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सिवनी। धर्म की नगरी केवलारी में तिवारी परिवार उगली नाका में आयोजित श्री शिव महापुराण में पुराण में रविवार को प्रवक्ता श्री हितेंद्र पांडेय जी ने भगवान शिव- पार्वती के विवाह की कथा बताई। कथा में भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ। शिव विवाह में शामिल हुए भक्त झूम उठे।
भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की कथा सुनाते हुए कहा कि ‘रामचरित मानस’ में आने वाले शिव विवाह की कथा में हिमवान की स्त्री मैना थी। जगज्जननी भवानी ने उनकी कन्या के रूप में जन्म लिया वह सयानी हुई। दंपती को इनके विवाह की चिंता हुई।
इन्हीं दिनों नारद इनके यहां आए, जब दंपती ने अपनी कन्या के उपयुक्त वर के बारे में उनसे प्रश्न किया तो नारद ने कहा कि इसे बावला वर प्राप्त होगा, यद्यपि वह देवताओं द्वारा वंदित होगा। यह सुनकर दंपती को चिंता हुई। नारद ने इस दोष को दूर करने के लिए गिरिजा द्वारा शिव की उपासना का उपदेश दिया। गिरिजा शिव की उपासना में लग गई। जब गिरिजा के यौवन और सौन्दर्य का कोई प्रभाव शिव पर नहीं पड़ा देवताओं ने कामदेव को उन्हें विचलित करने के लिए प्रेरित किया कितु कामदेव को उन्होंने भस्म कर दिया।
फिर भी गिरिजा ने अपनी साधना न छोड़ी। कंद मूल फल छोड़कर वो बेल के पत्ते खाने लगीं और फिर उन्होंने उसको भी छोड़ दिया । तब उनके प्रेम की परीक्षा के लिए शिव ने बटु का वेष धारण किया और वे गिरिजा के पास गए। तपस्या का कारण पूछने पर गिरिजा की सखी ने बताया कि वह शिव को वर के रूप में प्राप्त करना चाहती हैं। यह सुनकर बटु ने शिव के संबंध में कहा कि वे भिक्षा मांगकर खाते-पीते हैं मसान में वे सोते हैं, पिशाच-पिशाचिनें उनके अनुचर हैं आदि। ऐसे वर से उसे क्या सुख मिलेगा कितु गिरिजा अपने विचारों में अविचल रहीं । यह देखकर स्वयं शिव साक्षात प्रकट हुए और उन्होंने गिरिजा को कृतार्थ किया । इसके अनंतर शिव ने सप्तर्षियों को हिमवान के घर विवाह की तिथि आदि निश्चित करने के लिए भेजा और हिमवान से लगन कर सप्तर्षि शिव के पास गए। विवाह के दिन शिव की बारात हिमवान के घर गई। बावले वर के साथ भूत-प्रेतादि की वह बारात देखकर नगर में कोलाहल मच गया । मैना ने जब सुना तो वह बड़ी दुखी हुई और हिमवान के समझाने बुझाने पर किसी प्रकार शांत हुई। यह लीला कर लेने के बाद शिव अपने सुंदर और भव्य रूप में परिवर्तित हो गए और गिरिजा के साथ धूम-धाम से उनका विवाह हुआ।









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