सिवनी। मध्यप्रदेश का सौभाग्य है कि यहाँ का ब्राह्मण शंकराचार्य है और वह ब्राह्मण समाज को धर्म में चलने की प्रेरणा दे रहा है। चातुर्मास के दौरान संन्यासी की सेवा करने का पुण्य राजसूय और अश्वमेध यज्ञ के फल के बराबर होता है। ब्राह्मण द्वारा ब्राह्मणत्व की रक्षा से वैदिक धर्म की रक्षा होती है। ब्राह्मण बच्चियों में स्वाभिमान पैदा करें और उन्हें संस्कारवान बनायें, ताकि उनका विवाह जाति में ही हो। उक्ताशय के सारगर्भित उपदेश ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने सिवनी जिले के ब्राह्मणों द्वारा आयोजित पादुकापूजन कार्यक्रम में दिये।
महाराजश्री ने कहा कि ब्राह्मणों ने यहाँ आकर हम लोगों का अभिनंदन किया है वह अत्यंत संतोष का विषय है। संन्यासी चातुर्मास में स्थायी रहकर ध्यान और अध्ययन करता है, बाकी समय वह भ्रमण करते रहता है। चातुर्मास के दौरान जिस भी संन्यासी की सेवा की जाती है उसका पुण्य फल राजसूय व अश्वमेध यज्ञ के फल के बराबर प्राप्त होता है।
महाराजश्री ने बताया कि वैदिक धर्म की रक्षा के लिये भगवान ने अवतार लिया है और गौ एवं ब्राह्मण की रक्षा की है। ब्राह्मण द्वारा ब्राह्मणत्व की रक्षा से वैदिक धर्म की रक्षा होती है। विद्या, तप और यौनि ब्राह्मण के तीन कारण होते हैं। विद्या और तप से वह जाति ब्राह्मण हैं। आपने कहा कि मनुष्य को अभिमान उठाता भी है और गिराता भी है। जब हम दूसरों को नीच समझते हैं तो हमें यही अभिमान गिराता है और जब हम अपने पूर्वजों का स्मरण करते हैं तो यही अभिमान हमें उठाता है। ब्रम्ह हत्या का पाप ब्राह्मण और ब्राह्मणी दोनों के लिये होता है। ब्राह्मण में अद्भुत क्षमता होती है, भगवान की अंतिम कृति ब्राह्मण ही है। संन्यास और ज्ञान जिस ब्राह्मण ने प्राप्त कर लिया उसका जन्म नहीं होता उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है।
द्विपीठाधीश्वर ने कहा कि चर्तुवर्ण की सृष्टि ईश्वर ने ही पैदा की है। पुण्यों के फल के कारण ही ब्राह्मण का जन्म होता है। ब्राह्मण जाति को नष्ट करने के प्रयास किये जा रहे हैं। एक संस्था हिन्दू-हिन्दू को एक हो जाने और अंर्तजातिय विवाह की पक्षधर है, जो लोगों के कुल को बिगाड़ रहे हैं, इनसे हमें सावधान रहने की आवश्यकता है। बच्चियों को संस्कार दें, लेकिन उनमें इतना स्वाभिमान हो कि वे विवाह अपनी जाति में ही करें। अभिभावकों को चाहिये कि वे अपनी बच्चियों में स्वाभिमान पैदा करें और उनका विवाह समाज में ही करें। ऐसा न हो कि उन्हें पढ़ने विदेश भेजें और वे वहीं विवाह करके ईसाई बन जायें। आपने कहा कि लोग कुत्ता भी खरीदने जाते हैं तो उसकी नस्ल देखते हैं। महाराजश्री ने बताया कि ब्राह्मण समाज के लिये जीता है, सब कुछ छोड़कर वेदशास्त्र की रक्षा के लिये धन को त्याग देता है। ब्राह्मण को विकास का अवसर मिलना चाहिये और उसे शास्त्र एवं संस्कृति का ज्ञान होना चाहिये।
महाराजश्री ने कहा कि चार आश्रम बताये गये हैं- ब्रम्हचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। गृहस्थ आश्रम शूद्रों के लिये है और वैश्यों के लिये ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ एवं क्षत्रियों के लिये ब्रम्हचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ तीनों आश्रम हैं, लेकिन आप चारों आश्रम के पात्र हैं। चातुर्मास के दौरान ब्राह्मणों ने जो सेवा और अभिनंदन का कार्य किया है वह परंपरा समाज में रहनी चाहिये। आपके द्वारा दिये गये धन से जो अन्न संन्यासी ग्रहण करेगा और ब्रम्हज्ञान प्राप्त करेगा उसका पुण्य उन सभी लोगों को प्राप्त होगा। महाराजश्री को जो अभिनंदन पत्र सौंपा गया उसको लिपिबद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका गीता मनीषी ब्रम्हचारी निर्विकल्पस्वरूप ने निभाई है।
