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भैरोगंज निवासी रामेश्वर दुबे के घर खिला ब्रह्मकमल, शिवजी को चढ़ाने से मिलता है वरदान

सिवनी। ब्रह्म कमल का फूल एक अद्भुत ही फूल है। यह वर्ष में एक बार ही खिलते हैं। अगस्त और सितंबर में इसके फूल खिलते हैं और वह भी 4 या 5 घंटे के लिए। अधिकतर यह हिमालय के राज्यों में ही पाया जाता है परंतु आजकल लोग इसे घर में अपने गमले में भी उगाने लगे हैं। नगर के मुख्य फुटबॉल स्टेडियम के पीछे शक्तिनगर भैरोगंज सिवनी निवासी श्रीमती रुक्मिणी-श्री रामेश्वर दुबे के घर मंगलवार की रात को ब्रह्मकमल खिला।

श्री रामेश्वर प्रसाद दुबे के पुत्र अंकित दुबे, अर्पित महाराज दुबे ने बताया कि माना जाता है कि इसकी पंखुड़ियों से अमृत की बूंदें टपकती हैं। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है। इससे पुरानी (काली) खांसी का भी इलाज किया जाता है। इससे कैंसर सहित कई खतरनाक बीमारियों का इलाज होता है। यह तालों या पानी के पास नहीं बल्कि ज़मीन में उगता है। ब्रह्म कमल को ससोरिया ओबिलाटा भी कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम एपीथायलम ओक्सीपेटालम है। इसमें कई एक औषधीय गुण होते हैं। चिकित्सकीय प्रयोग में इस फूल के लगभग 174 फार्मुलेशनस पाए गए हैं। वनस्पति विज्ञानियों ने इस दुर्लभ-मादक फूल की 31 प्रजातियां पाई जाती हैं।

ऐसे हुई थी ब्रह्म कमल की उत्पत्ति : पौराणिक मान्यता है कि ब्रह्मकमल भगवान शिव का सबसे प्रिय पुष्प है। केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिरों में ब्रह्म कमल ही प्रतिमाओं पर चढ़ाए जाते हैं। किवदंति है कि जब भगवान विष्णु हिमालय क्षेत्र में आए तो उन्होंने भोलेनाथ को 1000 ब्रह्म कमल चढ़ाए, जिनमें से एक पुष्प कम हो गया था। तब विष्णु भगवान ने पुष्प के रुप में अपनी एक आंख भोलेनाथ को समर्पित कर दी थी। तभी से भोलेनाथ का एक नाम कमलेश्वर और विष्णु भगवान का नाम कमल नयन पड़ा। हिमालय क्षेत्र में इन दिनों जगह-जगह ब्रह्म कमल खिलने शुरु हो गए हैं।…इसलिए कहा जाता है कि ब्रह्म कमल का फूल विशेष दिनों में केदारनाथ में चढ़ाने से शिवजी प्रसन्न होकर जातक की मनोकामना पूर्ण करते हैं।
फूल भगवान ब्रह्मा का प्रतिरूप माना जाता है और इसके खिलने पर विष्णु भगवान की शैय्या दिखाई देती है। यह मां नन्दादेवी का भी प्रिय पुष्प है। इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। इससे बुरी आत्माओं को भगाया जाता है।

महाभारत में भी है उल्लेख : इस पुष्प का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। आख्यान है कि इसे पाने के लिए द्रौपदी विकल हो गई थी। तब भीम इसे लेने के लिए हिमालय की वादियों में गए थे और वहां उनका सामना हनुमानजी से हुआ था। भीम ने उन्हें एक वानर समझकर उनकी पूंछ हटाने का कहा था परंतु हनुमानजी ने कहा था कि तुम शक्तिशाली हो तो यह पूंछ तुम ही हटा लो। परंतु भीम ऐसा नहीं कर सकता तब उसे समझ में आया था कि ये तो साक्षात हनुमानजी हैं। तब भीम को अपनी भूल का अहसास हुआ था।

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