धर्म सिवनी

ध्रुव जैसी संतान के कारण पूरे कुल का उद्धार हो जाता है : निर्विकल्प स्वरूप

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सिवनी। साधु सज्जनों के सत्संग से मोक्षमार्ग में श्रद्धारती होगी। अंतकाल में जैसी स्मृति होगी वैसी गति प्राप्त होती है। जीव सांसारिक माया मोह में पढ़कर अपने शाश्वत स्वरूप को भूल जाता है। उक्त आशय के उदगार गीता   मनीषी पूज्य ब्रह्मचारी निर्विकल्प स्वरूप जी ने महाराजबाग भैरोगंज सिवनी में आयोजित 23 मार्च से 30 मार्च तक आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दूसरे दिन के कथा प्रसंग में व्यासपीठ से प्रकाशित किया। आज शनिवार को कृष्ण जन्मोत्सव की कथा व महोत्सव मनाया जाएगा।

द्वि पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के विशेष कृपा पात्र शिष्य पूज्य ब्रह्मचारी जी ने कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए भगवान विष्णु द्वारा ब्रह्मा जी को सुनाई चतुश्लोकी भागवत गूढ़ रहस्यों को सहज सरल भाषा में निरूपित करते हुए कहा कि संसार में परमात्मा के सिवाय कुछ नहीं है माया के कारण आभास मात्र होता है। तत्वत: समस्त सृष्टि में परमात्मा का ही अस्तित्व है। चतुश्लोकी भागवत के तत्व ज्ञान को वेदव्यास जी ने 12 स्कंद की 18000श्लक में विस्तार देकर, श्रीमद्भागवत की रचना किया। भागवत के 10 लक्षण बताए गए हैं जोकि परमात्मा का स्वरूप है, अतः भागवत श्रवण से भगवान के साक्षात्कार होते हैं। आगे के कथा प्रसंग में मैत्रेय जी ने महात्मा विदुर को जो प्रसंग सुनाया उसमें विष्णु भगवान के पार्षद जय -विजय को, दैत्य कुल में जन्म लेने के सनका दि ऋषि यों द्वारा दिए गए श्राप की कथा, ब्रह्मचारी जी ने सुनाया !आगे के कथा प्रसंग में कपिल संवाद के अंतर्गत धर्मात्मा कर्दम ऋषि की कथा , कपिल मुनि द्वारा अपनी माता को दिए गए उपदेश की कथा मैं साधु और असाधु के लक्षणों का वर्णन , करते हुए ब्रह्मचारी जी ने कहा कि जो उपदेश हम दूसरों को देते हैं पहले स्वयं उनका पालन करना चाहिए! कपिल मुनि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग का ब्रह्मचारी जी ने सहज सरल निरूपण किया। चतुर्थ स्कंद की कथा में प्रजापति दक्ष कन्या सती एवं भगवान शंकर की कथा का वृतांत सुनाते हुए ब्रह्मचारी जी ने कहा कि शंकर द्रोही कभी राम कृष्ण के भक्त नहीं हो सकते। आगे के कथा प्रसंग में ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए ब्रह्मचारी जी ने कहा है कि ध्रुव जैसी संतान के कारण पूरे कुल का उद्धार हो जाता है। आगे के प्रसंग में पृथ्वी के प्रथम सम्राट राजा पृथु की कथा मैं प्रजा की रक्षा हेतु पृथ्वी के दोहन से अन्न एवं रत्नों की प्राप्ति का वृतांत सुनाया। देवर्षि नारद द्वारा जीव के सास्वत स्वरूप का ज्ञान कराने के उद्देश्य से राजा पुरन्जन कथा का परोक्ष दृष्टांत सुनाते हुए ब्रह्मचारी जी ने कहा कि अंत समय में जिसकी जैसी स्मृति होती है उसे वैसी गति प्राप्त होती है। पुरंजन उपोख्यान सुनने से मुक्ति प्राप्त होती है, पुरंजन कथा का सरल निरूपण करते हुए ब्रह्मचारी जी ने कहा कि पुरंजन पुर रूपी शरीर मैं राजा रूपी जीवात्मा का निवास होता है! पुरंजन पुर रूपी मनुष्य शरीर में 9 द्वार होते हैं इंद्रियों के वशीभूत जीव विचरण करता है। तथा सांसारिक विषयों पर आसक्त होकर जीव अपने मित्र अभिज्ञ परमात्मा को भुला बैठता है। जीव के अज्ञान का नाश ध्यान से होता है और ज्ञान भागवत कथा श्रवण से प्राप्त होता है।

महाराज बाग निवासी विजेंद्र कुमार तिवारी के परिजनों के संयोजकत्वक्ष में आयोजित इस भागवत कथा में प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु नर-नारी उपस्थित होकर कथा श्रवण का पुण्य लाभ अर्जित कर रहे हैं।

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