सिवनी/किन्दरई। विकासखंड घंसौर के अंतर्गत ग्राम किन्दरई (बर्राटोला) में दिलीप विश्वकर्मा के घर में चल रही मां रेवा नर्मदा पुराण जो मंगलवार को द्वितीय दिन पंडित आचार्य अवधेश महाराज के मुखारविंद से कथा में कहा गया कि विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहां पवित्र नदियों को देवी के स्वरूप में पूजा जाता है। इनके उद्गम, प्राकट्य और जीवन प्रवाह की कई रोचक कहानियां हैं। देवी-देवताओं की तरह ही इनके भी प्रेम, विवाह, विरह और प्रतिशोध की भी गाथाएं हैं। ऐसी ही एक रोचक गाथा है। मां नर्मदा की, जिन्होंने प्रेम में धोखा खाने के बाद ऐसा कदम उठाया कि मंगेतर यानी प्रेमी के हिस्से में सदा के लिए पछतावा ही आया और फिर वह कभी उनका मुंह नहीं देख सका। नर्मदा अपने हृदय में विरह की जो पीड़ा लेकर बहीं वह आज भी उनके जल की कल-कल ध्वनि के बीच अपना आभास कराता है। नमामि देवि नर्मदे, नर्मदा सेवा यात्रा के मौके पर हम बताने जा रहे हैं मां नर्मदा के जन्म, उनके युवा होने और प्रेम में विश्वासघात होने पर विरक्त होकर वैराग्य धारण करने की वह मार्मिक कहानी।
राजा मेकल ने तय किया था विवाह
नर्मदा के विवाह को लेकर प्रचलित एक कथा के अनुसार नर्मदा को रेवा नदी और शोणभद्र को सोनभद्र के नाम से जाना गया है। नद यानी नदी का पुरुष रूप। बहरहाल यह कथा बताती है कि राजकुमारी नर्मदा राजा मेकल की मानस पुत्री थीं। राजा मेकल ने अपनी अत्यंत रूपवती पुत्री के लिए यह तय किया कि जो राजकुमार गुलबकावली के दुर्लभ पुष्प (एक तरह की वनस्पति) उनकी पुत्री के लिए लाएगा, वे अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ करेंगे। राजकुमार सोनभद्र गुलबकावली के फूल ले आए अत: उनसे राजकुमारी नर्मदा का विवाह तय हुआ। सोणभद्र का ब्रम्हाजी का मानस पुत्र माना जाता है।
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