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20 Dec 2025, Sat

बिना पति के आज्ञा के महिला को पिता के घर नही जाना चाहिए : निर्वीकल्प स्वरूप

सिवनी/केवलारी (रमाशंकर महोबिया)। केवलारी -समीपस्थ ग्राम खैररांजी में श्री राम कथा का आयोजन स्वर्गीय राजेंद्र बहादुर सिंह राजपूत की स्मृति में परिवारजनों के द्वारा दिनांक 11 अक्टूबर 2022 से कथा व्यास पीठाधिपति ब्रह्मलीन श्रीमद जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के परम प्रिय शिष्य बेनगंगा परिक्रमा वासी गीता मनीषी ब्रम्हचारी श्री निर्विकल्प स्वरूप जी के मुखारविंद से अनवरत दोपहर 3वजे से प्रतिदिन चल रही है।

कथा के तीसरे दिन महाराज श्री ने सच्चिदानंद भगवान श्री राम के मानव अवतार होने शंका सती ने किया।जिसका परिणाम देह त्यागने,पूर्नजंम लेना ओर पति के आज्ञा के बिना पिता के घर जाने का बृतांत ऋषि भारद्वाज ने ऋषि याज्ञवल्क्य से राम को जानने की चेष्टाका वृतांत चौपाई छंद के माध्यम से सुंदर वर्णन किया।महाराज श्री ने बताया कि श्री राम, लक्ष्मण सीता की खोज में वन- वन भटक रहे थे, भगवान आशुतोष को श्रीराम चरित देखकर जय-जयकार करते देख माता सती भी असमंजस में पड़ कर राम को पहचानने के लिए सीता का रूप धारण किया था। सीता रूप ही माता सती के परित्याग ओर अगले जन्म में पार्वती रुप में आना पड़ा था।

महाराज श्री ने राम कथा में सती चारित्र का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि राजा दक्ष के यहां ही देवी सती का जन्म हुआ। राजा दक्ष प्रजापति के यहां एक नहीं बल्कि 24 कन्याऐ उत्पन्न हुईं। तत्पश्चात, ब्रह्मा जी ने तीन गुणों की रचना की। सत्व, रज और तम। सतोगुण वाली सती, रजोगुण वाली सुरा देवी और तमोगुण वाली लक्ष्मी प्रगट हुईं। सती का विवाह भगवान शंकर के साथ हुआ। एक बार की बात है, राजा दक्ष ने अपने यहां एक यज्ञ किया। यज्ञ में सभी को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। सती का पिता मोह। सती ने सोचा कि उनके पिता के ही तो यहां आयोजन है। वह बुलाना भूल गए होंगे। सती ने शंकरजी से कहा कि वह अपने पिता के यहां यज्ञ में अवश्य जाएंगी। शंकर जी ने बहुत मना किया, लेकिन वह नहीं मानी। वह आमंत्रण मिले बगैर, राजा दक्ष के यहां पहुंची। जब वहां तिरस्कार देखा और शंकरजी का कोई अंशदान नहीं देखा तो देवी कुपित हो गईं। वह अपनी योगाग्नि से वहीं यज्ञ में सती हो गईं। शंकर जी फिर वहां पहुंचे और इसका प्रतिवाद किया।सती ही माता पार्वती है जिन्होंने अपने गुरू देव ऋषि नारद के कहने पर हजारो बर्ष तप कर पुनः शिव शंकर को प्राप्त किया है। राम को जानने की ऐसी ही चेष्टा ऋषि भारद्वाज ने की है।महाराज श्री बताया कि राम के भक्त रामकथा सुनने और अपने प्रभु की गूढ़ बातेंजानने का हर जतन करते हैं.परमार्थ पथ के ज्ञाता ऋषि भारद्वाज ने भी यही किया। उन्होंने सब कुछ जानते हुए भी मुनि याज्ञवल्क्य जी से ऐसा प्रश्न जैसे वे कुछ जानते ही न हो ,मुनि याज्ञवल्क्य भी सब के मन की जानने वाले थे, तुरंत भेद खोल दिया कि मुनि भारद्वाज तो वास्तव में भगवान की लीलाये सुनना चाहते हैं, उनके मन में कहीं कोई शंका नहीं है।मुनि याज्ञवल्क्य जी से मुनि भारद्वाज कहते हैं कि हे नाथ! जिस प्रकार मेरा यह बड़ा भारी भ्रम मिटे वही कथा विस्तार से कहिए. यह सुनते ही याज्ञवल्क्य जी मुस्कुरा उठे और बोले- तुम रघुनाथ जी की महिमा को भलीभांति जानते हो।रामभगत तुम्ह मन क्रम बानी।चतुराई तुम्हारि मैं जानी ।।चाहहु सुनै राम गुन गूढ़ा।।कीन्हिहु प्रस्न मनहुँ अति मूढ़ा।। तुम मन, वचन और कर्म से राम के भक्त हो. तुम्हारी चतुराई मैं समझ गया हूं. तुम राम के गुणों की गूढ़ कथा सुनना चाहते हो,
मैं तुम्हें उमा और शंभू के सुंदर संवाद की राम कथा कहते हुए संसार की मोक्षदायिनी का वर्णन किया था।कथा श्रवण कर रहे क्षैत्र के विधायक राकेश पाल, श्रीमति दुलारी सुरेश कुमरे जिला पंचायत सदस्य , रमाशंकर महोबिया वरिष्ठ पत्रकार, सचिन अवधिया मंडल अध्यक्ष भाजपा, दामोदर प्रसाद शुक्ला, जयसिंह राजपूत अध्यक्ष किसान मोर्चा भाजपा,गंगा प्रसाद साहू कांग्रेस नेता , सतीश राय, अरुणचौरासिया, प्रवीण दुबे , कमलसिंह बघेल भाजपा नेता मुकेश राजपूत जनपद सदस्य ने ब्यासपीठ की पूजन कर ,ब्रम्हचारी श्री निर्वीकल्प स्वरूप जी से आर्शीवाद लिया।

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