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कौन सी बोतल किसके लिए आँसू ले आये

सिवनी। सुना है, किसी परिवार की एक पीढ़ी का नाश करना है तो उसे पढाई अर्थात शिक्षा के क्षेत्र से वंचित कर दें। आगे यह भी सुना है कि - किसी परिवार की कई पीढ़ियाँ नाश करना है उसे शराब की लत लगा दें। आज मैं अपने जीवन का छोटा सा अनुभव अत्यंत दुख और इस उम्मीद के साथ आपके समक्ष रख रहा हूँ कि समाज की नई पीढ़ी के बच्चे इस बात को समझ सकें कि हमने "क्या खोया? क्या पाया?" बात शुरू करता हूँ निजी परिवार से - (नाम नहीं लिखूंगा) रंग गोरा, 5 फिट 8 इंच की ऊँचाई, खिलाड़ी। चाहे वॉलीवाल हो, क्रिकेट हो या फुटबॉल, हर खेल जैसे उनके लिए ही बना हो। "पॉवर ऑफ लेग" इतना कि फुटबॉल को एक तरफ के डी से मारे तो दूसरे तरफ के डी पर ही गिरना। माँ सरस्वती की असीम कृपा। कंठ इतना सुरीला कि गीत गाते तो राह चलता व्यक्ति भी मंत्रमुग्ध हो जाता। पढाई के क्षेत्र में हमेशा अव्वल, शायद आज भी स्कूल के उस पुराने रिकॉर्ड में कक्षा बारहवीं में प्रथम आने का रिकॉर्ड मिल सकता है। प्यारी-प्यारी बातें करना शायद उनका शौक हुआ करता था।अपने माता-पिता के लाड़ले, मामा लोगों के सबसे प्रिय भांजे।

अपने चार बच्चों एवं पत्नी का गौरव। परिवार का मात्र एक सहारा, जिसके बल पर सारा परिवार हँसी-खुशी जीवन यापन करता था। किसी से कोई बैर नहीं, किसी से कोई दुश्मनी नहीं मगर न जाने कौन घड़ी थी कि शराब से दोस्ती कर ली।
मैं आज भी उस घड़ी को दिल से कोसता हूँ जब उन्होंने अस्पताल में मेरे सामने तड़प-तड़प कर दम तोड़ा। उस वक्त हर पल उनकी आँखे मेरी आँखों से कहती थी कि काश कोई मुझे एक बार बचा लेता। मगर ये हो न सका, हम और हमारा परिवार पैसा लेकर बाहर खड़े रहे। वो अंदर दम तोड़ते रहे,,, तोड़ते रहे, और अंत में हमारे हाथ में कुछ न आया।

इस तरह खो दिया हमने ममता के आँचल का दूध, पिता के बुढापे का सहारा। पत्नी का यश गौरव, सम्मान। बच्चों के चेहरे से खुशी, हाथों की चॉकलेट, मिठाई, होनहार चारों बच्चों के सपने। ऐसे बच्चे जो अभी-अभी अंडे से निकले थे। उड़ना तो छोड़िए साहब अभी ठीक तरह से चलना भी नहीं सीखे। सूरज का उजाला और शाम का अंधेरा भी नहीं जान पाए थे। उनके जीवन में काली रात का वो घना अंधेरा छा गया। जो आज भी छटने का नाम नहीं लेता है। भाई तो अपना शौक करके इस जीवन से बिदा होकर नए जीवन में शायद खुश होंगे। मगर एक बार आप उनके बारे में भी जरूर जाने- कि वो बच्चे-बीबी कैसे अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं। क्या खाते होंगे कैसे? कैसे रहते होंगे? किन-किन मुश्किलों का सामना करते होंगे? परिस्थितियों के सामने अपने आपको कैसे खड़ा रख पाते होंगे,,,,,,,????? यह एक प्रश्न है।

