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बीस वर्ष की सेवाओं को शून्य करने वाला पहला राज्य बना मध्यप्रदेश : अध्यापक संवर्ग

पेंशन सत्याग्रह न्याय यात्रा का भोपाल में हुआ समागम

सिवनी। मध्यप्रदेश पर्यटन से सम्बन्धित एक विज्ञापन की प्रसिद्ध टैग लाइन है की एमपी गजब है। प्रदेश के पौने तीन लाख अध्यापक संवर्ग के मामले में यह अक्षरसः सही उतरती है, एमपी ना केवल अजब है बल्कि अजब-गजब है। मध्यप्रदेश देश का एकमात्र राज्य है जिसने बीस वर्षो तक अल्प वेतन में सुदूर ग्रामीण क्षेत्रो, पहाड़ी इलाको, मजरे टोलो में जाकर शिक्षा देने वाले अध्यापक (गुरुजी,शिक्षाकर्मी,संविदा) की बीस वर्षो की सेवा शून्य कर दी है। इसकी शुरुवात 2018 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सीएम हाउस में में की गई घोषणा से हुई जब उन्होंने हजारो अध्यापको के सामने अध्यापको को शिक्षा विभाग के सुसंगत पदों पर संविलियन करने की घोषणा की थी।

उक्त घोषणा को कार्यरूप में परिणित करने के लिए मंत्रिमंडल में प्रस्ताव पास कर शिक्षा विभाग में अध्यापको के लिए एक नवीन संवर्ग राज्य शिक्षा सेवा का गठन कर विभाग के नियमित शिक्षको के सुसंगत पद बनाये जाकर उन पदों पर अध्यापको का संविलियन किया जाना था. यहाँ यह उल्लेखनीय है की मंत्रिमडल में विभाग द्वारा प्रस्तुत संक्षेपिका की पहली लाइन में ही अध्यापको का शिक्षा विभाग में संविलियन अंकित है।

आज हम लोकतांत्रिक समाज मे रहते है जिसकी एक महत्वपूर्ण शर्त सर्व सहमति एवं न्याय है। कोई भी निर्णय सहमति के आधार पर लिया जाता है तब ही वह समाज में स्वीकार्य होकर न्यायपूर्ण कहलाता है। प्रदेश के पौने तीन लाख अध्यापक संवर्ग के साथ 2018 मे सहमति एवं न्याय के सिद्धांत की अवमानना होकर धोखा हुआ है।
मप्र मंत्रिमंडल की सहमति राज्य शिक्षा सेवा में संविलियन के निर्णय के साथ थी जिसे नियुक्ति में बदलकर अन्याय किया गया। राज्य शिक्षक संघ ने उस समय मुख्यमंत्री जी समेत अन्य वरिष्ठ मंत्रियों से चर्चा में सबने यही कहा की आपके हितो का पूरा ध्यान रखा गया है. आज भी व्यक्तिगत बातचीत में कई पूर्व एवं वर्तमान माननीय मंत्री मानते है कि उन्हें यही बताया गया था कि अध्यापको का संविलियन हो रहा है एवं उनकी वरिष्ठता नवीन संवर्ग में सुरक्षित रहेगी।

राज्य शिक्षा सेवा में नियुक्ति के बाद हमने धोखे को भांपकर शासन के समक्ष हर उस माध्यम से अपनी बात रखी जो हमारे सामर्थ्य में था किंतु शासन ने समाधान तो दूर की बात है हमे शत्रुवत मानते हुए राज्य शिक्षा सेवा के नियमो की ऐसी व्याख्या करनी शुरू कर जिससे हमें मिलने वाला लाभ भी हानि में बदल जाये। उदाहरण के लिए नवीन संवर्ग में रहते सेवानिवृत/दिवंगत हुए लोक सेवको को ग्रेजुइटी का लाभ देने से शिक्षा विभाग ने लिखित पत्र जारी कर इन्कार कर दिया है. क्योकि राज्य शिक्षा सेवा के पूर्व की बीस वर्षो की सेवा को विभाग शून्य मानता है. यही स्तिथि क्रमोन्नत वेतनमान के मामले में भी है जहाँ जिला शिक्षा अधिकारियो द्वारा की गई क्रमोन्नति पर रोक लगाते हुए विभाग ने लाखो रुपयों की वसूली सम्बन्धितो से की है।

राज्य शिक्षक संघ ( राज्य अध्यापक संघ) प्रदेश का सबसे पुराना और सबसे बड़ा सन्गठन है. हमने 1998 से संघर्ष की शुरुवात कर अनेक बड़े आन्दोलन कर अपनी न्यायपूर्ण मांगो का समाधान शासन से करवाया है. राज्य शिक्षा सेवा रूपी धोखे के सम्बन्ध में प्रदेश भर से आवाजे उठने पर हमने शासन के समक्ष हर स्तर पर बाअत रखी. चूँकि नवीन संवर्ग में वेतन भत्तो आदि में बढ़ोतरी होकर अध्यापक की आर्थिक स्तिथि सुधरी थी तथा स्थानान्तरण आदि अन्य योजना का लाभ भी मिला था अत: राज्य अध्यापक संघ ने सीधी लड़ाई ना लड़ते हुए शासन से समन्वय ज्ञापन आदि के माध्यम से चार वर्षो तक समस्याओं के निराकरण का भरसक प्रयास किया किन्तु स्तिथियाँ ओर अधिक बिगड़ते चली गई. आज पानी सिर से ऊपर निकल चुका है।

