सिवनी। इस संसार में जीव जैसा कर्म करता है उसे वैसा फल प्राप्त होता है और जिसकी जैसी मति होती है उसकी वैसी गति होती है। अंत समय में जीव का स्मरण भगवान की तरफ रहेगा तो आप शिवलोक के हकदार होंगे। इसीलिए अंत समय में भगवान का स्मरण करना चाहिए। उक्ताशय की बात ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के शिष्य बनारस से आए हितेन्द्र शास्त्री ने ग्राम खैरीकला (मुंगवानी) में जारी शिव महापुराण में कथा के दूसरे दिन रविवार को श्रद्धालुजनों से कही।
शास्त्रीजी ने आगे कहा कि जिस जगह जल की प्रधानता होती है वह पवित्र स्थान तीर्थ कहलाता है। और जिस जगह मिट्टी का महत्व होता है वह पवित्र स्थान धाम कहलाता है।
मरते समय अंतिम समय में वृद्धावस्था के समय जिसे ज्यादा कष्ट होता है, शरीर में ज्यादा दुख होता है तो समझ लीजिए उसने जीवन में भगवान का पूजन-पाठ मन से नही किया और जो भगवान का भजन करते हैं उसके प्राण बिना कोई कष्ट के निकल जाते हैं।
श्री शिव महापुराण की कथा से चंचला ने शिवलोक में रहते हुए अपने पति टुम्बरो को भी शिवलोक बुला लिया। इसलिए भगवान का पूजन-ध्यान जहाँ भी मिले करते रहना चाहिए।
शिवजी के कीर्तन करने से आपका मन दृढ़ होता है इससे आत्मबल आता है और जब व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ जाता है तो उसकी उन्नति होती है। बार-बार संकीर्तन करने से भगवान के प्रति विश्वास बढ़ता है। संकीर्तन से भगवान की कृपा प्राप्त होने लगती है।




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