मध्य प्रदेश राजनीति सिवनी

पेंशन वेतन नहीं जीवन यापन का संवैधानिक अधिकार है, मध्य प्रदेश में ऐसा क्यों हो रहा है

सिवनी। मध्यप्रदेश में कर्मचारियों और पेंशनर को प्रदान किये जाने वाले डी ए के भुगतान को लेकर राज्य द्वारा
केंद्र के निर्देशों का भी पालन नहीं किया जा रहा है ?जबकि देश के अन्य हिस्सों में केंद्र की निर्देशों का पालन करते हुए अन्य प्रदेशों की सरकारों ने कोरोना काल के दौरान केंद्र द्वारा प्रतिबंधित किये गए डी ए तथा अन्य सुविधाओं को कर्मचारियों एवं पेंशनरों के हित में बहाल करने के निर्देश जारी कर दिए लेकिन प्रदेश सरकार केंद्र के निर्देशों को नज़रअंदाज़ कर तरह तरह के कारण गिनाकर आज तक भी कर्मचारियों और पेंशनरों का डी ए तथा एरियर भुगतान करने में असफल सिद्ध हुई है? परिणाम स्वरुप कर्मचारी संगठनों एवं भुक्त भोगियों एवं उनके परिवारों में इस अव्यवस्था के विरुद्ध भारी असंतोष दिखाई दे रहा है। यदि अब भी प्रदेश सरकार या नुमाइंदे इस तथ्य को नज़र अंदाज़ ही करते रहे तो इसकी सीधी प्रतिक्रिया नगर निगम पंचायत एवं आने वाले विधान चुनाव में देखने को मिलेगी।

सूत्रों के मुताबिक पूर्व में कमलनाथ की सरकार के समय घोषित पांच प्रतिशत डीए का भुगतान नहीं किया गया। वर्तमान में इकतीस प्रतिशत डी ए तथा एरियर भुगतान नहीं किया गया है? कोरोना काल के दौरान आम नागरिक व्यवसाइयों कर्मचारियों तथा पेंशनरों ने भी केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को बिना हीला हवाला किये सहज रूप से स्वीकार करते हुए पूर्ण सहयोग किया होना ये चाहिए था की स्थिति सामान्य होने पर प्रतिबन्ध बहाली के बाद प्रदेश सरकार अन्य प्रदेशों की सरकारों की तरह बहाली करती लेकिन ऐसा नहीं हुआ ?
आरोपित है की प्रदेश सरकार नियमित कर्मचारियों तथा पेंशनरों के बीच तरह तरह की शंकाओं को जन्म देकर मतभेद जैसी स्थिति उत्पन्न कर अपनी कथित मनमानी करने पर उतारू दिखाई दे रही है? जिसे बिलकुल भी उचित नहीं कहा सकता इस तथ्य को कर्मचारी संगठनों को भी समझना होगा।
ऐसा क्यों हो रहा है की केंद्र के निर्देश का पालन प्रदेश सरकार नहीं कर पा रही है ? नेतानुमा तत्वों के पास प्रत्युत्तर में कई विकल्प हो सकते हैं सिवाए इसके की सच को स्वीकार किया जाना चाहिए।
मध्यप्रदेश का आम नागरिक किस तरह व्यथित दिखाई दे रहा है और असंतुष्ट क्यों ?कुछ गिने चुने कारणों का उल्लेख किया जाना भी आवश्यक हो जाता है।

जब पेंशनर ने डी ए और एरियर के भुगतान की मांग की तो कहा गया की मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ अब अलग हो गए हैं और भुगतान के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की सहमति लेना होगी ,सवाल ये है की ये नियम किसने बनाया और बनाया तो इसे निरस्त भी किया जा सकता है सहमति भी ली जा सकती है या छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार को सहमति नहीं दी ,ये काम किसका है सरकार का या कर्मचारी पेंशनर का ?

चुनावी गणित के हिसाब से दलीले क्यों दी जाती हैं ? यहाँ उल्लेख करना जरुरी हो जाता है की एक कर्मचारी और एक पेंशनर के परिवार में एक घर में कमोवेश पांच मेंबर आते हैं आंकड़े सरकार के पास भी होंगे ये भी वही लोग हैं जिन्होंने केंद्र सरकार की मंशा के अनुरूप कोरोना काल में किस तरह तरह परिवारों को चलाया है कितनी कठिन परिस्थिति से गुजरे हैं।

लोकतंत्र में समानता का संवैधानिक अधिकार देश के हर नागरिक को है ।सरकार के नीति निर्धारण करने वाले तबके को ये नहीं भूलना चाहिए की पेंशन वेतन नहीं है जीवन यापन का साधन मात्र है। उन्हें उनके हक़ों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए ना ही उन्हें बाध्य होकर न्यायालय की शरण में जाने की जरुरत पड़ना चाहिए इसलिए की हर पेंशनर लगभग सीनियर सिटीज़न की श्रेणी में आता है जिसकी पेंशन का अधिकांश हिस्सा उस के स्वास्थ्य और दवाओं पर खर्च होता है। केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुरूप अन्य राज्यों की तरह मध्यप्रदेश सरकार को जनहीत में तत्काल निर्णय लेने की आवश्यकता है।

जगदीश तपिश (वरिष्ठ साहित्यकार)
ह्यूमन राइट एक्टिविष्ट

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