धर्म सिवनी

मानव की दृष्टि उन्नत कराती है श्रीमद् भागवत कथा : पं. नीलेश शास्त्री

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सिवनी। जब दृष्टि उन्नत हो जाएगी तो भगवान की दो कृपाओं का अनुभव होगा। एक दृश्य कृपा का और दूसरी भगवान की अदृश्य कृपा का अनुभव होगा। दृश्य और अदृश्य कृपा में भेद है। आंख खोलकर जो भी दिखलाई दे रहा है। भगवान ने मुझे यह-यह दिया है। यह सब एक दृश्य कृपा है, लेकिन अदृश्य कृपा जिसका जीव को पता नहीं होता है जैसे श्वास लेना, श्वास लेने में कितना श्रम हो रहा। यह आपको पता नहीं होता। यह सहज चल रही है, यह दृश्य कृपा है।

भोजन कर सोने के बाद भोजन किसने बचाया है। गीता के 15वे अध्याय में भगवान कहते हैं कि यह जो अदृश्य कृपा है। जीव तो भोजन करके सो जाता है। अंदर भोजन को 4 तरह से बचाता हूं तो यह दृश्य कृपा है। इसका अनुभव तब होगा जब दृष्टि उन्नत होगी। उक्त आशय की बात पंडित नीलेश शास्त्री ने रविवार को नगर के 12 पत्थर क्षेत्र स्थित वृद्धा आश्रम में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में कहीं।

वृद्धा आश्रम में पिछले तीन-चार सालों से पति-पत्नी सुनैना बाई चौकसे पति पूनाराम चौकसे नैनपुर जन्मभूमि मलारा केवलारी रह रहे थे। वही पिछले 8 माह पहले पूनाराम चौकसे का निधन वृद्धा आश्रम में हो गया था अपने स्वर्गीय पति पूनाराम चौकसे की याद में वृद्धा आश्रम में रह रही वयोवृद्ध पत्नी सुनैना बाई चौकसे अपनी जमा पूंजी यहां खर्च करते हुए वृद्धा आश्रम में श्रीमद् भागवत कथा करवा रही हैं।

सुनैना बाई चौकसे

शास्त्री जी ने आगे कहा कि सोलह सिंगार आज की माताएं भी नहीं जानती और ना 16 संस्कार याद रहे। करधन बांधने का तात्पर्य है कि जितना शरीर कसा रहेगा, उतना शरीर की इंद्रियां संयमित रहती थी। कलयुग में बालों का श्रंगार ही रहेगा। शास्त्रों में जो लिखा है वह अक्षरशहः सत्य हो रहा है। स्त्री जिस क्षण भोजन बनाती हैं उसके मन में क्या विचार चल रहे हैं? वह प्रक्रिया बनाने पर उसने के साथ व जिसे भोजन परोसा जा रहा है यह विचार उस तक पहुंचते हैं। इसीलिए मां को भी अपने बच्चों को जब स्तनपान कराती हैं तब मां को गुस्से में इर्षा, द्वेष से दुग्ध पान नहीं कराना चाहिए। मां के हृदय के विचार दुग्धपान के समय पुत्र तक पहुंचते हैं। शुद्ध जननी मातृत्व का उदय हो। क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, कपट, छलछिद्र नहीं होना चाहिए। बालक जो दुग्ध का पोषण कर रहा है यह जो दृष्टि है यह दृष्टि मानव समाज को तभी प्राप्त होगी जब यह मानव समाज इस सत्संग का अवलंबन लेगा। वातावरण का प्रभाव भी उस अन्न के साथ जाता है। इसीलिए शास्त्रों में टूटे बर्तन में भोजन करना वर्जित लिखा है। साथ ही जहां कोलाहल हो, जहां झगड़ा हो रहा हो, जहां पूर्णता अंधकार है। वहां भोजन करना वर्जित माना गया है।

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