धर्म मध्य प्रदेश सिवनी

संसार में समता और परमात्मा में ममता करना चाहिए :निर्विकल्प स्वरूपजी

सिवनी। आत्म संयम करने से परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है और यही परमानन्द की प्राप्ति है।मुख्य रूप से तत्व तीन हैं जगत,जीव और ईश्वर।जगत निरानंद है जीव अल्पानंद है और ईश्वर पूर्णानंद।

उक्त आशय के उदगार,गीता मनीषी पूज्य ब्रम्हचारी श्री निर्विकल्प स्वरूप जी के मुखारविंद से श्रीमद्भगवद्गीता जयन्ती महोत्सव के द्वितीय दिवस की कथा पर प्रवाहित हुए।उन्होंने आगे बताया कि पूर्णानंद की प्राप्ति आत्म संयम से होती है और गीता ज्ञान यज्ञ से ही आत्म संयम प्राप्त किया जा सकता है।

इस समय यही यज्ञ गीता पराभक्ति मण्डल के यजमानत्व में स्मृति लॉन सिवनी में क्रियान्वित है जिसमे अधिक से अधिक श्रद्धालुओं को लाभान्वित होना चाहिए क्योकि ज्ञान के समान पवित्र करने वाला कुछ भी नही है।भगवान की विस्मृति ही सबसे बड़ी विपत्ति और स्मृति ही सम्पत्ति है।गृहस्थ में रहकर चित्तवृत्ति का निरोध कर निष्काम कर्म करने वाला भी योगी सन्यासी है।

भगवान की प्रसन्नता के अतिरिक्त किया गया कोई भी कार्य बन्धन का कारण होता है इसलिए हम जो भी करें भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए ही करें। हमे अविद्या और उसके समस्त कार्यो का त्याग करके आत्मा का आत्मा के द्वारा ही उद्धार करना चाहिए। जितेन्द्रिय हो जाओ आत्मा को अपना मित्र बनाओ और ऐसा करने के लिए भगवान का भजन करो- प्रभुजी मेरे अवगुण चित न धरो…बड़े ही सुंदर भजन के द्वारा पूज्य ब्रम्हचारीजी ने आज के सत्संग को विराम दिया सन्त प्रवर पूज्य ब्रम्हचारीजी ने अपने संस्मरण का उल्लेख करते हुए कथा के बीच में अपने गुरुदेव ब्रह्मलीन जगतगुरु द्विपीठाधीश्वर शंकराचार्य जी को स्मरण करते हुए बताया कि एक बार जब उन्होने गुरुदेव से पूछा था कि विचार शीला में बैठकर आपने क्या विचार किया था तो गुरुदेव ने उत्तर में योग वशिष्ठ रामायण का एक श्लोक उद्धरित करके बताया था कि हमें समस्त संसारिक संकल्पों का त्याग करके केवल भगवान की शरणागति प्राप्त करना चाहिए।पूज्य ब्रम्हचारीजी ने कर्म की प्रधानता पर प्रकाश डालते हुए विनोदवश एक दृष्टान्त देकर गीता के गूढ़ ज्ञान को सरलता से श्रद्धालु जनमानस को समझाया कि एक हनुमान जी का भक्त प्रतिदिन मन्दिर में आकर दस लाख की लॉटरी लगने की प्रार्थना करता था एक दिन हनुमान जी द्रवित होकर उसके सामने प्रकट हो गए एक चपत लगाई और बोले हर दिन यहाँ आकर हमसे लाटरी लगने की प्रार्थना तो करते हो पर क्या तुमने कभी लॉटरी की टिकट भी खरीदी है पहले टिकट तो खरीदलो।

अर्थात निष्काम होकर धर्म कार्य करो यही लॉटरी की टिकट है ईश्वर भी हमारी तभी सहायता करते हैं जब हम धर्म कर्म रूपी टिकट लेकर चलते हैं और अंत में ज्ञानवर्धक प्रश्नोत्तरी में श्रोताओं ने उत्साह के साथ हिस्सा लेकर सिद्ध कर दिया कि भगवद् गीता का ज्ञान जीवन में उत्सव व् उत्साह दोनों भर देता है।

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