संघ के प्रांताध्यक्ष के रूप में मैंने अपने साथियों के साथ चर्चा कर प्रदेश के कोने कोने में जाकर अध्यापक भाई बहनों से मिलने का निश्चय किया। जैसा कि मेरे संघठन का इतिहास है कि कोई भी आंदोलन जमीनी रूप से अध्यापको को जागृत कर, पर्याप्त नैतिक आधार पर, प्रेस, नागरिक समाज के संज्ञान में लाकर चरणबद्ध रूप से आरंभ किया जाता है। हमने इसी परिपाटी पर आंदोलन के प्रथम चरण में पेंशन यात्रा शुरू की है जिसे 130 के लगभग ब्लॉक स्तरीय कार्यक्रम में में स्वयं उपस्थित रहा हूँ। इसी की कड़ी में 25 सितंबर को प्रदेश भर में जिला स्तरीय रैलियां आयोजित कर हम शासन को अपनी औचित्यपूर्ण मांगो के सम्बंध में ज्ञापन दे चुके है। अपनी यात्रा के दौरान प्रदेश भर में रिटायरमेंट के निकट पहुंच चुके शिक्षको (शिक्षाकर्मी, गुरुजी, संविदा) निस्तेज चेहरे लिए भविष्य की आशंका से ग्रस्त मिले जिनके लिए मेरे पास शब्द नही थे। 2006 के भर्ती अध्यापक जिनकी क्रमोन्नति 2018 में देय हो चुकी है उनकी पीड़ा, प्रतिमाह हज़ारो रुपये का नुकसान, लाखो रुपये एरियर्स को खोने का डर मेरे भाई बहनों की आंखों में साफ देखा। मैं दिवंगत अध्यापको के परिवार उनके बच्चो से भी मिला जिनकी अनुकम्पा नियुक्ति निर्दयतापूर्वक रोकर अमानवीय व्यवहार किया गया है। प्रत्येक अध्यापक शासन के छल, कपट, धोखे से आक्रोशित आर पार की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है. अब निर्णय शासन को करना है।

जैसा मेने शुरुवात में लिखा की सहमति एवं न्याय को धता बताते हुये शासन ने राज्य शिक्षा सेवा के नियमो को शोषण का माध्यम बना रखा है। हमारा नियोक्ता शासन है जो हमारे परिवार का पालनहार होता है। जब पालनहार ही छल, कपट, धोखा करने लगे तो किस पर विश्वास किया जाये। शासन की बात मानकर हमने वचन पत्र भरे इस आशा में की हमारा पिता स्वरूप पालनहार हमारे साथ न्याय करेगा किन्तु हुआ क्या आज स्तिथियाँ सामने है। हमारा तैतीस साल से संघर्षरत संगठन है जिसने बड़ी और कड़ी लड़ाइयां हर स्तर पर जाकर लड़ी है, हम इनको ऐसे ही नही छोड़ सकते है। राज्य अध्यापक संघ के तेवर आज भी 1998, 2005 और 2013 से किंचित मात्र भी कम नहीं हुए है।

आज देश मे पुरानी पेंशन एक ज्वलन्त मुद्दा है। विभिन्न राज्य सरकारें गलतियों को सुधारकर पुरानी पेंशन योजना लागू कर चुकी है। मप्र में भी देरसवेर यह लागू होना है जिसे वर्तमान सरकार करे या आने वाली सरकार यह केवल समय की बात है। किंतु शासन के छल, कपट, धोखे के शिकार अध्यापक को इसका लाभ मिलेगा या नियमो में उलझाकर हमे वंचित कर दिया जायेगा। इसलिए पेंशन के मुद्दे के साथ प्रथम नियुक्ति दिनांक से वरिष्ठता का मुद्दा प्रमुखता से रखा गया है ताकि पुरानी पेंशन लागू होने पर अध्यापक गुरुजी शिक्षाकर्मी संविदा स्वतः ही इसका लाभार्थी बन जाये। बरसो बरस अल्प वेतन में जीवन यापन करने वाले अध्यापको को पुरानी पेंशन से वंचित करने की किसी भी चाल को हम सफल नही होने देंगे इसीलिए यात्रा का नाम पेंशन सत्याग्रह यात्रा रखा गया है।

इस बात से इन्कार नही की राज्य शिक्षा सेवा से अध्यापको को बहुत कुछ मिला है किन्तु यह बात भी उतनी ही सच है की हमसे बहुत कुछ छीन भी लिया गया है जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती. आज सुचना क्रांति के दौर में आन्दोलन के परम्परागत तरीके बदल रहे है. राज्य अध्यापक संघ ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा जिससे अध्यापको पर शासन को अनुशासनात्मक कार्यवाही करने या समाज के सामने बदनाम करने का अवसर मिले. साथ ही हम शासन को चेतावनी देना चाहते है की राज्य शिक्षक संघ का यह आन्दोलन पूर्णत: जमीनी एवं लोकतान्त्रिक रूप से संचालित है जिसके अंतर्गत 9 अक्तूबर रविवार के दिन आंबेडकर पार्क भोपाल में पेंशन सत्याग्रह यात्रा के प्रथम चरण का समापन सम्मेलन आयोजित है जिसमे प्रदेश के 300 विकासखंड के हजारो शिक्षक अपनी मांगो को लेकर शानिपूर्ण प्रदर्शन करने आ रहे है. यदि लोकतान्त्रिक अधिकारों का दमन किया गया तो उसका राजनैतिक परिणाम सत्ताधारी दल को जमीन पर देखने को मिलेगा।

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