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गीता पराभक्ति मंडल द्वारा ब्रह्मलीन जगतगुरु शंकराचार्य महाराजश्री के सम्मान में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन

सिवनी। ब्रह्मलीन धर्म सम्राट द्विपीठाधीश्वर जगत गुरु शंकराचार्य जी को राधाकृष्ण भवन ,मुंगवानी रोड भैरोगंज सिवनी में 15 सितम्बर को श्रद्धानजली समर्पित की गई। सभा में उपस्थित गुरु भक्तों ने गुरुदेव के सानिध्य में रहकर उनके वात्सल्य का जो अनुभव प्राप्त किया। भावशब्दों द्वारा व्यक्त कर पूज्य गुरुदेव का स्मरण किया।

गुरुदेव ज्ञान के भंडार और करुणा के सागर थें जब कभी कोई शिष्य अपना लौकिक-पारलौकिक मनोरथ लेकर उनके समक्ष जाता था गुरुदेव तत्काल ही बड़ी सहजता से शास्त्र अनोमोदित बातों से उनका समाधान करते थें। हम लोग बड़े ही सौभाग्यशाली हैं कि हम उस जिले के निवासी है , जहाँ की भूमि मे ं दो – दो पीठों के शंकराचार्य श्रोत्तीय और ब्रह्मनिष्ठ गुरु का जन्म हुआ । सभा मे उपस्थित गीता पराभक्ति मंडल की संयोजिका श्रीमती ममता बघेल ने अपने उद्गार में कहा गुरुदेव हमेशा वेद विहित विधि और निषेध का उल्लेख किया करते थे अतः हम उनके द्वारा बताये गये वेद विहित विधि के निर्देशों का पालन कर हम अपने मानव जीवन को सफल बना सकते हैं और इसके साथ सभा में उपस्थित समस्त मातृशक्तियों ने नम आँखों और रुंधे गले से भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित की।

बलराम दुबे ने मानस का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस तरह “सोचनीय नहीं कौशलराऊ”उसी तरह हमारे गुरुदेव के लिए उनके द्वारा किये गये उत्तमोत्तम कार्यों के लियें हमें सदैव गर्व रहेगा।

पी. सी. शर्मा ने कहा कि महाराजश्री ने बिहार झारखंड में विश्वकल्याण आश्रम की स्थापना करके हजारों हजार ईशाई बन चुके भोले – भाले वनवासी भाई बहनों को पुनः हिंदू धर्म में वापस लाकर उनके कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। करतार सिंह बघेल ने बताया कि गुरुदेव ने हमें धर्मानुसार जो जीवनशैली कि निर्देश दिया है , हमे सदैव उनका पालन करना चाहिए यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। गणेश वर्मा ने कहा कि जन सामान्य के कुछ अशिक्षित और अराजक तत्वों द्वारा संत महात्माओं के लिये अनर्गल बातें कहीं जा रहीं हैं, ऐसे लोगों के खिलाफ हमें एकजुट होकर कड़ी कार्यवाही करने हेतु शासन प्रशासन से मांग करनी चाहिए , वरना समाज में अशांति फैलते देर नहीं लगेगी।पूज्य गुरुदेव से हमें यही शिक्षा मिलती है कि सदैव धर्म के पक्ष में आवाज उठानी चाहिऐं।

सिवनी ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष ओ. पी. तीवारी ने बताया कि कैसे सात फुट ऊँचें , आजानबाहू , ऊँचे ललाट वाले गुरुदेव जब चलते थे तो आम जनमानस को उनके साथ दौड़ना पड़ता था। गुरुदेव को क्षेत्रीय भाषा से बहुत लगाव था , वो यदाकदा प्रवचन में उसीभाषाशैली का प्रयोग कर भक्तों को भाव विभोर कर दिया करते थे। आपने गुरुदेव के और भी विलक्षण संस्मरण सबके समक्ष रखते हुऐ गुरुदेव को याद किया और अंत में गीता पराभक्ति मंडल के अध्यक्ष आचार्य सनत्कुमार उपाध्याय ने बताया कि वह भी बचपन से गुरुदेव को देखते आ रहे हैं, उनकी करुणा और वात्सल्य से भरे मीठे क्षणों को उन्होंने याद किया कि कैसे वे संसधानों की कमी होते हुऐ भी भोजन बना रहे थे और गुरुदेव बड़े ही प्रेम से उसे ग्रहण कर रहे थे। उन्होने बताया कि कुछ लोग गुरुदेव को भारतरत्न से विभूषित करने की मांग कर रहे हैं , परन्तु वे मानते है कि गुरुदेव स्वयं न केवल रत्नों के भंडार थे बल्कि वे स्वयं एक विश्व रत्न थें, जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती हैं। द्विपीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य ने जनकल्याण की दृष्टि से कई छोटे बड़े मंडल बनाये जिनमें से एक गीता पराभक्ति मंडल है , इसकी बागडोर उन्होंने पूज्य ब्रह्मचारी श्री निर्विकल्पस्वारूप जी को दी है।

इस मंडल का उद्देश्य है गीता और सत्साहित्य के पठन – पाठन में रुचि का बढ़ाना , धर्म के प्रति किसी भी जिज्ञासा का समाधान करना, अपने कर्तव्य का पालन में उचित – अनुचित का ज्ञान करना…। श्री आचार्य जी ने श्रद्धानजली सभा में बताया कि गुरुदेव तत्व रूप में सदा हम सब गुरुभक्तों के हृदय में सदा – सर्वदा विराजमान रहेंगे । रामनाम संकीर्तन करके गुरुदेव को श्रद्धांजली समर्पित की गई और उनके द्वारा दिये गये सनातनी नारो (धर्म की जय हो , अधर्म का नाश हो ,प्राणीयों मे सद्भावना हो….) का उद्घोष कर सभा का समापन किया गया।

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