सिवनी। “पदोन्नति नियम 2025” की विसंगति दूर किए जाने, न्यायालयीन निर्णयों के परिपालन के संबंध में आज दिनांक 11/07/2025 दिन शुक्रवार को “स्पीक संस्था” द्वारा(पूर्व नाम सपाक्स) माननीय मुख्यमंत्री,माननीय मुख्य सचिव के नाम कलेक्टर महोदय को ज्ञापन सौंपा गया।सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था के अधिकारी कर्मचारी पदाधिकारी उपस्थित रहे।
प्रद्युम्न चतुर्वेदी.
जिला अध्यक्ष एवं जिला नोडल अधिकारी.
सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था स्पीक (पूर्व नाम सपाक्स).
प्रति,
माननीय मुख्यमंत्री महोदय जी,
भोपाल,मध्यप्रदेश.
विषय – दिनांक 19 जून 2025 को म.प्र राजपत्र में प्रकाशित “पदोन्नति नियम 2025” की विसंगति दूर किए जाने, न्यायालयीन निर्णयों के परिपालन के संबंध में।
मान्यवर,
विषयांतर्गत लेख है कि दिनांक 19 जून 2025 को म.प्र सरकार द्वारा नए पदोन्नति नियम प्रभावशील किए हैं, जिसके अंतर्गत शीघ्र ही पदोन्नतियों की कार्यवाही भी की जाना प्रस्तावित है। माननीय मुख्य सचिव के समक्ष उक्त पदोन्नति नियमों के संबंध में अनौपचारिक चर्चा दिनांक 29 मई 2025 को संस्था के प्रतिनिधि मण्डल द्वारा की गई थी।
बैठक में मुख्यता यह स्पष्ट किया गया कि –
- नियम जारी होने की दिनांक से प्रभावशील होंगे अर्थात उन सेवानिवृत अधिकारी/ कर्मचारियों को इनसे कोई लाभ नहीं होगा, जिन्हें 2016 से निरंतर पदोन्नति के लाभ से वंचित रखा गया।
- अधिकारी/ कर्मचारियों की वरिष्ठता वर्तमान पदक्रम सूची अनुसार ही रहेगी अर्थात उन्हें पदावनत नहीं किया जाएगा, जिनके संबंध में मा.उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय वर्ष 2016 में पदावनत करने का आदेश दिया था।
- नियमों में क्रीमीलेयर का कोई प्रावधान नहीं हैं। मा. सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के अनेकानेक स्पष्ट निर्देशों के बावजूद नियमों में इसका प्रावधान न किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
इस चर्चा में स्पीक संस्था के प्रतिनिधियों ने नियमों में किए गए कतिपय सुधारों पर यद्यपि स्वीकृति दी थी तथापि यह भी स्पष्ट किया था कि नियमों को पूर्ववर्ती दिनांक से लागू किया जाए और नियम मा. न्यायालयों के विभिन्न निर्णयों के अनुसार, सभी शर्तों की पूर्ति करते हुये बनाए जाएँ। इस संदर्भ में संस्था ने लिखित रूप से भी अवगत कराया था।
यहाँ यह भी स्पष्ट करना उचित होगा कि मा. उच्च न्यायालय जबलपुर की खंडपीठ ने मात्र आरक्षित वर्ग को असंवैधानिक नियमों के तहत दिये गए लाभ पर प्रश्नचिन्ह लगाया था,सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारी/कर्मचारियों की पदोन्नतियों पर कोई रोक नहीं लगाई थी एवं इस संबंध में कुछ प्रकरणों में म.प्र उच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट व्याख्या भी दी जा चुकी है। लेकिन इसके बावजूद भी सामान्य,पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी/ कर्मचारियों की पदोन्नतियां मध्यप्रदेश सरकार द्वारा नहीं की गईं।
