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सिवनी। किसी की बुराई को उजागर नही करना भी नवधा भक्ति में से एक है। कहा कि भक्ति के बिना भवसागर से मुक्ति सम्भव नहीं।
उक्त बातें रामकथा के मर्मज्ञ अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक राजन जी महाराज ने कथा के सातवें दिन शनिवार को विकासखंड केवलारी के गांव मानेगांव (पलारी) में कही।

उन्होंने कहा कि अज्ञानता के बंधन से जो मुक्त नहीं हैं वैसे लोग कथा प्रवचन में आते नही आ भी गए तो मन उनका लगता ही नहीं। कहा कि पूर्व जन्मों के पुण्य से ही सत्संग नसीब होता है।
उन्होंने कहा कि जब आपके घर कई आये तो आदर सत्कार कर अपने से श्रेष्ठ से मुलाकात करवाना चाहिए और वार्ता करवाना चाहिए। हमारा वातावरण, व्यहवार, परिवेश, पहनावा, घर मे लगी तुलसी, राम नाम अंकित बताता है कि यह भक्त है। सज्जन है। विचार से वातावरण का निर्माण होता है। हनुमान जी को लंका में सिर्फ एक घर विभीषण का घर ही उत्तम लगा।
भक्त का लक्षण यह है कि किसी की उत्कर्ष, दिव्य वस्तु को देख कर प्रसन्न होने चाहिए। यह समझे कि आप पर भगवान की कृपा हो रही है।
व्यहवार, चेहरे में कितना भी छिपाव करें, जो मन के भीतर, चित पर जो चल रहा है, वह बोलते बोलते बहार निकल जाता है।
जीवन में राम कथा यही सिखाती है कि सभी को सकारात्मक विचारधारा रखना चाहिए। हमारे चिंतन से हमारे व्यवहार पर असर पड़ता है।
कहा कि कथा सत्संग में जिनका मन रम जाता है समझिए उनपर प्रभु की असीम कृपा है एवं उनका आने वाला समय और भी बेहतर् होने वाला है।











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