धर्म शिक्षा सिवनी

कथा श्रवण के लिए बुढापे की राह ना तके, जब शरीर स्वस्थ हो तब सुने कथा : सनत कुमार उपाध्याय

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सिवनी। कथा के श्रवण से ही हमारे मन में पवित्र भाव से एक अच्छे जीवन जीने की कला का संचार होता है। कथा जितनी बार भी सुनी जाए उतनी ही कम है। यह बात नगर के शिव शक्ति मंदिर बरघाट नाका राजपूत कॉलोनी टैगोर वार्ड में शुक्रवार को श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के छटवें दिन कथावाचक बाल व्यास पंडित प्रेम कृष्ण पुरुषोत्तम तिवारी ने श्रद्धालुजनों से कहीं।

उन्होंने आगे बताया कि इस मौके पर कथाव्यास भागवत शरण ने कहा कि रुकमणी विदर्भ देश के राजा भीष्म की पुत्री और साक्षात लक्ष्मी का अवतार थी। रुकमणी ने जब देवर्षि नारद के मुख से श्रीकृष्ण के रूप, सौंदर्य एवं गुणों की प्रशंसा सुनी तो उसने मन ही मन श्रीकृष्ण से विवाह करने का निश्चय किया। रुकमणी का बड़ा भाई रुकमी श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था और अपनी बहन का विवाह चेदिनरेश राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से कराना चाहता था। रुकमणी को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने एक ब्राह्मण संदेशवाहक द्वारा श्रीकृष्ण के पास अपना परिणय संदेश भिजवाया। तब श्रीकृष्ण विदर्भ देश की नगरी कुंडीनपुर पहुंचे और वहां बारात लेकर आए शिशुपाल व उसके मित्र राजाओं शाल्व, जरासंध, दंतवक्त्र, विदु रथ और पौंडरक को युद्ध में परास्त करके रुकमणी का उनकी इच्छा से हरण कर लाए। वे द्वारिकापुरी आ ही रहे थे कि उनका मार्ग रुकमी ने रोक लिया और कृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा। तब युद्ध में श्रीकृष्ण व बलराम ने रुकमी को पराजित करके दंडित किया। तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने द्वारिका में अपने संबंधियों के समक्ष रुकमणी से विवाह किया।

द्वारिका से आए सनत कुमार उपाध्याय ने इस अवसर पर कहा कि भागवत रसम पिवतम कथा का रस बार-बार ग्रहण करना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं अभी से कथा सुनने की क्या जरूरत है। जब बुढ़ापा आएगा तब उन्होंने कहा कि समय हमारे हाथ में नहीं है। कल को किसने देखा है। अपने कल्याण के मार्ग को प्रशस्त तब ही करना चाहिए जब शरीर स्वस्थ है, आज युवा हैं, तो कल बुढ़ापा फिर मृत्यु निश्चित है।

जब तक आपके शरीर को बुढ़ापा ने नही जकड़ा है। आंख- कान सभी इंद्रियां ठीक है, शरीर में बल है तभी ही स्वयं के कल्याण के लिए कथा सुने। घर में आग लगी हो, फिर कुआं खोदने का कार्य शुरू किया जाए। यह प्रयास मूर्खता की श्रेणी में आता है।

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