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सिवनी। मनुष्य के जीवन में विवेक और वैराग्य का होना अति आवश्यक है। यदि यह दोनों गुण मनुष्य में नहीं तो वह कुछ भी नहीं। विवेक, वैराग्य और मोह की निवृत्ति का उपाय है सत्संग और हरि कथा। यह बात नगर के शिव शक्ति मंदिर राजपूत कॉलोनी टैगोर वार्ड में जारी श्री शिव महापुराण महोत्सव में शुक्रवार को धर्म पथिक शैलेंद्र कृष्ण शास्त्री वृंदावन ने श्रद्धालुओं से कहीं।
उन्होंने कथा में आगे बताया कि सब की लाज बचाने वाले सब का मान रखने वाले तो देवों के देव महादेव हैं।
एक मुखी रुद्राक्ष शिव का रूप है। इस प्रकार से 14 मुखी रुद्राक्ष अलग-अलग देवताओं के रूप है।
शिव के माथे में जो त्रिकुंड लगा हैं उसे त्रिकुंड कहते हैं यह भोले बाबा का स्वरूप है, जो शिव को भस्मी का त्रिकुंड लगाता है, ऐसे ही भक्तों को शिव नरक की यातनाओं से मुक्ति देते हैं।
जो भोले बाबा के मस्तक में लगा त्रिकुंड की तीन रेखाएं हैं उनका भी अलग-अलग महत्व है। त्रिकुंड में ब्रह्मा, विष्णु, और स्वयं महेश बैठे हैं।
त्रिकुंड में 3 गुण होते हैं। सतोगुण, रजोगुण, और तमोगुण। इसी प्रकार शिव के माथे में लगा त्रिकुंड काल के रूप को भी दर्शाता है। पहला भूतकाल, दूसरा वर्तमान और तीसरा भविष्य काल। भोले बाबा 24 घंटे तीनों कालो को अपने साथ लेकर चलते हैं। इसके साथ ही त्रिकुंड अवस्था का भी प्रतीक है। त्रिकुंड की पहली रेखा जागृत, दूसरी स्वप्न और तीसरी सुसुप्त अवस्था को प्रदर्शित करती है। भोले बाबा ही जाग्रत, स्वप्न ओर सुषुप्ति हैं। इसी प्रकार त्रिकुंड कर्म का भी बोधक है, तीन कर्म में प्रारब्ध, संचित और निर्माण कर्म शामिल हैं।
इसीलिए भगवान शिव को त्रिकुंड अति प्रिय है। तीनो लोको के मालिक भगवान शिव ही हैं। शिव त्रिकुंड, भस्मी, जलधारा, बेलपत्र से अति प्रसन्न होते हैं।
शिव की पूजा में भस्मी का विशेष महत्व है। उसी प्रकार बेलपत्र का भी विशेष महत्व है। यदि कोई साधक शिव पर एक बेलपत्र चढ़ाता है तो एक करोड़ कन्यादान का फल मिलता है।
त्रिनेत्र धारी शिव पर ओम नमः शिवाय का नाम लेकर 3 पत्ती वाला बेलपत्र चढ़ाने से शिव प्रसन्न होते हैं।
शास्त्री जी ने कहा कि महापुरुषों का कथन है कि बिना सत्संग विवेक नहीं होता है। मोक्ष प्राप्ति का सबसे सहज साधन सत्संग है। तपस्या और त्याग से भी भगवान इतने प्रसन्न नहीं होते जितना सत्संग से होते हैं। प्रगाढ़ प्रेम के साथ किया जाने वाला सत्संग ईश्वर को प्राप्त करना सबसे सरल उपाय है। शास्त्री ने उपस्थित भक्तों को समझाया कि मनुष्य सदैव सत्संग की अमृतधारा में डुबकी लगाता रहे तो अपने जीवन को सफल बना सकता है। जीवन में सुख-शांति, समृद्धि सत्संग से संभव है। जीवन के तमाम अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर भी हमें सत्संग के माध्यम से मिल जाते हैं।
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