा। उक्त आशय की बात शुक्रवार को श्री राम मंदिर चौक सुनवारा में जारी श्री राम कथा में कथा वाचक पंडित राजेंद्र प्रसाद तिवारी प्रयागराज ने श्रद्धालुजनों से कहीं।
नवधा भक्ति के विषय में बताया कि सतयुग में प्रह्लाद ने पिता हिरण्यकशिपु से कहा था और फिर इसके बाद त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने मां शबरी से नवधा भक्त के बारे में कहा था। ‘नवधा भक्ति’ का अर्थ ‘नौ प्रकार से भक्ति’ से होता है। रामायण के रामचरितमानस के अरण्यकाण्ड में नवधा भक्ति का वर्णन मिलता है।
उन्होंने आगे कहा कि जब मां शबरी श्रीराम से कहती हैं, मैं नीच, अधम, मंदबुद्धि हूं तो मैं किस प्रकार से आपकी स्तुति करूं। भगवान श्रीराम शबरी द्वारा श्रद्धापूर्वक भेंट किए हुए बेरों को बड़े ही प्रेम से खाते हैं और इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं। इसके बाद भगवान मां शबरी को नवधा भक्ति के बारे में कुछ तरह से बताते हैं, जिसे तुलसीदास जी ने अपनी चौपाई में लिखा है।
पहली भक्ति है संतों का सत्संग और दूसरी भक्ति है मेरे कथा प्रसंग में प्रेम। तीसरी भक्ति है अभिमान से मुक्ति होकर गुरुजनों के चरण कमलों की सेवा करना और चौथी भक्ति है कपट को छोड़कर मेरे गुण समूहों का गान करना।
पांचवीं भक्ति वेदों में प्रसिद्धि है और छठी भक्ति में भगवान राम के शील की चर्चा की गई है कि इंद्रियों का निग्रह शील (अच्छा चरित्र), बहुत कार्यों से वैराग्य और निरंतर संत पुरुषों के धर्म में लगे रहना है।
सातवीं भक्ति संपूर्ण जगत को समभाव से मुझमें ओतप्रोत देखना और संतों को मुझसे भी श्रेष्ठ मानना है. आठवीं भक्ति है जो कुछ भी मिल जाए उसमें संतोष करना और सपने में भी पराए में कोई दोष न देखना।
नौवीं भक्ति सरलता और सबके साथ कपटरहित बर्ताव करना है। हृदय में मेरा विश्वास रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और दैन्य का न होना. इनमें से जिसके पास एक भी होती है, वह स्त्री-पुरुष, जड़-चेतन कोई भी हो।
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