इससे स्पष्ट होता है कि सरकार सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंखयक वर्ग की लगातार उपेक्षा कर रही है।अत: स्पीक वर्ग (पूर्व नाम सपाक्स)को यह नियम तब तक स्वीकार नहीं होंगे जब तक पदावनती की कार्यवाही कर पदक्रम सूचियां संशोधित नहीं की जाती। महोदय,स्पीक संस्था(पूर्व नाम सपाक्स) पुन: अनुरोध करती है कि उक्त नियम 2016 से प्रभावशील कर स्पीक वर्ग मात्र की पदोन्नतियों को नियमों के अंतर्गत की जाएँ तथा अनु. जाति/ जनजाति वर्ग को मा. सर्वोच्च न्यायालय के अन्तरिम आदेश अनुरूप यथास्थिति रखा जाए।
महोदय, नए पदोन्नति नियमों के अवलोकन पर संस्था द्वारा निम्न विसंगतियाँ पाई गईं हैं, जो मा. सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप नहीं हैं-
(1)नियमों की प्रस्तावना में मा. उच्च न्यायालय जबलपुर के आदेश दि 30.04.2016 के ओपरेटिंग पैरा का उल्लेख है-
“……… Consequently, various promotions of SCs/STs category made on the basis of these rules of 2002 are held to be non-est in the eyes of law and the persons be placed in position as if said Rules (i.e. the Rules which are declared ultra-vires) never existed and all actions taken in furtherance thereof must be reverted status quo ante.”
स्पष्ट है कि प्रश्नचिन्ह एससी/एसटी श्रेणी के अधिकारी कर्मचारियों की पदोन्नति पर है, न कि अन्य किसी वर्ग के अधिकारी/ कर्मचारियों पर।
(2) प्रस्तावना के पैरा 2 में मा. सर्वोच्च न्यायालय के 12.05.2016 के अन्तरिम आदेश का उल्लेख है-
“Until further orders, status quo, obtaining as on that day, shall be maintained.”
(3) प्रस्तावना के पैरा 3 में उक्त 2 आदेशों के फलीभूत विगत 9 वर्षों से पदोन्नतियाँ बाधित रहने का उल्लेख है। यह पूरी तरह से गलत है। वास्तविकता यह है कि स्वयं मध्यप्रदेश सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने आधिकारिक रूप से कहा है कि ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है।जबकि विभिन्न विभागों द्वारा मा. न्यायालय के अनेक पश्चातवरती निर्णयों में मा. उच्च न्यायालय जबलपुर के आदेश दिनांक 30.04.2016 तथा मा.सर्वोच्च न्यायालय के 12.05.2016 के अन्तरिम आदेश की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया है कि एससी/एसटी वर्ग को छोडकर किसी अन्य वर्ग के अधिकारी/कर्मचारियों की पदोन्नति पर कोई रोक नहीं है।
स्पष्ट है कि विगत 9 वर्षों से न्यायालयीन आदेशों के बावजूद सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के साथ अन्याय हो रहा है।
(4) न तो प्रस्तावना, न अन्य कहीं इस तथ्य को स्पष्ट किया गया है कि किस आधार पर पदोन्नति में आरक्षण देने की व्यवस्था की जा रही है। आरक्षण की पर्याप्तता कहीं भी परिभाषित नहीं है, न ही ऐसे कोई आंकड़े/ प्रतिवेदन का हवाला दिया गया है जो पदोन्नति में आरक्षण दिये जाने की अनिवार्यता स्पष्ट करते हों। यह मा.सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की स्पष्ट अव्हेलना है।
(5)प्रस्तावना के अंत में उल्लेख है कि नियम 2025 के अंतर्गत कार्यवाही विशेष अनुमति याचिका 13954/ 2016 के अध्यधीन होगी। यह अत्यंत विसंगतिपूर्ण है कि जिस अनुमति याचिका में अनु जाति/ जनजाति वर्ग के लिए यथास्थिति के अन्तरिम आदेश हैं और इस आधार पर सरकार उन्हें पदावनत नहीं कर रही तो उनकी पदोन्नति नए नियमों में कैसे कर सकती है? यह घोर आपत्तिजनक है और सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग इसका पुरजोर विरोध करते हैं।
