सिवनी। वर्तमान में ओबीसी समाज करवट ले रहा है, अपने हक-अधिकार व लोकतंत्र में अपनी भूमिका को वह समझ रहा है। ऐसे संक्रमण-काल में जातीय संगठनों की जिम्मेदारी और महत्वपूर्ण हो जाती है। आज कोर्ट के फैसले भी हमको राहत नहीं दे रहे हैं। न्याय लेने के लिए हमें लोकतंत्र को मजबूत करना होगा।
उक्ताशय की बात ओबीसी महासभा के जातीय समन्वयक सदस्य ओम., ओबीसी कृषक मोर्चा जिला अध्यक्ष अजय साहू द्वारा कही गई। श्री साहू ने कहा कि वर्तमान में ओबीसी महासभा समाज को विकास के ट्रैक पर लाने के लिए जूझ रही है। इसके लिए जरुरी है कि हमारे समाज की जनगणना हो, तद्नुसार उसे समुचित भागीदारी मिले। उन्होंने कहा कि इस हेतु मेरा समाज, आपका समाज या अन्य दूसरे समाज के संगठन भी अलग-अलग कोशिश करेंगे तो भी नहीं मिलने वाले हैं। हमें विचार करना चाहिए कि ये सब क्या कोई एक जातीय संगठन दिलवा सकता है? यदि नहीं तो सामाजिक संगठनों को बिना देर किए ओबीसी महासभा के समर्थन में आना चाहिए क्योंकि यह संगठन निश्चित रूप से आपके हिस्से का ही काम कर रहा है। इसके लिए सभी संगठनों को एक मंच पर आकर एक स्वर में अपनी माँगे बुलंद करनी होगी। इसके लिए अलग से संगठन या मंच बनाने की जरुरत नहीं है। हमारे बीच ओबीसी महासभा इस हेतु संघर्षरत है; हमें उसके समर्थन और सहयोग में उतरना चाहिए। सहयोग/समर्थन करने से पहले हमें जाँच-परख करनी चाहिए कि जिन मुद्दों को लेकर के संघर्षरत है कहीं वे राजनीति से प्रेरित या किसी के निजी स्वार्थ के लिए तो नहीं हैं। इसे जानने-समझने के लिए 7 अगस्त को सभी जातीय संगठनों की मीटिंग आयोजित की जाने वाली है।
श्री साहू ने कुछ उदाहरण देते हुए बताया कि SC, ST वर्गों और धार्मिक समुदायों की जनगणना हो सकती है, तो ओबीसी वर्ग की क्यों नहीं होना चाहिए? जनसंख्या के अनुपात में ओबीसी समुदाय को प्रतिनिधित्व याने पंचायत से लेकर संसद की सोटें मिलेंगी तो जाति संगठनों को अपने लिए सीट की भीख मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसी तरह जनसंख्या के अनुपात में स्कूल कॉलेजों और सरकारी तथा निजी क्षेत्र की नौकरियों में आरक्षण मिलेगा तो “मैं भी बेरोजगार हूँ” यह ट्रेंड नहीं चलाना पड़ेगा। मेहनतकश किसान मजदूर और छोटे व्यापारियों को राजकीय सहायता मिलेगी तो यह वर्ग अर्थव्यवस्था में अपना यथेष्ट योगदान कर सकेंगे।
अन्त में जातीय समन्वयक सदस्य श्री साहू ने बताया कि अभी 13 जुलाई को माननीय हाईकोर्ट के फैसले से हजारों युवा प्रभावित हुए हैं; उन्हें न्याय दिलाने 28 जुलाई को भोपाल जाकर सी.एम.हाउस का घेराव कार्यक्रम है। इस हेतु हमें तन-मन-धन से सहयोग करना है। क्योंकि सरकार मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने की बात कर रही है जहाँ मराठा, जाट, पटेल आदि सब आरक्षण की लड़ाई हार चुके हैं। अतः हमें हक-अधिकार कोर्ट से नहीं बल्कि तमिलनाडु सहित दक्षिण भारतीय राज्यों की तरह संसद और विधानसभा से मिलेंगे।
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