खजुराहो/सिवनी। जिस प्रकार से धन अर्थ की एक अपनी उपयोगिता है उसी प्रकार से प्रकृति में हमें काम ऊर्जा भी दिया है। उक्ताशय की बात आनंद मुकेश निदेशक, आनन्द तंत्र स्टूडियो (आध्यात्मिक काम अध्ययन केंद्र) होटल मेरवाडा इन कॉम्प्लेक्स, गंज, उतार, अजमेर 305001, राजस्थान ने खजुराहो दर्शन में पहुंचे लोगों से कही।
उन्होंने आगे बताया कि सनातन धर्म के अनुसार मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ हैं। धर्म, अर्थ ,काम और मोक्ष। धर्म, वह है जिसे धारण किया जाए अर्थात जीवन जीने की पद्धति। सांसारिक जीवन जीने के लिए मौलिक जरूरतों (रोटी, कपड़ा और मकान) की आवश्यकता होती है। इन्हीं मौलिक जरूरत को अर्जित करने के लिए धन की, अर्थ की आवश्यकता है। इस दृष्टि से अर्थ भी एक आवश्यक पुरुषार्थ है। तीसरा पुरुषार्थ है काम, अर्थात प्रकृति प्रदत्त काम ऊर्जा। इस काम ऊर्जा के दो उपयोग है, 1) इसका उपयोग अपने ही जैसे मनुष्यों को जन्म देने में किया जाता है, अर्थात प्रकृति को आगे बढ़ाने की दिशा में इस ऊर्जा का महत्वपूर्ण उपयोग है।
2) काम ऊर्जा का एक और विराट उपयोग भी हो सकता है, जिसकी तरफ भगवान शिव ने विज्ञान भैरव तंत्र नामक ग्रन्थ में इशारा किया है। उक्त ग्रंथ में भगवान शिव उपदेश देते हैं कि काम ऊर्जा का आध्यात्मिक नियोजन करके, कोई भी व्यक्ति अपनी आत्मा का साक्षात्कार कर सकता है। इसका अर्थ हुआ कि काम ऊर्जा का उपयोग प्रत्येक मनुष्य अपनी आत्मा को जानने के लिए कर सकता है।
तीसरे पुरुषार्थ का यदि आध्यात्मिक नियोजन हो जाए तो वह हमें चौथे पुरुषार्थ, मोक्ष के लिए परिपक्व कर देता है, तैयार कर देता है। मोक्ष अर्थात वह चेतना,जो काम ,क्रोध ,मद लोभ और मोह रूपी पांच विकारों से मुक्त है। इस प्रकार मनुष्य काम ऊर्जा का आध्यात्मिक नियोजन करके अपनी भगवत्ता को भी उपलब्ध हो सकता है।
प्राचीन समय में ,काम ऊर्जा के आध्यात्मिक नियोजन की शिक्षा खजुराहो ,अजंता एलोरा गुफाएं ,कोणार्क मंदिर, कर्नाटक के हम्पी के मंदिर इत्यादि केंद्रों में दी जाती थी।
उन्होंने आगे बताया कि प्रकृति के द्वारा यह ऊर्जा सभी को दी गई है और इसका कुछ उद्देश्य है। दो उद्देश्य मुख्य रूप से हैं। पहला उद्देश्य है अपने जैसे बच्चे पैदा करना। इस उद्देश्य से सभी परिचित है। सभी ने काम का यह आयाम जिया है। क्या यही जीना काम को पूरी तरह से जानना है, नहीं।
सेक्स की समझ ऊपरी सतह पर ही लोगों को है। सेक्स का गहरा ज्ञान को जानते ही नहीं है लोग और गहरा ज्ञान देने के लिए इस प्रकार के मंदिर बनाए गए। भारत में इस प्रकार के चार मंदिर हैं। पहला खजुराहो, दूसरा महाराष्ट्र में औरंगाबाद जिले में अजंता एलोरा की गुफाएं, तीसरा उड़ीसा के कोणार्क मंदिर और चौथा कर्नाटक में हंपी स्थान है।
भारत में सिर्फ चार शिक्षा के केंद्र थे जहां काम के विषय में गहरा ज्ञान दिया जाता था। काम विज्ञान का गहरा विज्ञान जो है वह तंत्र विद्या में कहलाता है। तंत्र विज्ञान तांत्रिक नहीं है जिन्हें हम तांत्रिक समझते हैं उनके लिए मात्रिक शब्द है तांत्रिक नही। जो काम ऊर्जा का आध्यात्मिक नियोजन करता है वह तांत्रिक है। भगवान शिव से ही इस ज्ञान की उत्पत्ति हुई है। शिव कहते हैं विज्ञान भैरव तंत्र ग्रंथ में इसका अध्ययन किया जाए तो उसमें 112 विधियां बताई गई है, जिसे अपनाकर चौथा पुरुषार्थ अर्थात मोक्ष में इंसान जा सकता है। मोक्ष का मतलब मृत्यु नहीं है। मोक्ष का मतलब है मुक्त हो जाना किससे मुक्त हो जाना। काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार इससे मुक्त होना ही मोक्ष है। आत्मा से मिलने का जो प्राकृतिक तरीका है वह है काम विज्ञान। जिसकी पहली शिक्षा इस प्रकार से यहां दी जाती थी। इन स्थानों में शिक्षा मिलती थी। अब वर्तमान में भारत सरकार चाहती है कि इस प्रकार की शिक्षा पुनः दी जाए।
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