सिवनी। इस शरीर में देवता निवास करते हैं। मानव का शरीर देवालय हैं। मानव का कर्तव्य है कि वह इस शरीर मन-तन को हमेशा स्वच्छ रखें। देवताओं का आलय देवालय है। यह सब कार्य भगवान की भक्ति से ही संभव है। उक्त आशय की बात नगर के शिव शक्ति मंदिर परिसर राजपूत कॉलोनी टैगोर वार्ड में जारी श्रीमद् भागवत कथा में रविवार को कथावाचक पंडित नीलेश शास्त्री ने श्रद्धालुजनों से कहीं।
उन्होंने आगे कहा कि भगवान की कथा हमारी, भक्तों की मां है। भगवान हमारे पिता है, जो मां की भूमिका है वही इस दुनिया में भगवान की कथा की भूमिका है। मां जैसे पुत्र को जन्म देती है वैसी ही कथा समाज में भक्ति करने वाले प्रवृत्ति को जन्म देती है। इस प्रवृत्ति का उदय होता है सत्संग से। मां जैसे संतान को दुग्ध पान कराकर पोषण करती है, वैसी ही कथा भक्तों के हृदय को निर्मल बनाती है और यह कथा मां बनकर भक्तों की भक्ति को पुष्ट करती है तथा परम पिता परमेश्वर से भी परिचय कराती है। मां की जो भूमिका है। जन्म देना, स्वच्छ करना, पोषण करना और पिता से परिचय करा देना।







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