मैथिलीशरण गुप्त का साहित्य स्वावलंबी बनने की प्रेरणा है : प्राचार्य नाग

सिवनी। पीजी काॅलेज के हिंदी विभाग में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती धूमधाम से मनाई गई। आयोजित व्याख्यान के माध्यम से प्राध्यापकों और विद्यार्थियों ने राष्ट्रकवि के रचनात्मक  अवदान को याद किया।

महकवि मैथिलीशरण गुप्त के छायाचित्र पर प्राध्यापकों और विद्यार्थियों ने पुष्प अर्पण कर  कार्यक्रम की शुरुआत की। राजनीति विज्ञान विभाग की अध्यक्ष ज्योत्स्ना नावकर ने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी से प्रेरणा लेकर राष्ट्र के प्रति समर्पित होकर कार्य करते की बात कही। विधि महाविद्यालय की वरिष्ठ क्रीड़ाधिकारी अर्चना पाठक ने कहा कि गुप्त जी की  राष्ट्रीय कविताओं से खिलाड़ियों को भी प्रेरणा मिलती है। वाणिज्य विभाग के अध्यक्ष डाॅ. रवीन्द्र दिवाकर ने कहा कि गुप्त जी का ‘भारत भारती’ काव्य   राष्ट्रीय भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति है।
साकेत जैसा महाकाव्य लिखकर गुप्त जी ने साहित्य को नई दिशा दी।

राष्ट्रकवि  गुप्त का साहित्य राम, बुद्ध और गाँधी का दर्शन है। हिंदी विभाग की अध्यक्ष डाॅ सविता मसीह ने कहा कि मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं में राम, बुद्ध और गाँधी दर्शन दिखाई देता है।  बताया कि उर्मिला,  कैकेयी, मांडवी जैसी भारत की उपेक्षित नारियों पर मैथिलीशरण गुप्त जी ने काव्य लिखकर उन्हें महत्व दिलाया। कहा कि गुप्त जी का काव्य धर्मनिरपेक्षता का परिचायक है।

सिवनी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार के महाकाव्य से राष्ट्रकवि गुप्त जी हुए थे प्रभावित अपने व्याख्यान में डाॅ. रवीन्द्र दिवाकर ने जानकारी देते हुए बताया कि  पंडित सुमेरू चंद्र दिवाकर सिवनी के सुप्रसिद्ध जैन साहित्यकार रहे हैं।  उनके विशाल महाकाव्य  ‘चारू चक्रवर्ती’ से प्रभावित होकर  राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने आलोचना स्वरूप टिप्पणी की थी – पंथ अनेक, संत सब एक , नत हूँ मैं अपना सिर टेक, जहाँ अहिंसा का अभिषेक,  परम धर्म का वहाँ विवेक।’ डाॅ दिवाकर ने बताया कि सुमेरू चंद्र दिवाकर ने महाकाव्य सहित कई अनमोल ग्रंथों की रचना की है।

कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं प्राचार्य डाॅ रविशंकर नाग ने कहा कि मैथिलीशरण गुप्त जी का काव्य हमें स्वावलंबी बनने की प्रेरणा देता है। बताया कि अपने परिश्रम से राष्ट्र हित में कार्य करना गुप्त जी के काव्य का संदेश है। उन्होंने ‘साकेत’ महाकाव्य और ‘पंचवटी’ की पंक्तियाँ भी सुनाईं।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए हुए प्रोफेसर सत्येन्द्र कुमार शेन्डे ने कहा कि महात्मा गाँधी जी ने 1930 में मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि की उपाधि दी थी। कहा कि गुप्त जी का साहित्य  राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत है। राष्ट्र निर्माण में मैथिलीशरण गुप्त जैसे कवियों का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। मैथिलीशरण गुप्तजी की कविताएँ आज भी प्रासंगिक हैं।

हिंदी विभाग ने किया प्राचार्य का भावभीना स्वागत जयंती कार्यक्रम के दौरान, हिंदी विभाग के प्राध्यापकों, शिक्षकों और विद्यार्थियों ने पुष्पहार से नव नियुक्त प्राचार्य डाॅ रविशंकर नाग का आत्मीय स्वागत भी किया। प्राचार्य बनने से पहले, डाॅ. नाग हिंदी विभाग के अध्यक्ष थे।

कार्यक्रम में विकास मेश्राम,  विजेन्द्र बरमैया,  ओमप्रकाश जैन, डाॅ अवधेश यादव, रितु गुप्ता,  नीलम कश्यप,  दिलीप बागरे, पूनम ठाकुर, पुष्पेन्द्र धुर्वे,  एल्युमनी शिव कुमार यादव  तथा अर्जुन डहेरिया सहित एमए हिंदी के विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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