सिवनी

जेल के अंदर रहकर भी आत्ममंथन करने की है आवश्यकता : बारपेटे

सिवनी। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सोमवार को जिला जेल सिवनी में ‘‘महिलाओं के अधिकारों के संबंध में’’ विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन किया गया। शिविर में सीके बारपेटे, अपर जिला न्यायाधीश/सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सिवनी द्वारा उपस्थित महिलाओं को महिलाओं के कानूनी अधिकारों के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदान की। उनके द्वारा बताया गया कि समाज और परिवार में कैसे रहना है और लोगों के साथ मिलकर कैसा व्यवहार करना है। जेल के अंदर हो या बाहर हो हमारे व्यवहार के उपर निर्भर करता है। जेल के अंदर रहकर भी आत्ममंथन करने की आवश्यकता है एवं अन्य जेल बंदियों से मिलकर निःशुल्क विधिक सहायता की जानकारी दी एवं कुछ जेल बंदी ऐसे पाये गये, जिनके पास अधिवक्ता नहीं थे उनके आवेदन लिये गये।

श्रीमती दीपिका ठाकुर, जिला विधिक सहायता अधिकारी, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सिवनी द्वारा सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुये अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर ‘‘महाविद्यालयीन अनुसूचित जाति कन्या छात्रावास सिवनी’’ में महिला कानूनों के संबंध विधिक साक्षरता शिविर के माध्यम से अधिक से अधिक महिलाओं को जागरूक किये जाने हेतु विधिक साक्षरता शिविर आयोजन किया गया। उक्त शिविर में विधिक सहायता अधिकारी द्वारा अपने वक्तव्य मंे महिलाओं के कानूनी अधिकार के बारे मंे विस्तृत जानकारी दी गई उनके द्वारा बताया गया कि महिलाओं को सशक्त बनाने का अच्छा तरीका उन्हें कानूनी अधिकारों की जानकारी देना है ताकि वे जान सके कि कानून ने उन्हें कितनी सुरक्षा प्रदान की है और वे कानून के माध्यम से कौन-कौन से हक प्राप्त कर सकते है, अत्याचार, अन्याय और शोषण के विरूद्ध कैसे लड़ सकती है यह तभी संभव है जब उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी हो। निःशुल्क विधिक सहायता का अधिकार के संबंध में बताया गया कि ऐसी महिलायें जो किसी भी न्यायालय में उनके विरूद्ध चल रहे प्रकरण अथवा उनके द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले प्रकरण में स्वयं के व्यय में अधिवक्ता लगाने में असमर्थ हैं ऐसी महिलाओं को निःशुल्क विधिक सहायता योजना के अंतर्गत अधिवक्ता एवं अन्य व्यय जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। इस हेतु महिला संबंधित न्यायालय एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कार्यालय में संपर्क कर सकती है, साथ ही निःशुल्क कानूनी सलाह, परामर्श के लिए कार्यालय से संपर्क कर अपनी समस्या का समाधान कर सकती है।

भरण पोषण के अधिकार के अंतर्गत भारतीय दण्ड संहिता 1973 की धारा 125 के अंतर्गत यदि किसी महिला को उसके पति के द्वारा त्याग कर दिया गया है और महिला का भरणपोषण नहीं किया जाता है तो महिला उक्त प्रावधान के अंतर्गत संबंधित मजिस्टेªेट न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर भरणपोषण प्राप्त कर सकती है। इसी प्रकार कोई हिन्दू पत्नि अपने पति के विरूद्ध प्रस्तुत तलाक या अन्य विवाह संबंधी मुकद्में की सुनवाई के दौरान भरण पोषण चाहती है तो उसके लिये उसे ऐसे वैवाहिक मामले की सुनवाई कर रहे न्यायालय के समक्ष हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत अंतरिम भरणपोषण प्राप्त करने का अधिकार है। इस प्रकार के आवेदन प्रस्तुत करने के पहले यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि आवेदिका के पास स्वयं एवं अवयस्क बच्चों के भरण पोषण के पर्याप्त साधन नहीं है और वह अपना खर्च वहन करने में असमर्थ है और विपक्षी भरण पोषण के दायित्व की पूर्ति नहीं कर रहा है। घरेलू हिंसा से संबंधित अधिकार के अंतर्गत भारत में महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा से संरक्षण प्रदान करने के लिये घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005 निर्मित किया गया है जिसमंे घरेलू हिंसा के अंतर्गत शारीरिक हिंसा/उत्पीड़न, लैंगिक हिंसा/शोषण मौखिक एवं भावनात्मक हिंसा, आर्थिक हिंसा को घरेलू हिंसा माना गया है। कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न से संरक्षण का अधिकार के अंतर्गत बताया गया कि कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न को रोकने हेतु उत्पीड़न को रोकने हेतु बनाया गया है जिसमें महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोषण) अधिनियम 2013 लैंगिक उत्पीड़न के अंतर्गत ऐसा निंदनीय लैंगिक रूप से नियम व्यवहार (चाहे प्रत्यक्ष रूप से या तात्पर्यित) सम्मिलित है जैसे शारीरिक संपर्क या यौन मित्रता की कोशिश या मांग करना, यौन संबंधी टिप्पणी या मजाक, अश्लील पुस्तक या चित्र दिखाना किसी भी प्रकार का यौन संबंधी अनचाहा व्यवहार इस अधिनियम के अंतर्गत समस्त विभागों मंे जो शासकीय या स्थानीय प्राधिकरण या किसी सहकारी कंपनी या किसी निगम या किसी सहकारी सोसायटी या प्राईवेट सेक्टर या संगठन, अस्पताल में आंतरिक परिवाद समिति के गठन का प्रावधान किया गया है। उक्त शिविर में उपस्थित महिलाओं को पंपलेट्स वितरित किये गये।

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