आपने कहा कि सिंह में आलस्य न होे तो वह सबको खा जायेगा, सांप में भय न हो तो वह सब को काट खायेगा, इसी तरह ब्राह्मण में एकता हो तो वह सबको जीत सकता है। एक दूसरे की टांग पकड़कर खींचना छोड़ें और एकता बनाये रखनी चाहिये। आपने बताया कि शंकराचार्य पद पर दक्षिण भारतीय ब्राह्मण विराजित होते थे, फिर बाद में उत्तर भारत के ब्राह्मण शंकराचार्य बने। मध्यप्रदेश के ब्राह्मणों को वहाँ के लोग ब्राह्मण ही नहीं मानते थे, यह तो सौभाग्य की बात है कि मध्यप्रदेश का ब्राह्मण शंकराचार्य है और वह आप सब लोगों को धर्म में चलने की प्रेरणा दे रहा है। आपने कहा कि ब्राह्मण बच्चों के लिये कई जगह संस्कृत विद्यालय खुलना चाहिये ताकि वे शास्त्रों का अध्ययन कर सकें। आपने अंत में ब्राह्मण समाज के सभी लोगों की मंगलकामना का आशीर्वाद दिया।
समाज ने चारों पदाधिकारियों का किया आभार व्यक्त- पिछले 70 सालों से चातुर्मास व्रत का अनुष्ठान कर रहे द्विपीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज की पादुकापूजन और अभिनंदन का यह पहला अवसर था। जिले के ब्राह्मण समाज के लोगों ने अपनी स्वेच्छा से धनराशि समर्पित कर इस कार्य में अपनी सहभागिता निभाई, लेकिन जिला ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष, महासचिव, कोषाध्यक्ष और नगराध्यक्ष ने महाराजश्री की पादुकापूजन से लेकर माल्यार्पण करने, साफा (पगड़ी) पहनाने, द्रव्य दक्षिणा समर्पित करने के अलावा अभिनंदन पत्र सौंपने का कार्य अपने ही हाथों से किया। जिला ब्राह्मण समाज के लोगों ने इन चारों पदाधिकारियों का आभार और धन्यवाद व्यक्त करते हुये कहा कि उनकी एकता और अखण्डता ऐसी ही बनी रहे ताकि समाज एक नई दिशा की ओर अग्रसर होकर अनुकरणीय कदम उठाते रहे।
हवन में आहूति केवल पुरूषों को ही डालना चाहिये- किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के दौरान किये जाने वाले हवन में महिलाओं को आहूतियां डालना वर्जित है, जो महिलाएं दाम्पत्य जीवन में हैं उन्हें अपने पति के हाथ के स्पर्श से ही इस पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। यह बात द्वारका शारदा पीठ के प्रभारी दंडी संन्यासी स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज ने कही है। आपने कहा कि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में हवन करते समय साकल या घी से आहूतियां केवल पुरूषों को ही डालनी चाहिये। आपने बताया कि सालिगराम भगवान की पूजा स्त्रियों को वर्जित है, इनकी पूजा पुरूषों को ही करनी चाहिये। रामरक्षा स्त्रोत का पाठ सभी लोग कर सकते हैं। महिलाओं को वेद नहीं पढ़ना चाहिये, वे पुराणों का अध्ययन कर सकती हैं। महिलाएं वेदपाठ इसलिये नहीं कर सकती क्योंकि उनका यज्ञोपवित संस्कार नहीं होता है और जो ब्राह्मण बालक यज्ञोपवित संस्कार नहीं करा पाते उन्हें भी वेद पढ़ने का अधिकार नहीं है।
अविमुक्तेश्वरानंद द्वारा रचित ग्रंथ का शंकराचार्य जी ने किया विमोचन – ज्योतिर्मठ बदरिकाश्रम हिमालय के प्रकाशन सेवालय की ओर से प्रकाशित एवं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती द्वारा रचित ग्रंथ का जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के कर-कमलों से विमोचन किया गया। यह ग्रन्थ वाराणसी के ग्लोरियस पब्लिक एकेडमी के निदेशक गिरीशचन्द्र तिवारी के सहयोग से प्रकाशित हुआ है। विमोचन के पूर्व श्री तिवारी ने पूज्यपाद शंकराचार्य जी महाराज का पादुका पूजन किया।
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