यहाँ यह उल्लेख करना समीचीन होगा कि विशेष अनुमति याचिका 13954/ 2016, जो सैद्धान्तिक अवधारणा सुनिश्चित करने के लिए अन्य याचिकाओं के साथ Jarnail Singh Vs. Lacchmi Narayan Gupta 2022 (10) SCC 396) (Jarnail Singh II) के साथ टैग की गई थी जिसमें 6 मूलभूत प्रश्नों पर मा.न्यायालय ने अपने आदेश से कार्यवाही सुनिश्चित करने हेतु दिशा निर्देश जारी किए हैं, इसमें यह निश्चित कर दिया गया है कि एम नागराज प्रकरण में दिया गया निर्णय Prospectively प्रभावशील होगा अर्थात वर्ष 2006 से। अत: सरकार को एम नागराज प्रकरण में मा. सर्वोच्च न्यायालय के निर्धारित दिशा निर्देशों के अनुरूप दिये गए उच्च न्यायालय के निर्णय को पहले लागू करना चाहिए, पश्चात ही इन नियमों पर कोई कार्यवाही हो।
(6) नियम के पैरा 5 में अनु.जाति/ अनु.जनजाति के लिए आरक्षण की गणना हेतु क्रमश: X और Y पैरामीटर लिए गए हैं जिनका मान 0 से 1 के बीच रहेगा। जो सामान्यत: 1 होगा, अन्यथा परिस्थिति में मान. मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली समिति अंतिम निर्णय करेगी। किन्तु यह स्पष्ट ही नहीं है कि इसके क्या मानक होंगे? यह प्रावधान पूरी तरह असंगत और मनमाना है, जिसका स्पष्टीकरण के अभाव में निश्चित दुरुपयोग होगा।
(7)पदोन्नति नियम 2025 के पैरा 11 व 12 में अनुसूचित जाति/ जनजाति व सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के पदों को भरने के लिए प्रक्रिया का निर्धारण किया गया है, जिसमें परस्पर वरिष्ठता तय करने के प्रावधान भी हैं, इनमें कहीं यह स्पष्ट नहीं है कि जो अनु जाति/ जनजाति के चयनित सेवक अनारक्षित वर्ग की सूची में आएंगे वे परिणामी वरिष्ठता के हकदार नहीं होंगे, साथ ही जो अनु जाति/ जनजाति के अधिकारी कर्मचारी पूर्व में परिणामी वरिष्ठता का लाभ ले चुके हैं वे अनारक्षित श्रेणी में कैसे आ सकते हैं? नियमों के पैरा 11 (9-छ:) तथा 12 (5) में अनु जाति/ जनजाति की रिक्तियाँ अनवरत तब तक जारी रखे जाने का उल्लेख है जब तक कि पूर्ति नहीं हो जाती अर्थात बैकलॉग पदों के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है, जो एम नागराज प्रकरण का स्पष्ट उल्लंघन है।
(8)इन नियमों में कहीं भी क्रीमीलेयर की अवधारणा का उल्लेख नहीं है, इसे पूरी तरह नकार दिया गया है, जो एम नागराज प्रकरण और पश्चात के न्यायलयीन निर्णयों के दिशा निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है।
महोदय, हम अपेक्षा करते हैं कि मा. न्यायालयों द्वारा बार बार दिये गए निर्णयों के आलोक में ही मध्यप्रदेश सरकार द्वारा न्यायपूर्ण कार्यवाही सुनिश्चित की जाएगी।सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी सदा आभारी रहेगा।
प्रद्युम्न चतुर्वेदी
जिला अध्यक्ष एवं जिला नोडल अधिकारी,
सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था स्पीक (पूर्व नाम सपाक्स)
जिला – सिवनी.
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