दूसरी घटना मेरे ही परिवार की है। मेरे बड़े पिताजी के जुड़वा बच्चे याने मेरे दोनों भाइयों में से एक की। ऐसे भाई जो सबसे निराले थे। हम छोटे-छोटे थे मगर वो बड़े होकर भी हमेशा हम छोटों की टीम से ही क्रिकेट खेला करते थे। हम सब बच्चों को अच्छी सीख दिया करते थे। दिल के इतने अच्छे कि स्वयं नशा करते थे किंतु मुझे कहा करते थे – देख तू कभी नहीं पीना। नहीं तो मैं तुझे मारूँगा। शराब की छोटी सी बोतल उन्हें भी अपने अंदर डुबा ले गई। न जाने कहाँ होंगे? कैसे होंगे? वे अपने पीछे एक बेटा, एक बेटी और पत्नी को बिलखता छोड़ गए। वो भी तब जब बेटा-बेटी को ठीक तरह से होश भी नही था। पत्नी ने कभी घर से बाहर किसी काम को जाना ही नही था। अब पत्नी और दो बच्चे मायूस होकर लड़ते है अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों से। एक पीढ़ी आपकी, एक पीढ़ी बच्चों की, एक पीढ़ी आने वाले बच्चों की। इस तरह तीन पीढ़ी ले गई “शराब की बोतल”।
तीसरी और चौथी घटना इन्हीं के दोनों मित्रों की हैं। एक नौकरी पेशा और दूसरा शिक्षक का छोटा बेटा। दोनों ही शादीशुदा। अच्छा खासा भरा पूरा परिवार। दोनों दिन रात नशे में धुत। आखिर एक दिन हम सब से बिदा होकर चले गए पीछे बिलखता हुआ परिवार छोड़कर इस भेड़िये से भी बढ़कर निकृष्ट समाज में जहाँ शराब बेचना और पीना शान समझा जाता है।

शराब पीकर मरने वाले पिता की नौकरी उन बच्चों को मिल जाती है। पैसा गाड़ी घर जमीन सब मिल जाता है। बच्चे अपने बल पर नया जीवन शुरू कर लेते। सजा देते हैं बहनों की डोली। लड़ जाते हैं माँ के हर सुख की खातिर अपने बचपन की हर ख्वाहिश से। लड़ जाते हैं अपने हर सपने से कि “ऐ मेरे सपने तू दफन रह मेरी निगाहों में। अभी तेरे लिए समय नहीं आया है। अभी तो मेरे परिवार को संभालने की जवाबदारी है। बच्चा हर सुख जुटा लेता है। अपने परिवार के लिए हर खुशी जुटा लेता है। बस नहीं ला पाता तो “माँ का सुहाग” जिससे माँ का जीवन पूर्ण हो पाता। नहीं दे पाता माँ को सच्ची खुशी, जिसे माँ ने खो दिया है।
मैं एक बात और कहना चाहूंगा कि वो शराब बेचने वाले कैसे खुश हो सकते है जिन्होंने न जाने ऐसे ही कितने परिवारों को तहस-नहस कर दिया होगा। न जाने कितने चिक्कू, ऋषि, चंदू, उमेश और न जाने कितनों को मौत की नींद सुला दिया होगा? कितनों के सिंदूर उजाड़े होंगे? न जाने कितने बच्चों के मुँह से निवाला छीना होगा। कितनी बद्दुआएं सफर करती होंगी उन शराब बेचने वालों के साथ।
ये शराब पीने वाले मेरे परिवार में, मेरे गाँव में, मेरे समाज मे कम नहीं हुए है। क्योंकि शराब गाँव में भी खुलेआम बिकती है।
अभी न जाने कितने ही ऐसे परिवार सड़क में आने बाकी हैं। न जाने किस बोतल में किसका नाम लिखा है? कौन सी बोतल किसके लिये आँसू भरकर लाती है? यह भी एक प्रश्न है,,,
अंतिम बात- जागो और जगाओ, परिवार शराब से बचाओ।
परिवार चाहे किसी का हो। आखिर दर्द तो समाज का है।

संतोष बरमैया "जय"

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